- सालों का सूखा इस बार भी नहीं हुआ खत्म, पार्टियों के साथ जनता के भरोसे पर नहीं जम रही बात
पारुल सिंघल
उत्तर प्रदेश की राजनीति की आबो – हवा बदलने की कुव्वत रखने वाली मेरठ हापुड़ लोकसभा सीट पर इस साल भी महिला प्रत्याशियों का सूखा खत्म नहीं हो पाया है। राजनीतिक दलों के साथ ही जनता भी आधी आबादी पर भरोसा नहीं कर पा रही है। तकरीबन 40 सालों से इस सीट पर महिला प्रत्याशी जनता का विश्वास जीतने में असफल रहीं हैं। यही नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर महिलाओं की स्थिति काफी खराब है। देश की राजनीति में जबरदस्त पकड़ रखने वाली महिलाओं को लेकर पश्चिमी यूपी के हालात काफी दयनीय हैं।
महिलाओं की पकड़ कमजोर
विशेषज्ञ बताते हैं कि पश्चिमी यूपी में मजबूत महिला प्रत्याशियों की कमी के साथ ही उनकी राजनीति में कमजोर पकड़ होना भी टिकट न मिलने की बड़ी वजह है। मजबूत महिला प्रत्याशी न होने के चलते अधिकतर राजनीतिक दलों द्वारा पुरुष प्रत्याशियों को ही उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारना पड़ रहा है। चुनिंदा नामों को छोड़कर अपने अपने क्षेत्र में राजनैतिक दलों की सूची में महिला प्रत्याशियों की स्थिति और क्षेत्र में पकड़ काफी खराब है।
जनता को नहीं भरोसा
राजनैतिक पंडितों के अनुसार पश्चिमी यूपी की सीटों पर जनता द्वारा महिला प्रत्याशियों पर विश्वास न जताना भी उन्हें टिकट न मिलने का बड़ा कारण है। बीते वर्षों की स्थिति पर गौर करें तो, स्पष्ट है कि जिन कुछ पार्टियों ने महिला प्रत्याशियों को टिकट दिए गए उन्हें लंबी हार का सामना करना पड़ा। महिला प्रत्याशियों द्वारा जीत दर्ज नहीं करवाई जा सकी। इसका सीधा सा अर्थ यह माना जा रहा है कि यहां की जनता महिला प्रत्याशियों पर भरोसा नहीं कर पा रही है। विशेषज्ञ बताते हैं कि मेरठ सीट पर वर्ष 1984 के बाद महिला प्रत्याशी द्वारा जीत दर्ज नहीं करवाई जा सकी।
पार्टियां नहीं ले रहीं रिस्क
मेरठ हापुड़ लोकसभा सीट की बात करें तो यहां कई सालों से बीजेपी उम्मीदवार को ही जीत मिल रही है। एक ही प्रत्याशी द्वारा जीत दर्ज करवाने के बाद बीजेपी किसी भी तरह से इसे बदलने का रिस्क लेने को तैयार नहीं दिख रही। सपा -बसपा द्वारा भी यहां आज तक की किसी महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारने का रिस्क नहीं देखा गया। कांग्रेस ने जरूर महिलाओं पर भरोसा जताते हुए पांच बार प्रत्याशियों को टिकट देने का जोखिम उठाया लेकिन किसी भी प्रत्याशी द्वारा जीत हासिल नहीं की जा सकी।
पश्चिमी यूपी में ये रही महिलाओं की स्थिति
पश्चिमी यूपी की सीटों पर महिलाओं की स्थिति बेशक चिंतनीय है लेकिन मेरठ लोकसभा सीट पर सबसे पहले महिला प्रत्याशी ने ही विजय पताका फहराई थी। वर्ष 1980 में इस सीट पर कांग्रेस ने मोहसिना किदवई को टिकट दिया था। मोहसिना ने इस चुनाव में अपनी जीत दर्ज करवाई थी। 1984 में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में दोबारा मोहसिना को मैदान में उतारा था। इस बार भी मोहसिना ने अपनी जीत हासिल की थी। इसी वर्ष उनके साथ जनता पार्टी से अंबिका सोनी और नाहिदा मलिक ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था लेकिन, दोनों को ही हार का सामना करना पड़ा। 1998 में एक बार फिर कांग्रेस और जनता दल ने महिला प्रत्याशियों को टिकट दिए लेकिन इस बार भी इन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2014 में कांग्रेस ने अभिनेत्री नगमा को इस सीट से टिकट दिया था लेकिन जनता ने उन्हें भी सिरे से नकार दिया। इससे पहले वर्ष 2004 में और वर्ष 2009 में भी महिला प्रत्याशियों को टिकट दिए गए थे लेकिन जनता ने किसी पर भरोसा नहीं जताया। वर्ष 2019 में किसी भी पार्टी ने महिला प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया।
कैराना में महिलाओं की बल्ले बल्ले
पश्चिमी यूपी में कैराना लोकसभा सीट पर महिलाओं ने अपने दमखम से जीत का शानदार इतिहास दर्ज करवाया हुआ है। इस सीट पर सबसे पहले आरएलडी की महिला प्रत्याशी अनुराधा चौधरी ने 2004 में चुनाव जीता था। इसके बाद 2009 में बीएसपी से तबस्सुम हसन ने चुनाव जीता। बीते साल उप चुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल की। यहां महिलाओं की स्थिति काफी मजबूत है। बिजनौर में भी महिलाओं की स्थिति काफी बेहतर रही है। 1985 में सबसे पहले मीरा कुमारी ने यहां चुनाव जीता था। 1989 में बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने चुनाव लड़ा और जीत दर्ज करवाई। 1998 में सपा से ओमवती ने चुनाव जीता और सांसद बनी थी।
यहां भी महिलाओ का टोटा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद सीट पर आज तक कोई भी महिला प्रत्याशी अपनी जीत दर्ज नहीं करवा पाई है। मुजफ्फरनगर, बागपत सहारनपुर सीट पर भी महिलाओं का सूखा बरकरार रहा है। यहां भी आज तक कोई भी महिला सांसद नहीं चुनी जा सकी ।