Uma Bharti on Twitter: ट्वीट पर फूटा उमा भारती का दर्द,गंगा मंत्रालय वापस लेने पर कहीं ये बात

नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती एक मुखर नेता हैं। वह अक्सर बड़े मंचों पर बात खुलकर रखती हैं। अब उन्होंने गंगा मंत्रालय वापस लेने पर अपने दिल की बात ट्वीट पर कही है। इसके लिए उन्होंने लगातार 41 ट्वीट किए। इन ट्वीट के माध्यम से उमा भारती ने बताया कि कैसे गंगा मंत्रालय उनसे वापस ले लिया। इसी के साथ बताया कि कौन उनके साथ उस समय खड़ा रहा।
Read also: Andhra Pradesh Violence : आंध्र प्रदेश में शहर का नाम बदलना भारी पड़ा, भीड़ ने फूंक दिया मंत्री का घर
उमा भारती ने ट्वीट कर कहा कि देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु अपना समस्त कार्यभार महादेव को सौंपकर चले गए। अब महादेव अपनी सम्पूर्ण शक्तियों के साथ देवोत्थान एकादशी तक संसार की रक्षा करेंगे। पिछली दिनों कोरोनाग्रस्त हो जाने के कारण थोड़ी अस्वस्थ रही। ऐसे में मैं अपने मन की बात न कह पाई। मैं मन की बात नहीं कह पाऊं और अपने निर्धारित लक्ष्य पर न चल सकू तो इससे घुटन होती है।
मेरी अस्वस्थता और बढ़ती है। मैं गुरू पूर्णिमा से अब तक जीवन के बारे में बहुत ही शॉर्ट में पोस्ट करूंगी। उन्होंने टवीट में लिखा है कि दो बहुत बड़े पब्लिकेशंस ने उनसे जीवनी पर किताब छापने की अनुमति मांगी थी किन्तु सहमति नहीं दी। मैं अति सामान्य व्यक्ति हूं ऐसा कुछ विशेष है नहीं कि कोई किताब लिखी जाए। मेरे जीवन में असाधारण घटा। वह भगवान आप सबकी कृपा है। लेकिन मुझे लगा कि गंगा सागर से चलकर शराब की दुकान के सामने वो हाथ में गाय का गोबर लेकर क्यों खड़ी हो गई, यह तो सबको बताऊं।
उन्होंने आगे लिखा- तब तो पूरे जीवन का वृत्त संक्षेप में बताना पड़ेगा। किताब लिखने की जगह मेरे दफ्तर के एक सहयोगी को डिक्टेशन दूंगी। अपने पूरे जीवन का वृत्तांत पोस्ट करूंगीं। उसमें शब्द, भाषा, कॉमा, फुल स्टॉप मेरे होंगे।
मेरे शब्द व वाक्य ज्यों का त्यों रखते हुए अपने विचार व टिप्पणी देने के लिए अपने अधिकार का पूरा प्रयोग करें। विशेष प्रसंग मैं पोस्ट में बताती हूं। गंगा की अविरलता पर दिया मेरे मंत्रालय का एफिडेविट सरकार द्वारा लिए निर्णय के विपरीत था। ऊर्जा, पर्यावरण एवं उनके जल संसाधन मंत्रालय की कमेटी बनी। जिसमें तीनों मिलाकर गंगा पर प्रस्तावित पॉवर प्रोजेक्ट पर एफिडेविट बनाना था। कैबिनेट सेक्रेटरी और पीएमओ सहमति के बाद मंत्रालय के माध्यम से उसको सुप्रीम कोर्ट में पेश होना था। तीनों मंत्रालयों की गंगा अविरलता पर सहमति नहीं बन पाई। भारत के पर्यावरण विशेषज्ञों की राय व गंगा भक्तों की आस्था दांव पर थी।
उन सबकी राय में हिमालय, गंगा एवं उसकी सहयोगी नदियों पर 72 पॉवर प्रोजेक्ट गंगा, हिमालय के अलावा पूरे भारत के पर्यावरण को संकट का विषय थे। मैंने और मेरे गंगा निष्ठ सहयोगी अधिकारियों ने बिना किसी परामर्श किए कोर्ट में एफिडेविट प्रस्तुत कर दिया। एफिडेविट पर ऊर्जा एवं पर्यावरण मंत्रालय और उत्तराखंड त्रिवेंद्र रावत की सरकार ने अपनी असहमति दर्ज की। फिर कोर्ट ने तुरंत केंद्र सरकार से परामर्श करके एफिडेविट को अमान्य कर दिया।
उन्होनें लिखा है वह आज कोर्ट की सम्पत्ति है और शायद केंद्र सरकार उसके विपरीत नया एफिडेविट पेश नहीं कर पाई। स्वाभाविक है मैंने अनुशासनहीनता की, मुझे तो मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जा सकता था, लेकिन गंगा अविरलता तो बच गई। गृहमंत्री अमित शाह उस समय राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। वो गंगा अविरलता के पक्ष में रहे। उन्हीं के हस्तक्षेप से उमा को निकाला नहीं गया। लेकिन विभाग बदल दिया इतना तो होना था।
विभाग नितिन गडकरी के पास पहुंचा तो उन्होंने उमा भारती को कभी गंगा से अलग नहीं किया। उमा गंगा से जोड़े रखने की राह वह निकालते रहे। जिस पर अमित शाह का समर्थन रहा। अमित अब गृहमंत्री हैं। किन्तु तब वह पार्टी अध्यक्ष थे। उन्हीं की बात मानकर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा था।