नई दिल्ली। त्रिपुरा की 60 विधानसभा सीटों पर 16 फरवरी गुरुवार को मतदान होगा। त्रिपुरा विधानसभा चुनाव 2023 में इस बार 259 उम्मीदवार मैदान में हैं। त्रिपुरा की सत्ता भारतीय जनता पार्टी के पास है। भाजपा ने दोबारा सत्ता में आने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा को सत्ता में लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा दिग्गज नेताओं ने जमकर प्रचार किया।
कांग्रेस लेफ्ट गठबंधन और टिपरा मोथा भी मैदान में
कांग्रेस ने इस बार लेफ्ट फ्रंट के साथ गठबंधन किया है। वहीं विस चुनाव में इस बार शाही परिवार के उत्तराधिकारी प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मन की नई पार्टी टिपरा मोथा ताल ठोक रही है। ऐसे में लड़ाई त्रिकोणीय है।
ये है पार्टियों के प्रत्याशियों का गणित
भारतीय जनता पार्टी और आईपीएफटी एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने 55 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। आईपीएफटी के पांच प्रत्याशी भी चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने लेफ्ट के साथ गठबंधन किया है। सीपीएम 43 और कांग्रेस 13 सीटों पर मैदान में है। एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन है। प्रद्योत बिक्रम की नई पार्टी टिपरा मोथा ने 42 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के 28 उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं। अन्य दलों के 15 प्रत्याशी हैं। 58 प्रत्याशी निर्दलीय हैं।
2018 का चुनाव गणित
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव 2018 में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। तब भाजपा ने आईपीएफटी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। भाजपा ने यहां 25 साल से शासन कर रहे लेफ्ट को दरकिनार कर दिया था। भाजपा के बिप्लब देब राज्य मुख्यमंत्री बने थे। 2022 में भाजपा ने देब की जगह मानिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया था। अब साहा पर भाजपा को सत्ता में वापसी कराने की जिम्मेदारी है।
कहीं भाजपा तो कहीं सीपीएम का दबदबा
जिलेवार सीटों को देखें तो पश्चिम त्रिपुरा में सबसे अधिक 14 विधानसभा सीट हैं। 2018 में इन सभी पर भाजपा और गठबंधन आईपीएफटी का कब्जा था। 14 में से 12 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। जबकि दो पर आईपीएफटी के प्रत्याशी जीते थे। सिपाहीजाला में सीपीएम का दबदबा देखने को मिला था।
यहां की नौ में से पांच सीटों पर सीपीएम के प्रत्याशी चुनाव जीते थे। जबकि तीन पर भाजपा और एक पर आईपीएफटी जीती थी। गोमती की सात में पांच और दक्षिण त्रिपुरा की सात में तीन सीटों पर भाजपा जीती थी।
अब उलझ गए राज्य के समीकरण
त्रिपुरा में सबसे अधिक आदिवासी समुदाय के मतदाता हैं। इनकी संख्या करीब 30 प्रतिशत है। 60 में से 20 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। 40 सीटें अनारक्षित है। यही कारण है कि इसके लिए सभी पार्टियों ने ताकत झोंक दी है। राज्य की सीमा बांग्लादेश से मिली हुई है। यहां 65 प्रतिशत बांग्लाभाषी रहते हैं। आठ प्रतिशत मुसलमान रहते हैं। 2021 में बांग्लादेश के दुर्गा पंडालों में खूब हिंसा हुई। इसका असर त्रिपुरा में देखने को मिला। यहां कई जिलों में तनाव की स्थिति रही। पिछली बार भाजपा और आईपीएफटी ने सभी 20 आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की थी।
लेफ्ट और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती?
त्रिपुरा में 1967 से विधानसभा चुनाव हो रहा है। पिछले पांच दशक के राजनीतिक इतिहास में यहां कांग्रेस और सीपीएम हमेशा से एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे। कभी कांग्रेस तो कभी सीपीएम की सत्ता यहां रही। 2018 में पहली बार भाजपा ने सत्ता हासिल की। अब कांग्रेस और CPM साथ हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प है कि दोनों पार्टियों का एक-दूसरे को कितना वोट ट्रांसफर होगा?
टिपरा मोथा ट्रप की भूमिका में
त्रिपुरा के राजशाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रद्योत बिक्रम की नई पार्टी टिपरा मोथा इस बार चुनावी मैदान में है। पार्टी इस बार ताश के पत्ते ट्रप की भूमिका में है। 42 सीटों पर टिपरा मोथा के प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। आदिवासियों के लिए अलग से ग्रेटर त्रिपुरालैंड की मांग कर रहे प्रद्योत चुनाव में किंगमेकर साबित हो सकते हैं। इसकी बानगी जिला परिषद चुनाव में देखने को मिल चुकी है। खासतौर पर आदिवासी बेल्ट में टिपरा मोथा का असर है।