मेरठ। इस समय बिहार की राजनीति एक बार फिर से नाजुक दौर से गुजर रही है। एक तरफ जहां भाजपा है तो अप्रत्यक्ष रूप से उसके साथ नीतिश कुमार खड़े तो दिखाई दे रहे हैं। लेकिन कहीं न कहीं वो अलग से अपनी रणनीति बना रहे हैं। वहीं जेल से छूटकर आए लालू प्रसाद यादव भी इस बार विधानसभा चुनाव में किंगमेकर की भूमिका में होंगे। जिस तरह से भाजपा नीतिश पर राजनैतिक दबाव डाल रही है। उससे सतर्क होते हुए नीतिश कुमार ने राजनीतिक विकल्प भी तलाशने शुरू कर दिए हैं। यानी अगर भाजपा नीतिश कुमार के अलावा अपना मुख्यमंत्री घोषित कर चुनाव लड़ती है तो ऐसी स्थिति में नीतिश के पास कई विकल्प खुले हुए हैं।
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यह सभी जानते हैं कि बिहार में डबल इंजन यानी एनडीए और जेडीयू की गठबंधन सरकार चल रही है। सुशासन बाबू नीतीश कुमार इस सरकार के मुख्यमंत्री हैं और भाजपा से तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी उप मुख्यमंत्री। भाजपा अपने इन्हीं दो उपमुख्यमंत्रियों के बूते बिहार की पूरी सरकार पर नजर रख रही है। बता दें कि कभी नीतिश कुमार भाजपा के धुर विरोधी हुआ करते थे। लेकिन बिहार में भाजपा की कट्टर विरोधी पार्टी रही जेडीयू को पैर जमाने के लिए एक सहयोगी की जरूरत थी। जिसके चलते भाजपा और जेडीयू का गठबंधन हुआ। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव 2025 में होना है और उससे पहले देश के आम चुनाव 2024 में होने हैं। ऐसे में भाजपा बिहार में नीतिश को किसी भी कीमत पर नाराज नहीं करना चाहेगी और उसकी ये भी कोशिश रहेगी कि बिहार में अधिक से अधिक सीटें उसके हिस्से में आए।
बिहार की गठबंधन वाली सरकार में भाजपा एनडीए बड़ी पार्टी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 74 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर थी। जबकि भाजपा गठबंधन एनडीए ने कुल सीटें 125 जीती थीं। जबकि लालू यादव की आरजेडी ने 75 सीटें जीती थी। आरजेडी की सहयोगी पार्टियों कांग्रेस व भाकपा माले, भाकपा ने 110 सीटें जीती थीं। भाजपा को डर था कि अगर नीतीश को मुख्यमंत्री बनाकर उनके साथ सरकार नहीं बनाई तो नीतीश लालू के बेटे तेजस्वी से गठबंधन करके सरकार बनाने का दावा पेश कर देंगे। सूत्रों की माने तो उस दौरान जो क्षेत्रीय दल एनडीए में हैं अंदरखाने नीतिश का साथ दे सकते हैं। इस तरह भाजपा सत्ता से बाहर हो जाती। खैर,यह तो रही 2020 के विधानसभा चुनाव के उपजे हालातों की बात। लेकिन अब शायद भाजपा बिहार में अपनी स्वतंत्र सरकार बनाने की रणनीति बना रही है। देश की राजनीति में यह कहा जाता है कि भाजपा सत्ता में आने के बाद अपनी सहयोगी पार्टियों को खा जाती है। यही वजह है कि नीतीश को कुर्सी जाने का डर सताने लगा।
इसका मतलब साफ है कि आने वाले सालों में बिहार सत्ता में बड़ा फेरबदल होने वाला है। इसका संदेह बहुत पहले से था और मीडिया में इसकी आशंकाएं जताई जाने लगी थीं कि बिहार में मुख्यमंत्री पद भाजपा के किसी नेता को दिया जा सकता है। यह भी कहा जा रहा था कि नीतीश राज्यसभा के जरिए केंद्रीय कैबिनेट में आ सकते हैं। यह भी कहा जा रहा था कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय बिहार के मुख्यमंत्री बन सकते हैं। इस समय बिहार की सत्ता में राजनैतिक हलचल अचानक तेज हुई है। उससे लगता है कि भाजपा बिहार में कोई बड़ा खेल करने की जुगत में हैं। वहां एक तरफ आरजेडी ने भाजपा और केंद्र सरकार के खिलाफ पोस्टर वॉर छेड़ रखा है, तो दूसरी तरफ भाजपा से नीतीश कुछ नाराज चल रहे हैं।
यह भी सच है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले कुछ समय से अपनी पार्टी के नेताओं और विधायकों के साथ लगातार मुलाकात कर उनके संपर्क में हैं। ऐसे में राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहे हैं कि क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा गठबंधन से मुक्त हो तेजस्वी यानि आरजेडी के साथ सरकार बनाने की योजना बनाने पर काम कर रहे हैं?
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पिछले महीने तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव एक साथ नजर आए। इस दौरान दोनों एक-दूसरे के प्रति सहज दिखे। इससे राजनैतिक गलियारों में कयास लगाए जाने लगे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने पुराने सहयोगी लालू प्रसाद यादव के प्रति नरम हो रहे हैं। जानकारों की माने तो नीतिश यह समझ रहे हैं कि बिहार में अपनी पकड़ बनानी है तो भाजपा से बेहतर आरजेडी के साथ ही गठबंधन ठीक है। बता दें कि बिहार में 10 जून को राज्यसभा के लिए चुनाव होना है। ये राज्ससभा चुनाव कहीं ना कहीं बिहार की राजनैतिक दिशा और दशा दोनों को तय करेगा। वहीं लालू प्रसाद यादव ने भी अब बिहार से भाजपा का सफाया करने के लिए राजनैतिक पतवार अपने हाथ में थाम ली है।