अमित बिश्नोई
प्रदेश भाजपा में इन दिनों बड़ी दिलचस्प लड़ाई देखने को मिल रही है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक साथ कई मंचों पर विरोध और विरोधियों का सामना करना पड़ रहा जिनमें कुछ विरोधी तो सामने से हमले कर रहे और कुछ पीछे से और कुछ ऐसे भी हैं जो अभी मौके की तलाश में है. अब ये तो किसी से छिपा नहीं है कि उपमुख़्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या जिनकी एक ज़माने से योगी आदित्यनाथ से टशन चलती आ रही है अब उस टशन को दूसरे उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने और बढ़ा दिया है और हवा का रुख देखते हुए केशव मौर्या के पाले में जाते हुए नज़र आ रहे हैं. संगठन के बड़े नेता पहले से ही योगी आदित्यनाथ के खिलाफ हैं। तो इस समय बिसातें बिछाई जा रही हैं और शह मात का खेल जारी है. लखनऊ से दिल्ली तक बैठकों का दौर जारी है है, कल भी लखनऊ में भाजपा नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक हुई.
भाजपा में इन दिनों जो चल रहा है उसके सूत्रधार भले ही केशव प्रसाद मौर्या बताये जा रहे हों लेकिन परदे के पीछे से सारी चालें कोई और चल रहा है। पिछले सात सालों से खामोश बैठने वाले और स्टूल मंत्री का अपमानजनक टैग पाने वाले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या अचानक ही इतना मुखर हो गए हैं, ये सब बिना किसी बड़े के कंधे पर हाथ रखने के बिना नहीं है. स्टूल वाली घटना लोगों को याद होगी, वो वायरल फोटो जिसमें योगी और बृजेश पाठक तो कुर्सी पर बैठे हैं मगर केशव प्रसाद मौर्या को बैठने के लिए एक प्लास्टिक का स्टूल मिला। यकीनन वो घटना केशव प्रसाद मौर्या भी नहीं भूले होंगे और उसका दर्द उसकी पीड़ा, उसकी टीस आज भी उनके मन में उठती होगी, उस घटना को लेकर केशव प्रसाद मौर्या ने बहुत ट्रोलिंग सही मगर कभी मुखर नहीं हुए लेकिन अब शायद उन्हें लगता है कि उनके पास ये सही मौका है उन सब अपमानों का हिसाब किताब चुकता करने का.
इधर आरएसएस जिसने योगी आदित्यनाथ को बतौर मुख्यमंत्री स्थापित किया वो भी चुपचाप ये सब होता देख रहा है, हालाँकि अभी हाल ही में आरएसएस प्रमुख की गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ से ख़ुफ़िया मुलाक़ात के बाद कहा गया कि भाजपा में चल रही आंतरिक उठापटक पर उनसे चर्चा हुई. ये अलग बात है कि आरएसएस ने योगी से मुलाकात का खंडन किया और कहा कि संघ प्रमुख दो दिन गोरखपुर में रहे ज़रूर मगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कोई मुलाक़ात नहीं हुई. दरअसल गोरखपुर दौरे से पहले मोहन भागवत प्रधानमंत्री मोदी पर कई कटाक्ष कर चुके थे ऐसे में भागवत और योगी की कथित मुलाकात के यही मायने निकाले जा रहे थे कि मोदी-शाह जोड़ी के सामने संघ योगी आदित्यनाथ के साथ मज़बूती से खड़ा हुआ है.
उस मुलाकात की बात को संघ ने एक प्रेस रिलीज़ के माध्यम से ख़ारिज किया जो आमतौर पर संघ नहीं करता। कहा जाता है कि योगी आदित्यनाथ को संघ से ऐसी उम्मीद नहीं थी और उसके बाद योगी आदित्यनाथ ने खुद ही मोर्चा संभालने का फैसला किया। लोकसभा चुनाव में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व हार का ठीकरा योगी आदित्यनाथ पर फोड़ना चाहता है लेकिन फिलहाल ऐसा कर नहीं पा रहा है लेकिन ऐसी परिस्थितियां ज़रूर बना रहा है कि योगी आदित्यनाथ से छुटकारा मिल जाय. ये तो सभी को मालूम है कि योगी आदित्यनाथ न तो मोदी को पसंद हैं और न अमित शाह को, बल्कि अमित शाह से एक तरह से छत्तीस का आंकड़ा है. अमित शाह ने एक मुख्यमंत्री के रूप में योगी को कभी भी खुलकर काम नहीं करने दिया, योगी आदित्यनाथ को कभी भी उनकी पसंद का मुख्य सचिव नहीं मिला, हमेशा केंद्र से थोपा गया, इसके बावजूद योगी ने अपनी कार्यशैली से अपनी अलग पहचान बनाई जिसने उनकी हिन्दू ह्रदय सम्राट की इमेज को और मज़बूत किया। फिर वो चाहे पुलिस एनकाउंटर हों या फिर बुलडोज़र कार्रवाई जिनमें यही देखा गया कि एक विशेष समुदाय के लोग ही प्रभावित हुए. अभी ताज़ा मामला लखनऊ में कुकरैल रिवर फ्रंट का है जिसमें अकबर नगर की पुरानी बस्ती को पूरी तरह उजाड़ दिया गया लेकिन बाद में पंतनगर और दूसरी कई कालोनियों के मकानों की निशानदेही करने के बाद भी जनता के विरोध पर अपने कदम वापस खींच लिए. फर्क सिर्फ इतना था कि दोनों ही मामलों में दो तरह के वोट बैंक थे. एक वो जो योगी की कार्यशैली से अक्सर प्रभावित होता था और दूसरा वो जिसके लिए योगी आदित्यनाथ एक हीरो थे.
योगी आदित्यनाथ अपने विरोधियों को पीछे छोड़ने और उनसे निपटने के लिए अपनी इसी हीरो वाली छवि के सहारे निपटने की योजना बना रहे हैं, यही कारण है कि कांवड़ यात्रा में नेम प्लेट जैसा आदेश दिया गया ताकि उस इमेज को और मज़बूत किया जा सके और आने वाले 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में उस इमेज को भुनाया जा सके. हालाँकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ये अच्छी तरह मालूम था कि अदालत में इस आदेश की धज्जियाँ उड़ जाएँगी मगर इसके बावजूद योगी आगे बढ़े और इस आदेश के दायरे को मुज़फ्फरनगर से आगे बढाकर ये साबित करने की कोशिश की कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ से बड़ा कोई हिन्दू हितैषी नहीं है. अब देखना है कि योगी आदित्यनाथ अपनी इमेज को और मज़बूत करने के लिए और क्या करते हैं और अपने विरोधियों को किस तरह मात देते हैं। फिलहाल भाजपा में शतरंज की बिसात बिछी हुई है और शह मात का खेल जारी है. बिसात पर कौन राजा है, कौन वज़ीर और कौन प्यादा, ये आने आला समय ही बताएगा।