नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति इस सप्ताह जब नए वित्त वर्ष की पहली बैठक में मिलेगी तो उसे मुद्रास्फीति से जुड़े अनुमानों और नीतिगत प्रतिक्रिया का समायोजन करना होगा।
पिछली बैठक में एमपीसी ने अनुमान जताया था कि जनवरी-मार्च तिमाही में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर 5.7 प्रतिशत रही। बहरहाल, अब तक इसके नतीजे चौंकाने वाले रहे हैं और दरें एक बार फिर तय दायरे के ऊपरी स्तर से ऊपर निकल गई हैं।
तिमाही का औसत पूर्व अनुमान के स्तर से अधिक होने का अनुमान
तिमाही का औसत भी पूर्व अनुमानित स्तर से अधिक होने का अनुमान है। मुद्रास्फीति के हालात को देखते हुए और निरंतर इजाफे को ध्यान में रखते हुए बाजार नजर रखेगा कि केंद्रीय बैंक चालू वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान को किस प्रकार समायोजित करता है। फिलहाल उसे उम्मीद है कि 2023.24 में औसत मुद्रास्फीति की दर 5.3 प्रतिशत रहेगी।
रेपो दर में 25 अंकों का इजाफा करने की संभावना
चूंकि मुद्रास्फीति के वास्तविक नतीजे अनुमान से अधिक रहे। इसलिए एमपीसी को नीतिगत दरों को समायोजित करना होगा। विश्लेषक मान रहे हैं कि दरें तय करने वाली समिति रीपो दर में 25 आधार अंकों का और इजाफा करेगी।
समिति ने चालू चक्र में अब तक दरों में 250 आधार अंकों का इजाफा किया है। एक और इजाफे की पर्याप्त वजह मौजूद है क्योंकि मुद्रास्फीति की दर एक बार फिर तय दायरे की ऊपरी सीमा पार कर चुकी है। ऐसे में केंद्रीय बैंक के लिए अपनी लड़ाई जारी रखना आवश्यक है। शीर्ष दर के अलावा मूल मुद्रास्फीति भी अडिग बनी हुई है और वह भी केंद्रीय बैंक को चिंतित कर रही है।
पिछले अनुमान में मुद्रास्फीति दर 5.3 प्रतिशत रहने का जताया था अनुमान
इसके अलावा हालांकि पिछले अनुमान में 2023-24 में मुद्रास्फीति की दर के 5.3 प्रतिशत रहने की बात कही गई थी। दरों के पहली तिमाही के 5 प्रतिशत से बढ़कर चौथी तिमाही में 5.6 प्रतिशत हो जाने का अनुमान जताया गया था। यह दर 4 प्रतिशत के लक्ष्य से बहुत अधिक है।
मिलाजुला परिदृश्य नजर आया
वैश्विक कारकों की बात करें तो मिलाजुला परिदृश्य नजर आता है। यूरो क्षेत्र में मुद्रास्फीति की दर फरवरी के 8.5 प्रतिशत से कम होकर मार्च में 6.9 प्रतिशत हो गई। ऐसा मोटे तौर पर इसलिए हुआ कि ईंधन कीमतों में गिरावट आई। बड़े तेल उत्पादकों के उत्पादन में कमी करने के ताजा निर्णय के बाद स्थिति उलट भी सकती है। मूल मुद्रास्फीति भी 5.7 प्रतिशत के नए उच्चतम स्तर पर पहुंच रही है। इससे कीमतों के दबाव की प्रकृति का अंदाजा मिलता है और यह यूरोपीय केंद्रीय बैंक को दो प्रतिशत के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए किस प्रकार के प्रयास करने होंगे।
फेडरल रिजर्व द्वारा अनुमान से कम मौद्रिक सख्ती के कारण मुद्रा बाजार पर दबाव कम होगा और भारत जैसे देशों को बाहरी खाते के बचाव में मदद मिलेगी। चालू खाते के घाटे में कमी के साथ ही इससे रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति पर नियंत्रण कायम करने पर ध्यान देने में मदद मिलेगी।