करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक गर्जिया मन्दिर के टीले में आ गयीं हैं दरारें
मंदिर को बचाने में मुस्लिम समाज भी दे रहा है महत्वपूर्ण योगदान
रामनगर। करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक गर्जिया मंदिर के टीले में आयी दरारों से मंदिर की सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। बरसात से पहले इन दरारों को भरे जाने का कार्य बिना सरकारी सहयोग के चलाया जा रहा है। खास बात यह है कि हिंदूओं के तीर्थ स्थल को बचाने में मुस्लिम समाज के लोग भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
मंदिर के पुजारी सहित अनेक श्रद्धालुओं के साथ कंधे से कंधे मिलाकर मुसलमान भी मंदिर को सुरक्षित रखने के लिये भरसक प्रयास कर रहे हैं। भगवान तो एक है, उसके घर को बचाना सबसे बड़ा धर्म है की बात कह मुस्लिम समाज के लोग तन-मन से टीले की दरारों को भरने में जुटे हैं।
हिन्दुस्तान की पहचान है यहां की गंगा-जमुनी तहजीब जो इंसानियत को धर्म समझती है और दूसरे धर्म को भी उतना ही सम्मान देती है जितना अपने धर्म को दिया जाता है। ईश्वर-अल्लाह तेरे नाम को मानने वाले लोग हिंदू-मुस्लिम समाज में आज भी मौजूद हैं जो गंगा-जमुनी तहजीब को जिंदा रखे हुए हैं।
इसी हिंदू-मुस्लिम एकता के साक्षात दर्शन हो रहे हैं उत्तराखंड के प्रमुख तीर्थ गर्जिया मंदिर पर जहां मंदिर के टीले में आयी दरारों को भरने के लिये हिंदू-मुस्लिम एकजुट होकर प्रयास कर रहे हैं। इन लोगों में सलाउद्दीन भी भी शामिल हैं जो गर्जिया मंदिर को सुरक्षित रखने के लिये दिन-रात एक किये हुए हैं। पूछने पर सलाउद्दीन कहते हैं कि गर्जिया मंदिर करोड़ों हिंदूओं की आस्था का प्रतीक है। इसे बचाया जाना बेहद जरूरी है। भगवान तो एक है, उसके घर को बचाना सबसे बड़ा धर्म है।
बरसात से पहले मंदिर को करना होगा सुरक्षित
उत्तराखंड के प्रमुख तीर्थों में से एक गर्जिया देवी का मंदिर उत्तराखंड के सुंदरखाल गांव में स्थित है। यह माता पार्वती के प्रमुख मंदिरों में से एक माना गया है। पौराणिक काल से एक टीले में स्थित गर्जिया मन्दिर में देश भर से श्रद्धालु दर्शन करने के लिये आते हैं। लेकिन इस प्राचीन मंदिर के टीले में दरारें आ जाने से मंदिर के अस्तित्व पर ही संकट के बादल छा गये हैं। आने वाली बरसात में यह दरारों और बड़ी हो सकती हैं जिससे मंदिर की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने मंदिर के जीर्णाेद्धार की घोषणा की थी। मगर इतना समय गुजरने के बाद भी यहां जीर्णोधार का कार्य शुरू नहीं हो सका है। मंदिर के पण्डित मनोज पांडेय का कहना है कि टीले में आयी दरारों के कारण मंदिर को नुकसान होने का अंदेशा है। बरसात आने से पहले टीले की दरारों में जाल में पत्थर भर कर लगवाया जा रहा है। मंदिर को बचाने के लिए हिंदू और मुसलमान मिलकर कार्य कर रहे हैं।