अमित बिश्नोई
illustration By Hasan Zaidi
एक देहाती कहावत है कि चमार कोसे डांगर नहीं मरत. किसी को अभागा कहने से कोई अभागा नहीं बनता। राजनीति भी ऐसी चीज़ है जो बहुत जल्दी आपको परिणाम दे देती है, इसलिए एक राजनेता को बहुत सोच समझकर बोलना चाहिए। बड़े बुज़ुर्ग कह गए हैं कि बड़ा निवाला खा लो मगर बड़ा बोल न बोलो क्योंकि आपके बोल आपके सामने आते हैं जो आ चुके हैं और राहुल गाँधी से सवाल पूछ रहे हैं कि अब बताओं पनौती कौन? जिसको आपने पनौती कहा उसने तो शानदार तरीके से अपना गढ़ यानि मध्य प्रदेश बचा लिया जिसको जीतने का आप पिछले कई महीनों से दावा कर रहे थे, अब बताओ पनौती कौन? सारे राज्यों में छत्तीसगढ़ मॉडल का ढिंढोरा आप पीट रहे थे लेकिन चुनाव में वहां बुरी तरह पिट गए, अब बताओ पनौती कौन? राजस्थान की चिरंजीवी योजना का बड़ा हो हल्ला था, इतिहास और परंपरा बदलने के बड़े बड़े दावे हो रहे थे मगर चुनावी नतीजा क्या रहा, अब बताओं पनौती कौन?
मेरे हिसाब से तो राहुल जी असली पनौती आप हो, अपनी पार्टी के लिए भी और देश की राजनीती के लिए भी. अगर पनौती न होते देश के प्रधानमंत्री को पनौती कभी न कहते, खासकर उस समय जब पूरा देश ODI विश्व कप के फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के हाथों हार से निराश था, खेल के कंधे पर बन्दूक रखकर प्रधानमंत्री मोदी पर आपका निशाना साधना देश को पसंद नहीं आया. न ये सही मौका था और न ही इस तरह का दस्तूर है कि देश के प्रधानमंत्री को कोई अपने चुनावी फायदे के लिए अभागा कहे. भाजपा ने अगर इसे प्रधानमंत्री का अपमान कहा तो बिलकुल सही कहा, नरेंद्र मोदी आपके राजनीतिक विरोधी हो सकते हैं उनके बारे में आप शायद भाषा की मर्यादा भी लांघ सकते हैं, हालाँकि लांघना नहीं चाहिए लेकिन आप यह कैसे भूल गए कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री भी हैं, देश की जनता राजनेता नरेंद्र मोदी का अपमान शायद बर्दाश्त भी कर जाए लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का अपमान कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती, विशेषकर हिंदी भाषी राज्य के लोग तो बिलकुल भी नहीं और शायद यही वजह रही जो उसने अपने मतों के अधिकार के ज़रिये आपको यह बता दिया कि प्रधानमंत्री मोदी अभागे नहीं बल्कि भाग्यशाली हैं, मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ की जनता के लिए भी और भारतीय जनता पार्टी के लिए भी।
राहुल जी एक तरफ तो आप देश भर में घूम घूम कर कहते फिर रहे हैं कि आप नफरत के बाज़ार में मोहब्बत की दूकान खोल रहे हैं दूसरी तरफ बार बार राजनीतिक मंचों से देश के प्रधानमंत्री का अपमान करते फिर रहे हैं. यह मोहब्बत की कौन सी भाषा है जिसमें पनौती शब्द का इस्तेमाल होता है, पनौती शब्द में नफरत की साफ़ झलक मिलती है, सिर्फ पनौती ही नहीं, पिछले कई महीनों से राजनीतिक मंचों से आपने पीएम मोदी के लिए जिस तरह तू तड़ाक का सम्बोधन किया है, जिस टपोरी भाषा का इस्तेमाल किया वो सभ्य इंसान के लिए कतई शोभा नहीं देता। ध्यान रखिये मैं अभी भी आपको सभ्य इंसान मान रहा हूँ. हम जिस समाज में रहते हैं वहां इस तरह की भाषा इस्तेमाल नहीं की जाती, खासकर अपने बड़ों से तो बिलकुल भी नहीं और याद रखिये मोदी जी आपसे बड़े हैं, उम्र में भी और पद में भी. देश के किसी भी नागरिक के लिए अपने प्रधानमंत्री का सम्मान करना फ़र्ज़ होता है भले उसके विचारों, उसके कामों, उसकी बातों से आप कितना भी असंतुष्ट हों।
वैसे भी इतिहास रहा है, जब जब आपके दल की तरफ से प्रधानमंत्री के खिलाफ किसी तरह के अपशब्द का इस्तेमाल हुआ, मोदी जी को फायदा और आपकी पार्टी को नुक्सान हुआ है, आपकी पप्पू की इमेज भी इसी वजह से बनी है. पनौती शब्द का खामियाज़ा आपको भुगतना पड़ेगा ये बात मैंने उसी दिन अपने लेख में कह दी थी जब आपने पीएम मोदी को पनौती मोदी कहा था. माना कि पनौती शब्द के इस्तेमाल से पहले छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के चुनाव हो चुके थे और आपके इस उद्बोधन का उनपर असर नहीं पड़ने वाला था लेकिन राजस्थान जहाँ कांटे की टक्कर की बातें हो रही थीं आपके इस शब्द ने गेहलोत के लिए आपको पनौती साबित कर दिया। भारत जैसे देश में राजनेता द्वारा बोले गए एक एक शब्द का बड़ा महत्व होता है, राजनेता द्वारा बोले गए शब्दों का असर होता है, सही मौके, सही स्थान पर अगर सही शब्द बोला जाय तो बिगड़ी बात बन जाती है मगर जब इन्ही हालात में पनौती जैसा कोई गलत शब्द बोला जाय तो बनती बात बिगड़ जाती है और राहुल गाँधी के पनौती सम्बोधन के केस में कुछ ऐसा ही हुआ. प्रधानमंत्री मोदी को पनौती साबित करने की कोशिश में पप्पू के साथ पनौती का टैग भी आपने अपने साथ जोड़ लिया।