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Char Dham Yatra: घोड़ा-खच्चर की दुर्दशा पर चुप धामी सरकार, 15 दिन में 17 की मौत

उत्तराखंडChar Dham Yatra: घोड़ा-खच्चर की दुर्दशा पर चुप धामी सरकार, 15 दिन...

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Char Dham Yatra: चार धाम के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए उत्तराखंड के घोड़ा-खच्चर खुद को जोखिम में डालकर यात्रा पूरी करवाते हैं। लेकिन इन घोड़ा-खच्चर की कोई सुध नहीं लेता, तीर्थ यात्रियों के बोझ और मालिक की यातनाओं को सहते हुए चुपचाप आपने गंतव्य की ओर बढ़ते जाते हैं। बता दें कि मई 2023 में चार धाम यात्रा के दौरान 15 दिन के भीतर 17 घोड़ा-खच्चर की मौत हो चुकी है। हर साल चार धाम की यात्रा के दौरान घोड़ा-खच्चर की दुर्दशा का यही हाल रहता है। हालांकि घोड़ा-खच्चर की दुर्दशा पर मेनका गांधी कई बार संसद में भी सवाल उठा चुकी हैं। लेकिन इसके बाद भी कुछ नहीं होगा। पिछले साल वर्ष 2022 में भी करीब 50 घोड़ा खच्चरों की मौत हो गई थी। इतने सारे घोड़ा-खच्चर की मौत के बाद धामी सरकार हरकत में तो आई। लेकिन उसके बाद जैसे ही चार धाम यात्रा धीमी हुई सरकार ने भी इस ओर से मुंह फेर लिया।

15 दिन में 17 घोड़ा-खच्चरों की मौत

इस बार भी चारधाम यात्रा चालू है। तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए इस बार भी घोड़ा-खच्चर हैं। लेकिन इन घोड़ा-खच्चरों की हालत इस साल भी पहले जैसे ही खराब है। घोड़ा-खच्चरों को ना तो आराम करने दिया जाता है और ना ही उनको ठीक से खाना दिया जाता है। यहं कारण है कि केदारनाथ यात्रा शुरू होने के 15 दिनों के भीतर ही 17 घोड़ा-खच्चरों की मौत हो गई है। यात्रा शुरू होने से पहले ही सरकार की ओर से दावा किया गया था कि घोड़ा-खच्चरों को आराम देने और गर्म पानी उपलब्ध कराने का इंतजाम किया है।

इसके लिए पशु चिकित्सक भी तैनात किए जाएंगे। लेकिन इसके बाद भी घोड़ा-खच्चरों को आराम और गर्म पानी नहीं दिया गया। लिहाजा पैदल मार्ग पर पड़ी बर्फ में फिसलकर तो कुछ की तबियत बिगड़ने पर मौसत हो गई। इस बार केदारनाथ धाम पैदल मार्ग पर चार हजार घोड़ा-खच्चर तीर्थ यात्रियों के लिए और एक हजार माल ढुलाई के लिए पंजीकृत हैं। पिछले साल यात्रा के पहले पखवाड़े में 50 घोड़ा-खच्चरों की मौत हुई थी।

नहीं दिया जाता पर्याप्त आराम और गर्म पानी

गौरीकुंड से केदारनाथ तक 16 किमी चढ़ाई और वापसी में 16 किमी का ढलान घोड़ा-खच्चर के लिए मुसीबत भरा होता है। संचालक घोड़े-खच्चरों को सूखा भूसा, गुड़ और चना खिलाते हैं। लेकिन घोड़ा-खच्चर को पर्याप्त आराम और गर्म पानी नहीं मिलता है। चिकित्सकों के अनुसार भूसा, गुड़ और चना खाते ही उनके पेट में गैस बनती है और असहनीय दर्द के कारण मौत हो जाती है। ऐसे 10 मामले अब तक सामने आए हैं। इसमें छह घोड़ा-खच्चरों की मौत ढलान पर फिसलने से हुई है।

एक दिन में गौरीकुंड से केदारनाथ धाम के तीन चक्कर

चारधाम यात्रा में विकट भौगोलिक परिस्थितियों के चलते घोड़ा-खच्चर श्रद्धालुओं को यात्रा पूरी कराते हैं। केदारनाथ में श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या के कारण सबसे ज्यादा ओवरलोड घोड़े़ और खच्चरों पर पड़ता है। समुद्रतल से 11,750 फिट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 18 से 20 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। इस दूरी में यात्री को Kedarnath Dham पहुंचाने में घोड़ा-खच्चर key role निभाते हैं। संचालक और हॉकर रुपए के लिए घोड़ा-खच्चरों से एक दिन में गौरीकुंड से केदारनाथ के 3 चक्कर लगवाते हैं। रास्ते में उन्हें पलभर आराम नहीं मिल पाता है।

कई संगठनों ने उठाई आवाज, चुप है धामी सरकार

चार धाम यात्रा के दौरान घोड़ा खच्चरों की हो रही दुर्दशा पर कई पशु प्रेमियों और समाजिक संगठनों ने आवाज उठाई। इतना ही नहीं विधानसभा के सामने इसको लेकर प्रदर्शन भी किया गया। लेकिन इसके बाद भी धामी सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इसके उलट धामी सरकार में मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि घोड़ा-खच्चर उत्तराखंड के यातायात की रीढ़ हैं। उनका कहना है आदिकाल से उत्तराखंड में धोड़ा खच्चर के माध्यम से ऊंचाई पर समान ढोया जाता रहा है। इसके अलावा दूरगामी क्षेत्रों में जहां पहुंचने का कोई साधन नहीं होता वहां पर घोड़ा खच्चर ही मददगार साबित होते हैं

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