नई दिल्ली। भारत सहित एशिया के देशों में डायबिटीज मरीजों की संख्या भयावह रूप ले रही है। इसका सबसे बड़ा कारण कोरोना संक्रमण काल के दिनों में बदली आदत और दिनचर्या है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार लॉकडाउन में घर पर रहने के कारण 90 प्रतिशत लोगों के जीवन-शैली में आए बदलाव ने उनको अब डायबिटीज का मरीज बना दिया है। मध्य वर्गीय परिवारों के लोगों में बढ़ रहे मोटापे के चलते डायबिटीज कोरोना महामारी के पहले फैल रहा था।
एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में 2021 में डायबिटीज मरीजों की संख्या दस साल पहले की तुलना में 6 गुना अधिक हो गई है। इस्लामाबाद के एक हॉस्पिटल में डायबिटीज विशेषज्ञ मतिउल्लाह खान ने कहा कि पहले पाकिस्तान में डायबिटीज 40 साल से अधिक उम्र के लोगों में होती थी। लेकिन अब ये 30 साल और अब 20 साल से अधिक के लोगों में हो रही है।
विशेषज्ञों ने दी चेतावनी
विशेषज्ञों ने चेतावनी जारी की है कि अगर डायबिटीज इलाज ना हो तो इससे हृदय रोग, ब्रेन स्ट्रोक और अंधापन भी हो सकता है। डायबिटीज सेंटर के एक अधिकारी ने बताया कि देश में इस रोग को लेकर जागरूकता की कमी है। सरकार ने लोगों को शिक्षित और जागरूक बनाने की दिशा में कोई पहल नहीं की है। जबकि डायबिटीज के मरीजों की संख्या लगातार तेजी से बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार मामले में पाकिस्तान या भारत ही अकेला उदाहरण नहीं है। एशिया के सभी देशों में डायबिटीज से हालात खराब हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार डायबिटीज का कारण पैनक्रियाज का ठीक से काम ना करना है। पैनक्रियाज पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन बनाने में जब अक्षम होता है, तो खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। डायबिटीज के के दो प्रकार होते हैं। पहला टाइप-1 मरीजों में इसकी वजह वंशानुगत होती है। जबकि टाइप-2 डायबिटीज जीवन शैली संबंधी कारणों से होता है। 90 प्रतिशत डायबिटीज मरीज टाइप-2 की श्रेणी में आते हैं।
कोरोना वायरस से डायबिटीज की स्थिति बदत्तर
रिपोर्टों के अनुसार कोरोना से डायबिटीज की स्थिति बदतर हो गई है। एक स्टडी के अनुसार नवंबर 2021 में लोग महामारी से पहले की तुलना में रोजाना औसतन दस प्रतिशत कम कदम चल रहे थे। यूरोप में हालांकि कोविड प्रतिबंध पहले हटा लिए गए। लेकिन लोगों की शारीरिक श्रम की मात्रा पहले जितनी नहीं हो सकी। एशिया में इसमें 30 प्रतिशत तक गिरावट आई है। जो कि डायबिटीज फैलने का मुख्य कारण है।