अमित बिश्नोई
मेलबर्न में चौथे टेस्ट के पांचवें दिन यशस्वी जायसवाल के आउट होने पर उस समय विवाद खड़ा हो गया जब स्निकोमीटर पर कोई भी हरकत न होने के बावजूद उन्हें आउट दे दिया गया। 84 रन पर बल्लेबाजी करते हुए बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने पैट कमिंस की एक शॉर्ट-पिच गेंद पर हुक शॉट लगाने का प्रयास किया लेकिन वह अच्छे से कनेक्ट नहीं हो पाया। ऑस्ट्रेलिया ने कैच के लिए अपील की लेकिन मैदानी अंपायर जोएल विल्सन ने अपील ठुकरा दी। ऑस्ट्रेलिया ने निर्णय की समीक्षा की. रीप्ले में हालाँकि स्पष्ट रूप से गेंद को दिशा बदलते देखा गया लेकिन स्निको मीटर ने गेंद के बल्ले से गुजरने पर कोई स्पाइक दर्ज नहीं किया। इसके बावजूद तीसरे अंपायर ने डिफ्लेक्शन को निर्णायक सबूत माना और मैदानी अंपायर के निर्णय को पलटने का निर्देश दिया। ज़ाहिर सी बात है कि जायसवाल इस फैसले से कतई सहमत नहीं हो सकते और उन्होंने मैदान से बाहर जाने से पहले अंपायरों से अपनी असहमति व्यक्त भी की, लेकिन यहाँ मैदानी अम्पायरों के हाथ में कुछ भी नहीं था क्योंकि डीआरएस के अपील के बाद सबकुछ थर्ड अंपायर के हाथ में होता है। इस घटना ने मैदानी फैसलों को पलटने में निर्णायक सबूतों की आवश्यकता के बारे में बहस को एकबार फिर से हवा दे दी है, खासकर जब स्निको जैसे तकनीकी संकेतक अनिर्णायक स्थिति में दिखाई देते हैं।
स्टार स्पोर्ट्स के लिए कमेंट्री कर रहे दिग्गज भारतीय क्रिकेटर और पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर इस फैसले पर फट पड़े और टीवी अंपायर के फैसले पर बुरी तरह नाराज़गी जताते हुए इसे एक गलत फैसला करार दिया। गावस्कर का गुस्सा जायज़ भी था क्योंकि जब आप तकनीक का इस्तेमाल करते हैं तो उसपर विशवास करना भी ज़रूरी है, ऐसा नहीं हो सकता है कि इस फैसले में तकनीक को ठुकराने के बाद दूसरे फैसले में इसी तकनीक पर भरोसा किया जाय, उसपर विशवास कर लिया जाय. मेलबोर्न में आज यही हुआ, यशस्वी जैसवाल के मामले में अपनी आँखों पर भरोसा किया गया जबकि ठीक बाद आकाशदीप के मामले में टेक्नोलॉजी पर भरोसा जताया गया और स्निकोमीटर ने जो दिखाया उसे सही माना गया. जबकि ठीक पहले इसी स्निकोमीटर को ठुकरा दिया गया. भारत मैच हार गया ये एक अलग बात है लेकिन यहाँ पर बात टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल और उसपर भरोसे की है. डीआरएस या रेफरल का नियम इसीलिए बनाया गया कि मैदान पर जो नंगी आँखें न देख सकें उसे मैदान के बाहर टीवी पर स्लो मोशन में और तकनीक सहारे देख कर सही निर्णय लिए जाय.
स्निकोमीटर का इस्तेमाल इसीलिए किया जाता है कि गेंद ने बैट या ग्लोव्स को छुआ या नहीं इसका सही से पता लगाया जाय, हालाँकि ऐसा नहीं कि कभी कभी स्निकोमीटर भी उस बात को नहीं पकड़ पाता है, इसीलिए हॉट स्पॉट का भी सहारा लिया जाता रहा है है, हालाँकि वो तकनीक मंहगी होने के कारण ऑस्ट्रेलिया में अब इस्तेमाल नहीं होती। हालाँकि हॉट स्पॉट तकनीक भी कई बार फेल हुई है और विवादों को जन्म दिया है. दरअसल गावस्कर का कहना था कि मैदान के बाहर फैसले के लिए आप तब जाते हैं जब निर्णय करने में सबूत की ज़रुरत पड़ती है और सबूत के लिए टेक्नोलॉजी का ही सहारा लेना पड़ा है. मान्यताप्राप्त टेक्नोलॉजी जो सबूत उपलब्ध कराती है, अंपायर उसी हिसाब से निर्णय देता है। यशश्वी के मामले में टेक्नोलॉजी उनके आउट होने का कोई सबूत नहीं दे पायी। ऐसी सूरत में मैदानी अंपायर के फैसले के साथ जाना चाहिए और मैदानी अंपायर ने यशस्वी नो नॉट आउट करार दिया था. सवाल यही है कि स्निकोमीटर जब कोई स्पाइक नहीं दिखा रहा है तो फिर टीवी अंपायर अपने विवेक पर निर्णय कैसे दे सकता है. उसे गेंद का डेविएशन दिखाई दिया और उसने सही मान लिया कि ग्लोव्ज से लगकर गेंद ने दिशा बदली है. ये अंपायर का दृष्टि भ्रम भी तो हो सकता है. कई बार गेंद बल्ले के करीब से गुजरने के बाद काँटा बदलती है. मेलबोर्न के मौसम में तो ऐसी बहुत सी गेंदें मिलेंगी जो स्टंप्स से गुजरने के बाद काफी स्विंग होती हैं और कीपर को छलांग मारकर गेंद रोकते हुए देखा जाता है, जैसा कि यशस्वी के मामले में एलेक्स कैरी ने किया।
“दिलचस्प और बड़ा क्षण”, इस विलक्षण घटना पर गावस्कर की त्वरित प्रतिक्रिया के बाद रविचंद्रन अश्विन की यह प्रतिक्रिया थी. सच में यह बड़ी दिलचस्प भी थी और बड़ा क्षण भी, विशेषकर ऑस्ट्रेलिया के लिए जिनकी राह में यशश्वी काँटा बने हुए थे. अंपायर के इस फैसले पर भारत के पूर्व क्रिकेटर जहाँ हैरान थे और फैसले को ग़लत बता रहे थे वहीँ ऑस्ट्रेलिया के कई पुराने दिग्गज टीवी अंपायर बांग्लादेश के शरफ़ुद्दौला के पक्ष में खड़े नज़र आये. इन सबके बीच कप्तान रोहित ने यह कहकर विवाद ख़त्म करने की कोशिश की कि टेक्नोलॉजी क्या कह रही है मुझे नहीं मालूम मगर कुछ तो लगा है, मगर हम उसकी तह में नहीं जाना चाहते। यह ठीक है कि रोहित इस बात को और आगे नहीं खींचना चाहते लेकिन सवाल तो खड़ा ही होता है कि अगर टेक्नोलॉजी पर पूरी तरह भरोसा नहीं करना है तो पहले की तरह पूरी तरह अंपायर पर भरोसा कीजिये। ये कोई पहली या आखरी बहस नहीं है. थर्ड अंपायर अक्सर कई फैसलों पर खुद भी कन्फ्यूज़न में रहता है. कई बार उसके पास क्लीन कैच का निर्णय पहुँचता है, उसमें से कई मामले ऐसे भी होते हैं कि हर एंगल से देखने के बाद भी वो ये नहीं तय कर पाता कि कैच सफाई से लिया गया है नहीं। लेकिन आखिर में वो किसी एक पक्ष में फैसला देता है और ऐसे हर फैसले में विवाद खड़ा होता है. यही हार अम्पायर्स कॉल में भी होता है. एक पक्ष हमेशा नाखुश रहता है और उसे लगता है कि अंपायर ने उसके साथ ज़्यादती की है. यहाँ पर फिर वही बात आती है कि आपको टेक्नॉलजी की सटीकता पर भरोसा नहीं है तभी तो आपने नियम बना दिया कि गेंद अगर आधी से ज़्यादा स्टंप्स पर लगती हुई नज़र आये तो बल्लेबाज़ होगा नहीं तो नॉट आउट. अरे गेंद स्टंप्स से लग रही है, चाहे आधी लगे, पूरी लगे, एक तिहाई लगे, हर मामले में बल्लेबाज़ आउट होना चाहिए। मेरा तो यही कहना है कि टेक्नोलॉजी पर भरोसा करो तो पूरा वरना डेढ़ सौ बरस पुराना क्रिकेट एक सदी से समय तक अम्पायरों के सहारे ही बेहतर तरीके से चलाया गया है.