Rajasthan Election 2023: राजस्थान की राजनीति पर बारीक पकड़ रखने वाले दिग्गज राजनीतिज्ञों का मानना है कि राजस्थान चुनाव में ‘ओपीएस’ कांग्रेस का ‘बी’ प्लान है। यानी, चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होती है, तो उस स्थिति में कांग्रेस ने सरकारी बूस्टर ‘ओपीएस’ पर भरोसा जताया है। ओपीएस लागू करने के बाद चुनावी घोषणा पत्र में उसे कानूनी दर्जा देने की बात कही गई है।
कांग्रेस ने राजस्थान के विधानसभा चुनाव के लिए अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया। आज मंगलवार को कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने चुनावी घोषणा पत्र जारी किया है। घोषणा पत्र समिति अध्यक्ष सीपी जोशी ने दूसरे मुद्दों के साथ सरकारी कर्मचारियों पर फोकस किया है।
कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर
उन्होंने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) के लिए कानून बनाने की बात कही। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजस्थान चुनाव में ‘ओपीएस’, कांग्रेस का ‘बी’ प्लान है। चुनाव में अगर कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होती है, तो उस स्थिति में कांग्रेस ने अपने लिए सरकारी बूस्टर ‘ओपीएस’ पर भरोसा जताया है। राजस्थान में पुरानी पेंशन योजना यानी ओपीएस लागू हो चुका है। चुनावी घोषणा पत्र में उसे कानूनी दर्जा देने की बात कही है। ऐसे में कांग्रेस नेताओं को उम्मीद है कि पुरानी पेंशन का मुद्दा, उनके लिए मुनाफे का सौदा साबित होगा। इससे पहले कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनाव में भी ओपीएस का वादा किया था। दोनों राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी है।
जाति आधारित गणना, 4 लाख सरकारी नौकरियां, 10 लाख नए रोजगार
कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कई लुभावनी बातें कही हैं। इनमें चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा की राशि 25 लाख रुपए से बढ़ाकर ’50 लाख रुपए’ करना शामिल है। इसके अलावा जाति आधारित गणना, 4 लाख सरकारी नौकरियां, 10 लाख नए रोजगार, किसानों को 2 लाख रुपए का ब्याज मुक्त कर्ज, एमएसपी के लिए कानून बनाना और गैस सिलेंडर 400 रुपए में, इन सब बातों को चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया गया है। कांग्रेस पार्टी की महासचिव एवं स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी ने अपनी रैलियों में ‘ओपीएस’ का खूब जिक्र किया है। राजस्थान चुनाव में ‘पुरानी पेंशन’ को लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूरी तरह आश्वस्त नजर आते हैं। उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस और भाजपा के बीच चुनावी मुकाबला, कांटे की टक्कर में बदलता है, तो उस स्थिति में सरकारी कर्मियों व उनके परिजनों का वोट कांग्रेस पार्टी के लिए किसी बूस्टर से कम नहीं होगा।
कांग्रेस ने ‘ओपीएस’ को केवल एक चुनावी गारंटी तक सीमित नहीं रखा
अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तेज सिंह राठौड़ मानते हैं कि कांग्रेस पार्टी ने ओपीएस लागू कर और अब इसके लिए कानून बनाने की बात कहकर कर्मियों को अपनी तरफ करने का प्रयास किया है। कांग्रेस पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में ‘ओपीएस को कानूनी दर्जा’, इसे शामिल करने का मतलब है कि कांग्रेस ने ‘ओपीएस’ को केवल एक चुनावी गारंटी तक सीमित नहीं रखा है।
कांग्रेस पार्टी कह सकती है कि पहले ओपीएस लागू किया गया और अब उसे कानूनी दर्जा प्रदान करने का भरोसा दे दिया है। हालांकि इस मामले में बहुत कुछ ठोस नहीं है। दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो उस स्थिति में यह कानूनी दर्जा खत्म भी हो सकता है। दूसरे दल की सरकार, अपने मुताबिक, कानून में बदलाव कर सकती है। भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में ‘ओपीएस’ को लेकर कुछ नहीं कहा गया है। कर्मियों का एनपीएस में जमा पैसा, भारत सरकार के नियंत्रण में है। ‘पेंशन फंड एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी’ (पीएफआरडीए) में जमा पैसा, केंद्र की मर्जी के बिना राज्यों को नहीं दिया जा सकता। केंद्र सरकार, इस बाबत पहले ही इनकार कर चुकी है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले
राजस्थान चुनाव में ओपीएस का असर दिखेगा। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु कहते हैं, राजस्थान सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले होंगे। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में सरकारी कर्मियों का वोट, सत्ता समीकरण बिगाड़ने के लिए काफी है। राजस्थान में सरकारी कर्मचारी, अगर पूरी तरह से ओपीएस के समर्थन में मतदान करते हैं, तो सियासत के समीकरण बदलने में देर नहीं लगेगी। राजस्थान में लगभग दस लाख सर्विंग/रिटायर्ड कर्मचारी हैं। साथ में उनके परिवार भी हैं। यह संख्या, विधानसभा चुनाव में सत्ता के समीकरण को बनाने और बिगाड़ने के लिए काफी है। चुनावी राज्यों में एनएमओपीएस के बैनर तले ‘वोट फॉर ओपीएस’ कैंपेन और मतदाता जागरूकता अभियान शुरू किया गया है। अगर सरकारी कर्मियों और उनके परिवार को मिलाएं, तो हर विधानसभा क्षेत्र में लगभग 25 हजार वोट, नफे-नुकसान का सबब बन सकते हैं।