मेरठ लोकसभा सीट के लिए मचा घमासान, अतुल प्रधान ने लगाए गंभीर आरोप
पारुल सिंघल
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के लिए मेरठ हापुड़ लोकसभा सीट फजीहत बन गई है। इस सीट पर जहां वह प्रत्याशियों पर प्रत्याशी बदले जा रहे हैं, वहीं खुद की पार्टी थामने में भी नाकामयाब नजर आ रहे हैं। आगामी लोकसभा चुनाव नजदीक हैं लेकिन, अखिलेश यादव के लिए दिल्ली दूर नजर आ रही है। मेरठ सीट पर मचे घमासान के बाद उनकी पार्टी में बगावत के सुर छिड़ चुके हैं। सुनीता वर्मा के टिकट किए जाने से अतुल प्रधान भी काफी नाराज नजर आ रहे हैं। हाल ही में अपने फेसबुक लाइव से उन्होंने समाजवादी पार्टी पर कई गंभीर आरोप भी लगाए हैं। माना जा रहा है कि अतुल प्रधान जल्द ही कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं। यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि वह पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो समाजवादी पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव में बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
अतुल का आरोप पार्टी में गुर्जर समाज के लिए नहीं जगह
अपने फेसबुक अकाउंट से लाइव आए अतुल प्रधान ने समाजवादी पार्टी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा की इस पार्टी में गुर्जर समाज के लिए कोई जगह नहीं है। अपने समाज के विकास और उत्थान के लिए वह सदा से ही संघर्ष करते आए हैं। इसी के मद्देनजर वह लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए भी अग्रसर थे लेकिन, पार्टी द्वारा उनके टिकट काटे जाने से स्पष्ट है कि इस पार्टी में उनके समाज के लिए कोई जगह नहीं हैं। उन्होंने कहा कि दूसरी पार्टियों द्वारा हर समाज और वर्ग को साथ लेकर चला जा रहा है लेकिन, समाजवादी पार्टी में ऐसा नहीं हो रहा है। यही वजह है कि उनका टिकट काट दिया गया। अपने टिकट कटने से नाराज अतुल प्रधान ने जल्द ही एक बड़ा फैसला लेने का भी ऐलान किया है।
पार्टी नहीं थम रही, देश कैसे थामेंगे अखिलेश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव अपनी खुद की पार्टी नहीं थाम पा रहे हैं। नेताजी के जाने के बाद से ही पार्टी में लगातार आंतरिक कलह बनी हुई है। यह भी माना जा रहा है कि अखिलेश यादव पार्टी हित में सही फैसला तक नहीं कर पा रहे हैं। उनके भीतर राजनीतिक समझ, कुशल नेतृत्व का अभाव और पार्टी को साधने जैसी योग्यताएं नहीं हैं। इसी के चलते राष्ट्रीय लोकदल से उनका गठबंधन भी टूट गया। मेरठ समेत कई सीटों पर प्रत्याशियों में लगातार बदलाव को भी उनकी इन्हीं कमियों के साथ जोड़ा जा रहा है राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव मानसिक रूप से चुनाव के लिए मजबूत नहीं है और राष्ट्रीय लोक दल से गठबंधन टूटने के बाद वह सही तौर पर फैसला लेने में भी सक्षम साबित नहीं हो रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि यदि वह पार्टी थामने में ही सफल नहीं हो पा रहे हैं तो देश और जनता को कैसे संभाल पाएंगे।