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Nadda के हसीन सपने: दावा और हकीकत

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अमित बिश्नोई
बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कल पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने इस बरस होने वाले 9 राज्यों के विधानसभा चुनावों को जीतने का दावा तो कर दिया लेकिन उनका दावा सच्चाई के कितने करीब है इसपर बड़ा सवाल है. जे पी नड्डा जिनकी हिमाचल हारने के बाद सियासी इमेज दाग़दार हुई है उनका इस तरह का दावा अपनी झेंप छिपाने वाला जैसा लग रहा है. भाजपा की दो दिवसीय बैठक में प्रधांनमंत्री मोदी का सम्बोधन आज है, देखना होगा कि उनका दावा क्या रहता है.

वैसे कल की बैठक में जो सामने आया है उसमें एक महत्वपूर्ण बात प्रधानमंत्री मोदी और कर्नाटक जहां कुछ ही महीनों में चुनाव होने वाले हैं पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के साथ मुलाकात ही. इस मुलाकात को कर्नाटक की राजनीती में काफी अहम् माना जा रहा है. कर्नाटक में इन दिनों भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई हैं जो इन दिनों कमीशन मुख्यमंत्री के रूप में मशहूर हो गए हैं और कटमनी की यह बात एक राजनीतिक मुद्दा बन गयी है. कांग्रेस पार्टी ने कमीशखोरी के इस मुद्दे को पकड़ लिया है और उसे बड़े ज़ोरशोर से उठा रही है. कर्नाटक के लोगों में भी मौजूदा सरकार को लेकर काफी नाराज़गी है , ऐसे में येदियुरप्पा से पीएम मोदी की मुलाकात कर्नाटक की पार्टी राजनीति के लिए काफी अहम् और मुख्यमंत्री बोम्मई के लिए बहुत बड़ा खतरा है. हिमाचल के बाद कर्नाटक भाजपा खोना नहीं चाहती, इसीलिए उनसे पिछले चुनाव में हार के बाद भी कांग्रेस-जेडीएस सरकार को चलने नहीं दिया और तोड़फोड़कर दोबारा सत्ता में आ गयी. कर्नाटक ही दक्षिण का एकमात्र राज्य है जहाँ भाजपा की मौजूदगी है इसलिए दक्षिण में विस्तार के लिए उसका कर्नाटक में सत्ता को बरकरार रखना ज़रूरी है, लेकिन इसबार यह इतना आसान नहीं लग रहा है. सरकार के खिलाफ रोष तो है ही कांग्रेस पार्टी के तेवर भी काफी तीखे हैं और तैयारी भी पहले से काफी बेहतर है. देश की सबसे पुरानी पार्टी पुरानी गलतियों से सबक सीखती हुई दिख रही है और इस बात का एहसास भाजपा को भी है और तभी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी में बेचैनी भी है.

नड्डा ने कल गुजरात की जीत का खासतौर पर ज़िक्र किया। भाजपा अध्यक्ष दरअसल यह सन्देश दे रहे थे कि आने वाले चुनावों में पार्टी को ऐसी ही जीत हासिल करनी है, लेकिन वो यह भूल गए कि गुजरात के चुनाव जैसे हालात अन्य राज्यों के नहीं हो सकते। गुजरात एक ऐसा राज्य है जहाँ किसी तरह का कोई मुद्दा काम नहीं करता, वहां सिर्फ एक ही मुद्दा रहता है कि मोदी की हार गुजरात की हार होगी। और जहाँ तक इसबार की ऐतिहासिक जीत की बात है तो उसके लिए भाजपा को आम आदमी पार्टी का शुक्रिया अदा करना चाहिए लेकिन नड्डा जी यह भूल रहे हैं कि अब जितने भी राज्यों के चुनाव होने वाले हैं वहां आप जैसी कोई पार्टी उनकी मदद को नहीं मिलेगी। न कर्नाटक में, न राजस्थान में, न मध्य प्रदेश में और न ही छतीसगढ़ में. यहाँ उसका सीधा मुकाबला कांग्रेस से ही होगा, तेलंगाना में भी कोई वोट कटुवा पार्टी उसकी मदद नहीं करेगी। इसलिए गुजरात जैसी सफलता को मुंगेरीलाल का हसीं सपना ही कहा जा सकता है.

जहाँ तक त्रिपुरा, नागालैंड, मेघालय और मिजोरम की बात है तो इन पहाड़ी राज्यों में भाजपा पुराना प्रदर्शन दोहरा पाएगी इसमें शंका है. त्रिपुरा में सीपीआई एम ने आगे बढ़कर कांग्रेस से हाथ मिलाकर भाजपा सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. मेघालय में ममता बनर्जी की TMC का जनाधार बढ़ा है, वो पिछले दो सालों से मेघालय में लगातार मेहनत कर रही हैं जैसे अरविन्द केजरीवाल गुजरात में कर रहे थे, अब देखना है कि उनकी हालत भी केजरीवाल जैसी ही होगी या फिर वह कुछ उलटफेर करने की हैसियत में होंगी. नागालैंड और मिजोरम में भी भाजपा कुछ कमाल करने की हैसियत में नहीं दिख रही है, वहां उसे क्षेत्रीय पार्टियों की पिछलग्गू ही बनना पड़ेगा। बहरहाल चुनावी सीजन शुरू हो चुका है और यह 2024 तक चलेगा। अभी तो पता नहीं इस तरह के कितने दावे किये जायेंगे, देखना होगा कि यह दावे हकीकत में कितना बदलते हैं.

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