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तो क्या हल हो गयी अमेठी की पहेली?

आर्टिकल/इंटरव्यूतो क्या हल हो गयी अमेठी की पहेली?

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अमित बिश्नोई
लगता है कि अमेठी से कांग्रेस पार्टी किसे मैदान में उतारने जा रही है इस पहेली का हल निकल आया है. पहेली का जवाब प्रियंका गाँधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के रूप में आया है. इस पहेली से पर्दा खुद वाड्रा ने उठाया है. सोमवार को उन्होंने एकबार फिर इस बात का इशारा दिया कि वो अमेठी से चुनाव लड़ सकते हैं , बल्कि उन्होंने तो स्मृति ईरानी की हार का दावा भी कर दिया। इस तरह के दावे कोई तभी करता है जब उसे यकीन हो कि उस क्षेत्र से वही चुनाव लड़ने जा रहा है, स्मृति ईरानी की हार का दावा करते हुए रॉबर्ट वाड्रा साथ में ये भी कह रहे हैं कि वो किसी को चैलेन्ज करने के लिए चुनाव नहीं लड़ेंगे। अब वाड्रा के ये बयान महज़ सिर्फ बयान है या फिर एक माहौल बनाने की कोशिश या फिर स्मृति ईरानी को उलझाने का प्रयास, इसपर सियासी हलकों में बहस शुरू हो चुकी है.

पूर्व में भी रोबर्ट वाड्रा कह चुके हैं कि पार्टी समर्थक उनपर राजनीति में आने के लिए दबाव डाल रहे हैं, अमेठी की जनता उनसे बार बार अनुरोध कर रही है कि उन्हें अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत अमेठी से ही करनी चाहिए लेकिन सोमवार को उनका बयान इस मुद्दे को और स्पष्ट करने वाला रहा. वाड्रा ने अमेठी से अपने राजनीतिक जुड़ाव की चर्चा की, बताया कि वो 1991 से अमेठी में कांग्रेस पार्टी का प्रचार कर रहे हैं, उनके कहने का मतलब अमेठी से उनका नाता दशकों पुराना है. वाड्रा का ये कहना कि वैसे तो पूरे देश से उनके पास चुनाव लड़ने के लिए अनुरोध आ रहे हैं लेकिन चर्चा सिर्फ अमेठी को लेकर हो रही है, एक अलग ही सन्देश देता है. हालाँकि पार्टी के स्तर पर इसपर कोई चर्चा हो रही है या नहीं यकीन से कहा नहीं जा सकता लेकिन वाड्रा के बयानों ने तो यूपी के सियासी हलकों में हलचल तो मचा ही दी है।

अब वाड्रा जब बार बार इस तरह की बातें कर रहे हैं तो इन बातों को हवा में तो उड़ाया नहीं जा सकता, न ही वाड्रा कोई ऐसी वैसी शख्सियत हैं जो कुछ भी बोल देते हैं, वाड्रा भी गाँधी परिवार का ही हिस्सा हैं और ऐसे में उनके द्वारा कही गयी बातों का वज़न भी होगा। ऐसा नहीं हो सकता कि वाड्रा के अमेठी को लेकर दिए जा रहे बयानों की जानकारी प्रियंका गाँधी को न हो, बल्कि ये मानकर चलना चाहिए कि प्रियंका के समर्थन से ही वाड्रा अमेठी से चुनाव लड़ने की बात को अपरोक्ष रूप से उठा रहे हैं. एक राजनीतिक विश्लेषक की नज़र से देखा जाय तो ये एक विशुद्ध राजनीतिक चाल है जो मौका देखकर चली गयी है। खासकर तब जब स्मृति ईरानी बार बार राहुल गाँधी को अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए ललकार रही हैं। वैसे उनकी ललकार में चैलेन्ज कम और घबराहट ज़्यादा नज़र आती है. ईरानी को मालूम है कि राहुल गाँधी का वायनाड से चुनाव लड़ने के बाद अमेठी से मैदान में उतरना बहुत मुश्किल है मगर बार बार चैलेन्ज करके वो उस शक को दूर करना चाहती हैं कि कहीं राहुल गाँधी वाकई अमेठी से चुनावी मैदान में तो नहीं उतर जायेंगे। अमेठी में स्मृति ईरानी ने भले ही फार्म हॉउस बना लिया हो लेकिन वहां के ज़मीनी हालात उनके अनुकूल बिलकुल भी नज़र नहीं आते. अब लोग खुलकर कैमरे के सामने राहुल को हराने की अपनी गलती को स्वीकार करने लगे हैं, अब लोग खुलकर कैमरे के सामने स्मृति ईरानी का विरोध करते हुए दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में माहौल तो कांग्रेस पार्टी या फिर कहिये गाँधी परिवार के फेवर में नज़र आ रहा है और शायद यही वजह है कि वाड्रा के बयानों के ज़रिये ज़मीनी थाह ली जा रही है, अमेठी के लोगों का मन टटोला जा रहा है।

अमेठी और रायबरेली सीटों की अगर तुलना करें तो कांग्रेस के लिए इसबार अमेठी से ज़्यादा मुश्किल रायबरेली सीट है, रायबरेली वालों का सोनिया गाँधी से एक अलग जुड़ाव था, रायबरेली के उस कनेक्शन को सिर्फ प्रियंका गाँधी ही बरकरार रख सकती हैं, गाँधी परिवार का कोई और सदस्य रायबरेली से उतना प्रभावी नहीं हो सकता जितना प्रियंका गाँधी हो सकती हैं. ऐसे में हम रोबर्ट वाड्रा के बयानों को लेकर ये माने कि कांग्रेस पार्टी उन्हें अमेठी से चुनाव लड़ाने जा रही है तो फिर इसका मतलब साफ़ है कि प्रियंका गाँधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगी। फिलहाल रोबर्ट वाड्रा माहौल बनाते हुए नज़र आ रहे हैं। अमेठी और रायबरेली में चुनाव छठे चरण में है जिसके नामांकन की आखरी तारिख 6 मई है, तबतक तो वायनाड में मतदान भी हो चूका होगा और ये भी स्पष्ट हो चूका होगा कि क्या अमेठी में राहुल वापसी करेंगे या फिर रोबर्ट वाड्रा अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करेंगे।

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