- लद्दाख के बाद चीन ने भारत की एक और आपत्ति ठुकराई
- राजनाथ ने की हाईलेवल मीटिंग
सरहद पर भारत और चीन के बीच पहले से ही चल रहा तनाव चल रहा है.चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि गलवान घाटी चीन का इलाका है और भारत जानबूझकर वहां विवाद पैदा कर रहा है. भारत गलवान घाटी में चीन के इलाके में अवैध तरीके से डिफेंस फैसिलिटीज का निर्माण कर रहा है. इस कारण चीन की सेना के पास इसका जवाब देने के अलावा कोई चारा नहीं है. इससे दोनों पक्षों के बीच सीमा पर विवाद बढ़ने की आशंका है.चीन की हरकतों के बीच भारत में भी हालात से निपटने की तैयारियां शुरू हो गईं. मंगलवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और तीनों सेनाओं के प्रमुखों से लंबी मीटिंग की. इसमें दो फैसले हुए।.पहला- इस क्षेत्र में सड़क निर्माण जारी रहेगा. दूसरा- भारतीय सैनिकों की तैनाती उतनी ही रहेगी जितनी चीन की है.
लद्दाख में पहले से ही तनाव
लद्दाख में टकराव बढ़ने की आशंका के बीच पाकिस्तान के साथ मिलकर चीन ने एक और कदम उठाया है जिससे भारत की परेशानी बढ़ सकती है.पाकिस्तान ने चीन की सरकारी कंपनी के साथ अरबों डॉलर का समझौता किया है जिसके तहत पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) में दिआमेर-भाषा बांध का निर्माण किया जाएगा.चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के तहत इस परियोजना का काम गिलगित-बाल्टिस्तान में शुरू होगा. भारत शुरू से ही इस आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का विरोध करता रहा है क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरेगा.
भारत के लिए महत्वूपर्ण क्यों गलवान?
भारत के लिए इस क्षेत्र का काफी महत्व है, क्योंकि गलवान नदी रणनीतिक श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क के करीब से गुजरती है. यह सड़क पिछले साल बनकर पूरी हुई है. गलवान घाटी में चीनी सैनिकों की उपस्थिति सड़क के लिए खतरा है. यह सड़क सब सेक्टर नॉर्थ में तैनात सैनिकों और काराकोरम पास के लिए महत्वपूर्ण है. हालांकि, भारतीय सेना ने भी सैनिकों की तादाद बढ़ाई है, जिसमें अन्य क्षेत्रों से सैनिकों की तैनाती और निगरानी गतिविधियों को शामिल किया गया है. हालांकि, भारतीय सेना को जवाबी कार्रवाई के लिए अभी जमीनी स्तर पर निर्देश नहीं मिले हैं.सूत्रों ने कहा कि चीनी सैनिकों को पीछे हटाने के लिए 5-6 बार बातचीत के नतीजे सिफर रहे हैं. इसके अलावा, गलवान में चार जगहों के अलावा चीनी सेना ने पैंगोग झील से लगे इलाकों में भी दखंलदाजी की है. चीन का इरादा इन इलाकों में सशस्त्र पोस्ट बनाने का संकेत देता है. अगर ऐसा हुआ तो 1960 के बाद पहली बार वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) में परिवर्तन होगा.