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Holi 2023: यहां है ‘गाली’ देने की अनूठी परंपरा, हंसी-ठिठोली भी करते हैं लोग

उत्तराखंडHoli 2023: यहां है 'गाली' देने की अनूठी परंपरा, हंसी-ठिठोली भी करते...

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नैनीताल। होली का खुमार सिर चढ़ कर बोल रहा है। होली में हंसी ठिठोली के साथ एक दूसरे को चिढ़ाने की परंपरा है। कुमाऊं में चीर बंधन या होलिका स्थापना पर धार या चोटी से नीचे के समीप के गांव को सामूहिक रूप से गाली देने की भी परंपरा है।

आधुनिकता के दौर में होल्यार चीर बंधन, होलिका स्थापना के दिन व होलिका दहन की रात को सामने के गांव वालों को गाली परंपरा निभाते हैं। इसी दौरान होलिका दहन पर वेदांती होली गायन किया जाता है।

हंसी ठिठोली के अंदाज में हैं गाली

बताया जाता है कि यह परंपरा काफी समय से चली आ रही है। जो आज भी जारी है। ग्रामीण सामने के गांव को हंसी ठिठोली के अंदाज में गाली देते हैं कि उन्हें न बुरा लगे और वह हंसी भी रोक नहीं पाएं।

प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रो.भगवान सिंह बिष्ट के अनुसार, यह परंपरा काली कुमाऊं या चंपावत जिले में है। काली कुमाऊं होली की संस्कृति का मूल केंद्र है। स्थान विशेष की विशेषताएं अलग-अलग होती हैं, उसकी अभिव्यक्ति भी अल रूप में होती है।

बुराई के परिप्रेक्ष्य में नहीं, यह हास्य विनोद के पुट का उदाहरण है। यह बुरे भाव के साथ नहीं, बल्कि परिस्थितिवश शुरू परंपरा होगी, जो आज भी जारी है। उपले की राख का टीका लगाते हैं, होली में होलिका की स्थापना गांव के समीप धार में या चोटी में चीड़ के पेड़ से विधि विधान से किया जाता है।

अक्षत-फूल के साथ ही चढ़ाई जाती है भेंट

चीड़ के पेड़ को इस तरह लाया जाता है कि उसका ऊपरी या निचला सिरा एक साथ धरती को स्पर्श न करे। होलिका स्वरूप पेड़ को गड्ढा बनाकर स्थापित किया जाता है और उसके चारों ओर उपले रखे जाते हैं।

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