कर्नाटक विधानसभा चुनाव का बगल बज चूका है, सत्ता बचाने के अलावा वोट शेयर बढ़ाना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. दो बार सत्ता में आने और तीन बार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी का वोट शेयर कांग्रेस से कम ही रहा है. अपने माइक्रो मैनेजमेंट के सहारे बीजेपी इस बार वोट शेयर के मामले में कांग्रेस को भी पछाड़ने की कोशिश कर रही है.
पिछले तीन दशक से चल रहा है बारी बारी का खेल
पिछले पांच विधानसभा चुनावों पर अगर नजर डालें तो बीजेपी का वोट प्रतिशत करीब 19 फीसदी से लेकर 36 फीसदी तक रहा है. वहीं कांग्रेस का वोट प्रतिशत करीब 34 फीसदी से 41 फीसदी के लगभग रहा है. यह बात और है कि वोट प्रतिशत कम होने के बावजूद ज्यादा सीटें जीतकर उसे दो बार सत्ता में आने का मौक़ा मिला है. 1999 के विधानसभा चुनाव के बाद से कर्नाटक में भाजपा, कांग्रेस और जेडीएस ही तीन अहम पार्टियां रही हैं और वोट बंटवारे के आधार पर इन्हीं तीनों के बीच सरकारें बनती और बिगड़ती रही हैं. पिछले विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो कांग्रेस को 39 फीसदी वोट हासिल करने के बावजूद सिर्फ 80 सीटें ही मिली थीं जबकि भाजपा कम वोट यानि 36.2 फीसदी वोटों के साथ 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बन गई। वहीँ जेडीएस 18.7 फीसदी वोट के साथ 37 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही। 2013 में भाजपा का वोट शेयर 19.9 रह गया और सीटें भी घटकर 40 रह गईं. 1999 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 20.7 फीसदी वोट और 44 सीटें मिली थीं जो 2004 में बढ़कर 79 हो गयी और वोट प्रतिशत 28.3 फीसदी वोट हो गया. भाजपा का बेहतरीन प्रदर्शन 2008 में रहा, पार्टी को 33.9 फीसदी वोट और 110 सीटें मिली थीं, वहीँ कांग्रेस ज़्यादा वोट यानि 34.8 फीसदी वोट के बावजूद 80 सीटें जीत सकी थी.
क्या जेडीएस बिगाड़ेगी भाजपा-कांग्रेस का खेल
जेडीएस कर्नाटक में तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है, उसके वोट शेयर पर सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस दोनों की निगाहें हैं। जेडीएस 1999 में जनता दल से अलग होकर पहली बार चुनावी मैदान में उतरी और 13.5 फीसदी वोट और 18 सीटों के साथ अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराने में कामयाब रही. 2004 में उसका वोट प्रतिशत बढाकर 20.8 फीसदी पहुँच गया और सीटों की संख्या 58 हो गयी। 2008 में गिरावट आयी और सिर्फ 19 फीसदी वोट मिले थे। 2013 में भी उसे 20 फीसदी वोट मिला। जेडीएस की पोजीशन हमेशा एक किंग मेकर के रूप में रही है, ये अलग बात है कि कांग्रेस ने एकबार उसे सत्ता तक भी पहुंचाया मगर वहां पर वो ठहर न सके.