अमित बिश्नोई
आठ, नौ दशकों में अगर घर पर पहली बार किसी टीम ने भारत का सूपड़ा साफ़ किया है तो इतना हंगामा क्यों मचा हुआ है, इतना तो चलता है. हमने सोचा था कि कप्तान रोहित शर्मा इतना बड़ा कारनामा करने के बाद प्रेस कांफ्रेंस में शायद यही बात कहेंगे क्योंकि पुणे टेस्ट हारकर न्यूज़ीलैण्ड के खिलाफ पहली होम टेस्ट सीरीज़ गंवाने के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कुछ इसी तरह की बात कही थी. कप्तान ने बड़ी बेशर्मी भरे अंदाज़ में कहा था कि 12 साल बाद टीम कोई होम टेस्ट सीरीज़ हारी है, तो इतना तो चलता है, हम 12 साल से होम सीरीज में unbeaten रहे हैं, ऐसे में एक शृंखला हारना कोई बड़ी बात नहीं। सही बात है, हार जीत खेल का एक हिस्सा है, हमेशा आप अपराजित नहीं रह सकते लेकिन हारने के बाद इस तरह का तर्क देना कि इतना तो चलता है, बेशर्मी ही कहा जायेगा।
दरअसल रोहित शर्मा ने जब ये बेशर्मी भरी बात कही थी तब उन्हें पक्का यकीन था कि आखरी टेस्ट में वो जीत ज़रूर हासिल करेंगे और टीम का सम्मान भी बचाएंगे और ये यकीन इसलिए था कि पहले दो टेस्ट हारने के बाद उन्होंने मुंबई के वानखेड़े की पिच को इस तरह तैयार कराया था जहाँ पर पहले दिन के पहले ओवर की पहली गेंद से घुमाव मिलने लगे। न्यूज़ीलैण्ड की टीम को ब्लफ देने के लिए रोहित ने सिराज को टीम में शामिल किया ताकि मेहमान टीम असमंजस में रहे कि पिच किसे ज़्यादा सपोर्ट करेगी। रोहित को यकीन था कि इसबार उनके स्पिनर्स को खेलना मेहमान टीम के बल्लेबाज़ों के लिए नामुमकिन जैसा होगा और ऐसा हुआ भी. दोनों ही पारियों में भारतीय स्पिनर्स न्यूज़ीलैंडर्स पर भारी पड़े. प्लान के मुताबिक टीम को जीत के लिए एक ऐसा टोटल मिला जो आसानी से तो नहीं मगर हासिल ज़रूर किया जा सकता था लेकिन कोई तब क्या करे जब बल्लेबाज़ों ने न सुधरने की कसम खा ली हो. टीम के बुड्ढे यानि अनुभवी बल्लेबाज़ हों या फिर तथाकथित क्षमतावान आज के युवा बल्लेबाज़ हों, सबने बेड़ा गर्क कर दिया। पूरी श्रंखला में ये साबित कर दिया कि घूमती पिचों पर उन्हें बल्लेबाज़ी करना नहीं आता.
इस तरह की पिचों पर बल्लेबाज़ी कैसे की जाती है ये कला हर बल्लेबाज़ भूलता हुआ नज़र आया. पूरी शृंखला में टेस्ट को ODI बनाकर खेला गया. ODI में भी टीम 50 ओवर खेल जाती है, यहाँ पर तो टीम 30 ओवर के अंदर सिमट रही है. किसको दोष दें, पिच तो आपने बनवाईं ताकि मेहमानों को कुचला जा सके लेकिन इस बार मेहमान ज़्यादा चालाक निकला उसने आपका हथियार इस्तेमाल करते हुए आप पर वार किया। अंग्रेज़ी में एक कहावत है “Get a taste of your own medicine”. मतलब आपने दूसरे के लिए जो गड्ढा खोदा था उस गड्ढे में आप ही गिर गए. या कहीं ऐसा तो नहीं भारतीय बल्लेबाज़ों ने न्यूज़ीलैण्ड के स्पिनर्स को बड़ा बना दिया। जब आप इस तरह की बल्लेबाज़ी करते हो तो गेंदबाज़ खुद ही बड़ा बन जाता है. न्यूज़ीलैण्ड के पास एक भी एक स्पिनर ऐसा नहीं था जिसने बड़ा नाम कमाया हुआ हो. मिचेल सेंटनेर ने अपने कैरियर में पहली बार चार से ज़्यादा विकेट पहली बार हासिल किये, दूसरा टेस्ट आप अकेले सेंटनेर से हार गए. तीसरा टेस्ट एजाज़ पटेल के नाम चला गया. एजाज़ पटेल पहले भी भारत में अपना सर्वश्रेष्ठ दे चुके थे, इसी मैदान पर वो एक पारी में 10 विकेट भी हासिल करने का कारनामा कर चुके थे लेकिन उनकी गेंदबाज़ी करिश्माई नहीं थी, उस मैच में 14 विकेट लेने के बाद भी वो टीम को हार से नहीं बचा सके थे लेकिन मुंबई में इस बार वो करिश्माई दिखे। मेरे हिसाब से उनके करिश्माई दिखने में तथाकथित टॉप क्लास बल्लेबाज़ी का तमगा टांगने वाली टीम के बल्लेबाज़ों ने उन्हें करिश्माई बनने में पूरी मदद की.
ये बात इसलिए दावे के साथ कही जा सकती है क्योंकि ये कोई एक मैच में या किसी एक दो पारी में नहीं हुआ. बंगलुरु टेस्ट की पहली पारी को छोड़ दें जहाँ न्यूज़ीलैण्ड के पेसर्स ने भारतीय को मात्र 47 रनों पर समेत दिया था, उसके बाद की पांच पारियों में भारतीय बल्लेबाज़ जिन्हें स्पिन का सूरमा कहा जाता है मेहमान टीम के स्पिनरों के आगे नाचते हुए नज़र आये. टीम के कप्तान हों या कोच, बचाव में उनके पास कहने को कुछ ठोस नहीं है. बचाओ में वो कुछ कहने की स्थिति में भी नहीं हैं. वो कैसे अपने प्रदर्शन को जस्टिफाई कर सकते हैं, वो कैसे 47 रनों पर आउट होने का बचाओ कर सकते हैं, वो कैसे पहली बार अपनी धरती पर व्हाईटवाश होने का बचाओ कर सकते हैं और अगर करते हैं जैसा कि पुणे टेस्ट हारने एक बाद बचाव किया था तो फिर बेशर्मी की पराकष्ठा ही कही जाएगी।
मेहमान टीम ने साबित कर दिया कि जब परिस्थितियां विपरीत हों और संसाधन कम हों तो अपना दिमाग़ ठंडा रखते हुए कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है। पुणे में तहलका मचाने वाले मिचेल सेंटनेर मुंबई टेस्ट में उपलब्ध नहीं थे इसके बावजूद न्यूज़ीलैण्ड की टीम परेशान नहीं हुई और अपने उपलब्ध गेंदबाज़ों एजाज़ पटेल और ग्लेन फिलिप्स पर पूरा भरोसा जताया और उन दोनों ने भारतीय बल्लेबाज़ी की कलई खोलकर रख दी और एकबार फिर साबित कर दिया कि भारतीय सूरमा बल्लेबाज़ लेग स्पिनर्स को खेलने में कितने कमज़ोर हैं. मेहमान टीम के लिए ये श्रंखला यादगार रही, भारत का उसी की धरती पर जहाँ उसने सूपड़ा साफ़ किया वहीँ विदेशी धरती पर ये उसका अबतक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी है, इससे पहले कीवी टीम ने कभी भी घर के बाहर लगातार तीन टेस्ट नहीं जीते। टीम इंडिया के लिए, कप्तान रोहित शर्मा के लिए, हेड कोच गौतम गंभीर के लिए और विराट कोहली के लिए भी ये श्रंखला बहुत बड़ा सबक है जो आने वाले समय के लिए कई सन्देश भी देती है.