अमित बिश्नोई
इंडिया गठबंधन का भी अजीब हाल है, समझ में नहीं आता कि कौन शामिल है और कौन नहीं। हालाँकि सपा और आप ने पिछले दिनों प्रेस कांफ्रेंस करके साफ़ कर दिया कि उनका और कांग्रेस पार्टी का लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन हो गया है ये अलग बात है कि आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अकेले लड़ने का फैसला किया है वहीँ इंडिया अलायन्स की एक और मज़बूत सहयोगी (हालाँकि इसमें शक है) सीपीआई ने अलग ही रुख अपनाया है, उसने लोकसभा चुनाव के लिए आज जिन चार सीटों के लिए उम्मीदवारों के नामों का एलान किया उनमें दो सीटें वायनाड और थिरुवनंतपुरम की भी हैं। इन दोनों सीटों से कांग्रेस पार्टी के सांसद हैं। वायनाड से राहुल गाँधी और थिरुवनंतपुरम से शशि थरूर, यानि कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं के खिलाफ सीपीआई ने उम्मीदवार उतारकर अलग ही सन्देश दिया है. इनमें से एक सीट पर डी राजा की पत्नी को उम्मीदवार बनाया गया है, यानि गंभीरता से चुनाव लड़ा जायेगा, मतलब ये भी है कि राहुल गाँधी को किसी तरह की रियायत देने के मूड में लेफ्ट पार्टियों का ये घटक दल नहीं है.
वैसे सीपीआई के इस फैसले से हैरानी जैसी कोई बात नहीं है क्योंकि केरल में स्थिति बिलकुल वैसी ही है जैसी इन दिनों पंजाब में है यही वजह है कि दिल्ली, गोवा, हरियाणा, गुजरात और चंडीगढ़ में कांग्रेस के साथ सीटों का समझौता करने वाली आम आदमी पार्टी ने पंजाब के लिए कांग्रेस को सॉरी कह दिया है। केरल में भी सभी जानते हैं कि दशकों से दो गठबंधन आमने सामने रहते हैं , एक लेफ्ट के नेतृत्व वाला LDF और दूसरा कांग्रेस के नेतृत्व वाला UDF. दोनों के बीच हर चुनाव में सीधी टक्कर होती है. एकबार UDF तो अगली बार LDF. हालाँकि पिछले विधानसभा चुनाव में इसमें बदलाव हुआ है और केरल के लोगों ने लगातार दूसरी बार LDF को सत्ता सौंपी है.
अगर लोकसभा चुनाव की बात करें तो यहाँ भी आम तौर 18-20 का आंकड़ा रहता है जो दोनों गठबंधनों में हर बार बदलता रहता है, पिछली बार कांग्रेस के पक्ष में रहा था और देश की सबसे पुरानी पार्टी के वजूद को बचाने में मदगार भी. UDF को 17 सीटें मिली थीं जिनमें अकेले कांग्रेस पार्टी के 15 सांसद जीते थे. LDF तीन पर ही सिमट गयी थी और डी राजा की सीपीआई चार सीटें लड़ने के बावजूद खाली हाथ रही थी. इसबार भी उसने चार सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं. वायनाड से डी राजा की पत्नी ऐनी राजा को उतारने के पीछे एक बात कही जा रही है. कहा जा रहा है कि राहुल गाँधी एकबार फिर अमेठी का रुख कर सकते हैं, उनके अमेठी जीतने के चांसेस भी काफी हैं क्योंकि अमेठी में स्मृति ईरानी को लेकर काफी रोष है. लोगों का कहना है कि उन्होंने राहुल गाँधी को पिछले चुनाव में हराकर गलती की, इस बात का उन्हें एहसास है और अब वो अपनी गलती को सुधारना चाहते हैं. सीपीआई प्रमुख की पत्नी को वायनाड से उतारने का यही कारण बताया जा रहा है कि राहुल के वायनाड छोड़ने से ऐनी राजा की राह आसान हो जाएगी।
केरल में LDF की एक शिकायत कांग्रेस पार्टी से ये भी है कि वो जिस तरह दुसरे राज्यों में इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दलों को भाव दे रही है केरल में उसका बर्ताव उससे अलग है. LDF नेताओं की बात सही भी हो सकती है मगर केरल में लेफ्ट और कांग्रेस के ही बीच मुकाबला है तो गठबंधन किस बात का, यहाँ तो मुकाबला होना ही है, हाँ अगर कोई तीसरा दल या गठबंधन इस हालत में होता कि मुकाबले को रोचक बना सके तो एक समय बात सोची भी जा सकती थी. वैसे भारतीय जनता पार्टी पिछले दस वर्षों से लगातार केरल में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही है लेकिन उसे अभी उस स्तर की कामयाबी नहीं मिली है जो लोकसभा या विधानसभा चुनाव में काम आये. लेकिन राहुल गाँधी और शशि थरूर के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर एक बात तो साफ़ हो गयी है या एक राजनीतिक सन्देश तो गया ही है कि इंडिया गठबंधन में दरारें बहुत हैं। ये दरारें भरने वाली नहीं। सीपीआई का ये सोचना कि राहुल गाँधी वायनाड छोड़कर अमेठी लौट जायेंगे, मुश्किल लगता है. ऐसे में दूसरे राज्यों में कुछ इसी तरह का बर्ताव कांग्रेस भी कर सकती है। हालाँकि लेफ्ट अब केरल तक ही सीमित रह गयी है।