अमित बिश्नोई
मध्य प्रदेश के उज्जैन से भारत जोड़ो यात्रा की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई थी. इन तस्वीरों में राहुल गाँधी और उनकी बहन प्रियंका का हिन्दू अवतार देखने को मिला था. तस्वीरें मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित भगवान शिव के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर और सुप्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर मंदिर के नर्मदा तट की थीं. राहुल गाँधी ने गर्भ गृह में दंडवत प्रणाम किया, नंदी के पास ध्यान लगाया, अंगवस्त्रों का वरण किया, बहन के साथ नर्मदा तट पर आरती की, बिलकुल वैसे ही जैसे प्रधानमंत्री मोदी ने महाकाल मंदिर के पिछले दौरे में किया था, जैसे वाराणसी के तट पर वो आरती करते हुए नज़र आते हैं.
वैसे तो राहुल गाँधी के शिव के उपासक हैं, मंदिरों में अक्सर जाते हैं, लेकिन मौसम इस वक्त चुनावी है तो उनके हिन्दू दिखने की कोशिश पर चर्चा तो होनी ही है. राहुल के रुद्राक्ष अवतार की झलक शायद पहली बार देखने को मिली है. उनके उज्जैन वाले रूप में सॉफ्ट हिंदुत्व की नहीं बल्कि हार्ड हिंदुत्व की झलक दिखाई दी. लोगो का मानना है कि राहुल और प्रियंका का यह रूप अकारण ही नहीं है, कहीं न कहीं गुजरात चुनाव को लेकर एक सन्देश भी है. राहुल के भाषणों में नफरत फैलाने की बात तो हो रही है लेकिन पहले की तरह हिन्दू-मुसलमान की नहीं। उनके भाषणों में अब किसी ख़ास समुदाय की बात नहीं होती बल्कि सभी समुदायों की बात होती है. यह वो बदलाव है जो बताता है कि कांग्रेस पार्टी भी हिंदुत्व के मुद्दे की अहमियत समझने लगी है. वो पूरी तरह नहीं तो थोड़ा बहुत भाजपा जैसी दिखने की कोशिश करने में लगी है.
राहुल और प्रियंका गुजरात चुनाव से अपने को काफी दूर रखे हुए हैं लेकिन मंदिर मंदिर भटककर एक चुनावी सन्देश ज़रूर भेज रहे हैं. अब पता नहीं कि राहुल और प्रियंका गाँधी का हिन्दू जैसा दिखना गुजरात के चुनाव में कोई प्रभाव छोड़ सकता है या नहीं, हालाँकि राजनेता कुछ भी यूँ ही नहीं करते, उज्जैन में मंदिर दर्शन और रुद्राक्षधारी के रूप का भी एक राजनीतिक मकसद हो सकता है खासकर जब गुजरात में पहले चरण का चुनाव पहली दिसंबर को है.
जहाँ तक गुजरात चुनाव की बात है तो यहाँ पर 2002 के दंगों के बाद से ही हिंदुत्व का कार्ड सबसे प्रभावशाली राजनीतिक हथियार रहा है, इसी हथियार की मदद से नरेंद्र मोदी ने गुजरात से दिल्ली तक का सफर तय किया है. इस बार भी जैसे जैसे चुनावी अभियान आगे बढ़ा है विकास के मुद्दे पीछे छूट गए हैं और हिंदुत्व का मुद्दा फिर से आगे आ गया है. भाषणों की भाषा बदल गयी है, आफताब जैसे अपराधी को चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है, मुंबई ब्लास्ट की याद दिलाई जा रही है, बाटला हाउस की बात हो रही है, चुनाव से पहले बिलकीस बानो के अपराधियों को छोड़ा जा रहा है और ये सारी कोशिश हिन्दू वोटों को एकजुट करने की है. कांग्रेस भी इस बात को अच्छी तरह समझती है और इसीलिए सत्ता वापसी के लिए कुछ भी करेगा वाली बात पर चलने की कोशिश में जुट गयी है क्योंकि उसके लिए तो अब आर पार की लड़ाई है.