कांवड़ यात्रा 22 जुलाई से शुरू हो रही लेकिन उससे पहले इस यात्रा को लेकर विवाद भी शुरू हो गया है, विवाद की वजह सरकार का वो आदेश है जिसमें कहा गया है कि पूरे कांवड़ यात्रा मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों के दुकानदारों को अपनी दूकान के आगे ये लिखना ज़रूरी है कि वो दूकान किसकी है. कहने मतलब दूकान हिन्दू की है या मुसलमान की ताकि कांवड़ियों को ये पता चल सके कि वो जिस दूकान से सामान खरीद रहे हैं कहीं वो किसी मुसलमान की तो नहीं जो अपनी दूकान का नाम हिन्दू नाम पर रखकर कारोबार कर रहा है. इस बारे में जिला प्रशासन ने पहले ही आदेश दे दिया था और उसपर अमल भी शुरू करवा दिया था लेकिन उसपर राजनीतिक बवाल शुरू हो गया था लेकिन अब योगी सरकार ने स्पष्ट आदेश दे दिया है कि कांवड़ यात्रा के पूरे मार्ग पर हर दूकान पर नेम प्लेट लगाकर दुकानदार को नाम लिखना ही होगा।
विवाद बढ़ने पर पहले खबर आयी थी इस आदेश को स्वेच्छा पर टाल दिया गया है, दूकानदार की मर्ज़ी पर छोड़ दिया गया है कि वो चाहे तो नाम लिखे , न चाहे तो न लिखे लेकिन नए आदेश के मुताबिक ऐसा करना अनिवार्य कर दिया गया. वैसे मुज़फ्फरनगर में पहले से ही दुकानदारों ने नाम की पट्टिका लगानी शुरू कर दी है, सोशल मीडिया पर बहुत से तस्वीरें आ रही हैं जहाँ पर आरिफ फल वाला, साबिर चायवाला आदि नाम दुकानों के आगे लिखे हैं. वहीँ एक खबर ये भी चल रही है कि ढाबों पर काम करने वाले मुस्लिम कर्मचारियों को ढाबा मालिकों ने हटाने का काम शुरू कर दिया है. मुज़फ्फरनगर में एक ढाबे के मालिक ने चार मुस्लिम कामगारों को कांवड़ यात्रा तक काम से हटा दिया है.
सरकार के इस आदेश पर विपक्ष के साथ ही भाजपा के नेताओं ने भी विरोध जताया है। भाजपा के सीनियर नेता मुख्तार अब्बास नक़वी ने कल ट्वीट करके लिखा था कि ये अतिउत्साही अधिकारीयों का काम है जो हड़बड़ी में इस तरह के आदेश जारी कर साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अब आदेश जारी कर मुख़्तार अब्बास नक़वी को बता दिया है कि ये अधिकारीयों का हड़बड़ी में लिया गया फैसला नहीं है बल्कि प्रदेश सरकार का सोचसमझ कर लिया गया फैसला है. कल सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी सवाल किया था कि अगर किसी दुकानदार का नाम फत्ते, छोटू, गुड्डू या मुन्ना हो तो कैसे पता चलेगा कि ये हिन्दू है या मुसलमान।