Holi 2023: कान्हा के आँगन में भक्तों ने खेली उमंग से भरी फूलों की होली

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इस्कॉन द्वारका (Iskcon Dwarka) में मनाया गया होली उत्सव, भक्तों की टोली ने खेली ‘लट्ठमार होली’

नई दिल्ली: चारों ओर होली की धूम है। दिलों में उमंग है, उत्साह है। इस अनूठे, रंग-रंगीले त्योहार को सभी अपने-अपने तरीके और जोश से मनाते हैं। गली-नुक्कड़, चौराहों पर रंगों की बौछारों के साथ होली-मिलन का जश्न भी खूब मनाते हैं। दिल्ली के श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर इस्कॉन द्वारका सेक्टर 13 में इस अवसर पर तीन दिवसीय होली उत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें रंग-बिरंगे फूलों के साथ भगवान कृष्ण के संग होली खेली गई। 5 मार्च को शोभा यात्रा से होली उत्सव की शुरुआत हुई। 7 मार्च को प्रातः 8 बजे मंदिर हॉल में सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रशांत मुकुंद दास द्वारा गौर कथा हुई। शाम को 6 बजे अभिषेक हुआ और उसके बाद प्रसादम वितरण किया गया।

ब्रज में भगवान श्रीकृष्ण एक हजार टन फूलों से होली खेला करते थे, यहाँ भक्तों ने एक हजार किलो फूलों से होली का आनंद उठाया। भक्तों ने अपने पसंदीदा फूलों की पंखुड़ियों को भगवान कृष्ण को अर्पण किया। ‘लट्ठमार होली’ का भी विशेष आकर्षण रहा। ब्रज की तर्ज पर भक्तों की टोली ने लट्ठमार होली का आनंद उठाया।

ISKCON Dwarka

गौरतलब है कि फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाले होली के इस त्योहार को गौड़ीय वैष्णव परंपरा में ‘गौर पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है और इस दिन से नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है। इसी दिन आज से लगभग 540 वर्ष पूर्व पश्चिम बंगाल के नदिया नामक गाँव में श्री चैतन्य महाप्रभु ने कृष्ण रूप में अवतार लिया था, लेकिन इस बार उनकी कांति गौर वर्ण थी, क्योंकि उन्होंने श्रीमती राधारानी के भाव को अंगीकार किया था। इसलिए उन्हें ‘कलियुग का गोल्डन अवतार’ भी कहा जाता है। इस दिन लोग भगवान के आविर्भाव का उत्सव मनाते हैं और प्रेम व निष्ठा से भरे इस उत्सव में उन सारी बातों को कथा के रूप में याद करते हैं, श्रवण करते हैं, जो हमारे जीवन में खुशहाली लाती हैं, चाहे वह होलिका दहन का ताप हो या भक्त प्रह्लाद का संताप। हिरण्यकशिपु की हार हो या नरसिंह अवतार का प्रहार।

दरअसल हम भी इस कलियुग में अपने जीवन में ऐसे कष्टों से मुक्त होना चाहते हैं, दुख, निराशा अवसाद के दायरे से बाहर निकलना चाहते हैं। इसके लिए कलियुग के करुणावतार श्री चैतन्य महाप्रभु से प्रेममयी भावों से कृपा की प्रार्थना करते हैं, क्योंकि चैतन्य महाप्रभु स्वयं भगवान विष्णु हैं।

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