अमित बिश्नोई
शरद पवार की पहचान संकट मोचक के अलावा भारतीय राजनीति के सर्वश्रेष्ठ मौसम विज्ञानी के रूप में भी होती है। मराठा दिग्गज जिन्होंने 25 साल पहले कांग्रेस से बगावत करके राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की थी, अपने भतीजे अजीत पवार के विद्रोह और उसके बाद पार्टी के कई नेताओं के दलबदल के बाद अपने राजनीतिक गुट को एकजुट रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे। दो साल पहले उनके भतीजे अजीत पवार ने उनके साथ वही कुछ किया जो दशकों पहले वो अपनी पैरेंट पार्टी के साथ कर चुके थे. पिछले 25 वर्षों में कई ऐसे मौके आये जब शरद पवार मुश्किल में दिखे मगर हर मुश्किल में उन्होंने अपने लिए, अपनी पार्टी के लिए अवसर निकाले। आज फिर एकबार वो महाविकास अघाड़ी में वो स्थितियां पैदा करने में कामयाब हुए हैं जब एकबार फिर वो या उनके परिवार का कोई सदस्य सत्ता की प्रमुख कुर्सी पर पहुँच सकता है.
अठारह महीने पहले शरद पवार खुद को संकट के बीच पाते थे मगर 18 महीने बाद वो अपनी नई पार्टी और नए चुनाव चिन्ह के साथ महा विकास अघाड़ी के भीतर पूरा फायदा उठाने की स्थिति में दिख रहे हैं। दो दिन पहले, एमवीए के घटक शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी (एसपी) ने 85-85 सीटों के शुरुआती सीट-बंटवारे के फॉर्मूले की घोषणा की। यह सौदा एक अस्थायी उपाय के रूप में हुआ था क्योंकि सत्ताधारी महायुति ने महाराष्ट्र की 288 सीटों में से आधे से अधिक सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर बढ़त हासिल कर ली थी. इधर शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस के बीच लगातार असहमति की ख़बरें आ रही थी। दोनों ही पार्टियां अपने लिए कम से कम 100 सीटें हासिल करने की जंग में उलझी हुई थीं। इस जंग के पीछे मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए दावे को मज़बूत करना माना जाता है.
शिवसेना यूबीटी मांग कर रही है कि MVA उद्धव ठाकरे को अपना सीएम चेहरा बनाए, जबकि कांग्रेस, लोकसभा में अपने प्रदर्शन से उत्साहित है, जहां वह राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और 48 में से 13 सीटें जीतीं, और उसे उम्मीद है कि उसके कई नेताओं में से कोई एक राज्य में प्रतिष्ठित कुर्सी पर बैठेगा। इधर पवार ने अभी तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई दावा नहीं किया है और 85-85 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात तय हो गयी है. इस समझौते ने एनसीपी को MVA की दोनों सहयोगी पार्टियों के बराबर ला खड़ा किया है. बताया जा रहा है कि सीट एडजस्टमेंट के लिए हुई बैठकों में शरद पवार ने अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय दिया और पहले जहाँ एनसीपी को 70 सीटें मिलने की बात हो रही थीं, बात को 85 सीटों तक ले आये, यकीनन ये शरद पवार की एक बड़ी कामयाबी कही जाएगी।
शरद पवार ने पश्चिमी महाराष्ट्र की पाटन सीट, जिस पर उनकी पार्टी ने पिछले 10 सालों में जीत हासिल नहीं की है, सेना (यूबीटी) के लिए छोड़ दी, जिसके बदले में उन्हें मराठवाड़ा क्षेत्र में कुछ अन्य सीटें मिल गईं। पवार ने कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के बीच चर्चा के दौरान गतिरोध को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बातचीत के गतिरोध पर पहुंचने के बाद शिवसेना और कांग्रेस के नेताओं ने पवार से संपर्क किया। आखिरकार पवार सभी दलों को चर्चा की मेज पर वापस लाने के पीछे महत्वपूर्ण कारक साबित हुए। अब तक, एमवीए ने 255 सीटों के लिए सीट-बंटवारे की घोषणा की है, जबकि शेष 33 सीटों में से 18 सीटें छोटी पार्टियों के लिए अलग रखी जानी हैं और कम से कम 15 सीटों पर कांग्रेस और शिवसेना के बीच अभी भी दौड़ जारी है, जिसमें से कोई भी पक्ष 100 सीटों पर अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं है।
शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत का कहना है कि हम 85 तक पहुंच गए हैं और पूरी उम्मीद है कि बचे हुए रन भी बना लेंगे लेंगे, यानि सीटों की संख्या 100 या उसके पार हो जायगी वहीँ कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार भी कांग्रेस के “शतक” पार करने को लेकर आशावादी है, उन्होंने कहा कि तीनों सहयोगी दलों के बीच 15 सीटों का आदान-प्रदान इस तरह से किया जाएगा कि पार्टी की कुल सीटें 100 से 105 के बीच होंगी। लेकिन ऐसा संभव नहीं है. कांग्रेस हो या फिर शिवसेना यूबीटी, दोनों में से कोई भी सौ सीटें हासिल नहीं कर सकता। बहरहाल जिन 15 सीटों पर अभी धमाचौकड़ी मची हुई है वो अभी एक दो दिन जारी रहेगी, ये कोशिशें अंतिम समय तक कुछ ज़्यादा हासिल करने के लिए ही हैं मगर इसमें कोई शक नहीं कांग्रेस और शिवसेना यूबीटी की रस्साकशी का फायदा उठाने में शरद पवार ज़रूर कामयाब हुए हैं.