बिहार उन राज्यों में से है जहाँ प्रधानमंत्री मोदी को ज़बरदस्त समर्थन मिलता है. 2019 की बात करें तो यहाँ NDA को 40 में 39 सीटें मिली थीं. हालाँकि बिहार में NDA से JDU अलग हो चुकी है, लोक जनशक्ति पार्टी में दो फाड़ हो चुके हैं. अकेले भाजपा की बात करें तो उसे 17 सीटों पर जीत मिली थी. बिहार में अभी हालात बदले हुए हैं, नितीश कुमार अब राजद के साथ खड़े हैं ऐसे में बिहार में अपनी परफॉरमेंस को दोहराना और उसमें कुछ बढ़त हासिल करना भाजपा का मुख्य एजेंडा है. इसी कोशिश में जुटी भाजपा ने बिहार में बड़े पैमाने पर संगठनात्मक बदलाव किये हैं.
इतना बड़ा बदलाव क्यों ?
जानकारी के मुताबिक होली बाद भाजपा ने बिहार में अपने 45 जिलाध्यक्षों को बदल दिया है। इतने बड़े पैमाने पर जिलाध्यक्षों के बदले जाने से एक बड़ा सवाल खड़ा हुआ है कि क्या लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उसे क्या बुरे नतीजों की भनक लगी है, क्या मौजूदा जेडीयू-राजद गठबंधन सरकार से भाजपा को खौफ महसूस हो रहा है? जाहिर है जब इतने बड़े पैमाने पर कोई संगठनात्मक बदलाव होता है तो सवाल उठना लाज़मी है और इसीलिए इन बदलावों को 2024 लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है.
पार्टी में अंदरूनी कलह गरमाई
नए जिलाध्यक्षों की सूची जारी करने के बाद पार्टी के अंदर सरगर्मी बढ़ गई है। इस सूची के जारी होने के बाद जहाँ पार्टी के कुछ नेताओं में मायूसी है तो कुछ लोग खुश दिख रहे हैं। आने वाले चुनावों में जिला अध्यक्षों का थोक भाव से बदलाव पार्टी के लिए कितना फायदेमंद साबित होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन सवाल यही उठाया जा रहा है कि क्या एकसाथ इतने जिलाध्यक्षों पर से पार्टी का विशवास उठ गया. अगर नए जिलाध्यक्षों के नामों की सूची पर नजर डाली जाय तो नज़र आता है कि इसमें सामाजिक समीकरणों का पूरा ध्यान रखा गया है।