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ONOE: राजनीतिक शगूफा या देश की ज़रुरत?

आर्टिकल/इंटरव्यूONOE: राजनीतिक शगूफा या देश की ज़रुरत?

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अमित बिश्नोई
केंद्र ने बुधवार को रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली समिति की सिफारिशों को स्वीकार करके 2029 तक अपने “एक राष्ट्र एक चुनाव” (ONOE) वादे को लागू करने की कवायद शुरू कर दी है। स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक लोकतंत्र को और भी अधिक जीवंत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। इस योजना को अमल में लाने के लिए इसके लिए संविधान में कई संशोधन भी करने पड़ेंगे और फिर इसे लोकसभा और राजयसभा में पेश किया जायेगा, जिसे पारित करने के लिए सरकार को दो तिहाई बहुमत की ज़रुरत होगी। यहीं पर “एक राष्ट्र एक चुनाव” योजना पर सवाल खड़े हो जाते हैं और ये साफ़ लगने लगता है कि सरकार इस मुद्दे को सिर्फ इसलिए उठाना चाह रही ताकि उन तमाम मुद्दों से लोगों का ध्यान भटक जाय जो देश में इस समय चर्चा में हैं और केंद्र की मोदी सरकार को विचलित किये हुए हैं. क्योंकि ये बात तो आईने की तरह साफ़ है कि केंद्र सरकार के पास इस संभावित बिल को पास कराने के लिए नंबर नहीं हैं और अंतर इतना बड़ा है कि इतनी बड़ी खरीद फरोख्त भी संभव नहीं हैं.

बता दें कि समिति किसीफरीसों के मुताबिक सबसे पहले, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी। दूसरे, आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के लिए भी संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी। दोनों ही कदमों के लिए संविधान में संशोधन को आगे बढ़ाने के लिए विपक्ष और गैर-एनडीए दलों के समर्थन की आवश्यकता होगी। कोविंद पैनल को अपनी राय देने वाले 47 राजनीतिक दलों में से 32 ने इस विचार का समर्थन किया और 15 ने इसका विरोध किया। एनडीए की सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी इस मामले में न्यूट्रल रुख अपनाया।

अब अगर निचले सदन यानि लोकसभा के नम्बरों को देखे तो भाजपा के पास संसद के निचले सदन में बहुमत नहीं है। कोविंद पैनल द्वारा सुझाए गए विधेयकों को पारित कराने के लिए उसे 543 की पूरी ताकत के साथ लोकसभा में 362 सांसदों या दो-तिहाई बहुमत के समर्थन की आवश्यकता होगी। हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों के बाद समर्थन करने वाली पार्टियों के पास लोकसभा में 271 सांसद हैं, जिनमें भाजपा के 240 सांसद शामिल हैं। टीडीपी और अन्य दल जो तटस्थ रहे हैं, उन्हें मिलकर लोकसभा में 293 सांसद का समर्थन ही मिल सकता है.

वहीँ एक राष्ट्र एक चुनाव की अवधारणा का विरोध करने वाली 15 पार्टियों के पास 205 लोकसभा सांसद हैं। इसमें विपक्षी दल भारत के 203 सांसद शामिल हैं। कुल मिलाकर जिन पार्टियों ने पैनल के सामने अपनी राय नहीं रखी उनमें 234 लोकसभा सांसद हैं। इसलिए संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए केंद्र को गैर-एनडीए और विपक्षी दलों की आवश्यकता होगी जो लगभग असंभव सी बात है.

वहीँ उच्च सदन यानि राज्यसभा की बात करें तो भाजपा के 115 सांसद हैं। छह मनोनीत सदस्य मिलकर एनडीए के पास राज्यसभा में संख्या 121 हो सकती है। वहीं, राज्यसभा में इंडिया ब्लॉक के 85 सांसद हैं। अगर राज्यसभा के 250 सदस्यों में से सभी सदस्य उपस्थित होते तो साधारण बहुमत 125 र दो तिहाई 164 सांसद होता है। वर्तमान में राज्यसभा में 234 सांसद हैं। एनडीए में शामिल 27 दल एक साथ चुनाव कराने के समर्थन में हैं जिनमें टीडीपी भी शामिल है, केवल नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) ही इसका विरोध कर रहा है। ऐसी स्थिति में एनडीए सरकार के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” प्रस्ताव को लागू करने के लिए विधेयक पारित कराना लगभग नामुमकिन होगा।

शायद इसीलिए कांग्रेस पार्टी ने वन नेशन वन इलेक्शन को एक राजनीतिक शगूफा बताया और कहा कि पीएम मोदी को ये बात अच्छी तरह मालूम है कि सदन में ये पास नहीं हो सकता लेकिन इस मुद्दे को उठाकर वो चाहते हैं हरियाणा और जम्मू कश्मीर में भाजपा के खिलाफ जो नाराज़गी है, युवा जिन मुद्दों पर आज चर्चा कर रहे हैं वो चर्चाएं इस नए शगूफे में दब जांय। दरअसल कोविंद कमेटी की सिफारिशों में इतने किन्तु परन्तु लगे हुए हैं कि वाकई में बहुत से सवाल ऐसे खड़े होते हैं जिनका जवाब न तो सरकार के पास है और न ही कोविंद कमिटी ने उसपर कुछ स्पष्ट किया। समिति ने 6000 से ज़्यादा पन्नों वाली सिफारिशें पेश की हैं, अभी तो कुछ ही पन्ने सामने आये हैं, अभी आने वाले दिनों इन पन्नों की परतें और खुलेंगी और नयी जानकारियां सामने आएँगी। फिलहाल तो यही कहा जायेगा कि ONOE एक शगूफा ही लगता है जो सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन व्यवहारिक नहीं लगता।

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