New Parliament Building inauguration controversy: नए संसद भवन के उद्घाटन का मामला अब और गरमाता जा रहा है। आज गुरुवार को मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है। इससे राजनीति और गरमा गई है। इस मामले में जनहित याचिकाएं डाली गई हैं। जिसमें कोर्ट से निर्देश देने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट में डाली गई जनहित याचिकाओं में कहा गया है कि नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा नहीं बल्कि भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए।
नए संसद भवन के उद्घाटन का मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। इस मामले को लेकर एक जनहित याचिका दायर कर मांग की गई है कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए। कांग्रेस सहित 19 विपक्षी पार्टियां खुलकर प्रधानमंत्री द्वारा किए जाने वाले उद्घाटन का विरोध में उतर आई है। इस कारण कांग्रेस सहित इन सभी विपक्षी पार्टियों ने नए संसद भवन उद्धाटन कार्यक्रम से दूरी बनाने का फैसला किया है।
विपक्ष ने दिखाई एकजुट
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को नए संसद भवन का उद्घाटन करना चाहिए। अगर ओम बिडला नए संसद भवन का उद्धाटन नहीं करते हैं तो उनकी पार्टी इसका विरोध करेगी। नए संसद भवन का पीएम मोदी द्वारा उद्घाटन किए जाने का कांग्रेस, TMC, RJD सहित करीब 20 पार्टियां विरोध कर रही है। नए संसद भवन का आगामी 28 मई को उद्घाटन समारोह है। जिसका
यचिका में कहा निमंत्रण पत्र असंवैधानिक
याचिका में कहा है कि Article 85 के तहत राष्ट्रपति संसद सत्र बुलाते हैं। Article 87 के तहत राष्ट्रपति का संसद में अभिभाषण होता है। जिसमें राष्ट्रपति दोनों सदनों को संबोधित करते हैं। संसद से पारित सभी विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बनते हैं। इसलिए, राष्ट्रपति संसद के हाथों नए भवन का उद्घाटन करवाया जाए। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि 18 मई को लोकसभा सचिवालय द्वारा संसद भवन के
उद्घाटन का जो निमंत्रण पत्र जारी किया है, वह संवैधानिक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन बैंच से कल याचिकाकर्ता रखेंगे अपनी मांग
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वो यह निर्देश दे कि उद्घाटन राष्ट्रपति से करवाया जाए। नए संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को होगा। सुप्रीम कोर्ट में इस समय अवकाशकालीन बेंच बैठ रही है। याचिकाकर्ता कल 26 मई को वहां अपनी बात रखेंगे। लेकिन कानून जानकारों का मानना है कि ऐसा बहुत कम होता है कि इस तरह के कार्यकारी निर्णय में सुप्रीम कोर्ट कोई दखल दे। इस मांग पर विपक्ष को फैसला की उम्मीद कम है।