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Lunar Mission: चांद पर क्या तलाश रहीं अंतरिक्ष एजेंसियां, क्या सच में चंद्रमा पर घर बसा सकेगा इंसान?

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Lunar Mission: चंद्रमा में पूरी तरह से हवा नहीं है। धूल भरी तेज आंधियां चलती हैं। जब चंद्रमा या मंगल पर कोई अंतरिक्ष यान उतरना होता है तो उसकी गति धीमी करनी होती है। जिससे कि उसकी लैंडिंग गुरुत्वाकर्षण उसे अंदर खींच सके। जिस चंद्रमा को दूर से देखते हैं। उसमें अब भारत का चंद्रयान-3 कुछ घंटे बाद उतरेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का बहुप्रतीक्षित मिशन आज 23 अगस्त को लैंडिंग के लिए पूरी तरह से तैयार है। चांद पर अमेरिका के नील आर्मस्ट्रॉन्ग उतरने वाले पहले व्यक्ति थे। उसके बाद से गैर-मानव मिशनों की होड़ लगी हुई है। पृथ्वी और ब्रह्मांड इतिहास का अध्ययन करने के लिए चंद्रमा आज वैज्ञानिकों का लक्ष्य बना हुआ है।

भारत का यह मिशन चंद्रयान-2 क्रैश लैंडिंग के चार साल बाद भेजा गया है। चंद्रयान-3 मिशन सफल होता है, तो भारत की अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी कामयाबी होगी। चंद्रयान-3 मिशन क्या है? इसका उद्देश्य क्या है? आखिरकार विश्व के देश चंद्रमा पर खोज क्यों कर रहे है। चंद्रमा के मिशनों से मनुष्यों को क्या मिलेगा?

चंद्रयान-3 है क्या?

इसरो के अनुसार, चंद्रयान-3 मिशन, चंद्रयान-2 का अगला चरण है। जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और वहां परीक्षण करेगा। इसमें प्रणोदन मॉड्यूल, लैंडर और एक रोवर है। चंद्रयान-3 का लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण लगाए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया है। जिन कारणों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह पर उतरने में सफल नहीं हो पाया था। चंद्रयान 3 में उस पर फोकस किया गया है।
मिशन ने 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे भारत के श्रीहरिकोटा केन्द्र से उड़ान भरी थी। सब कुछ योजना के अनुसार हुआ तो आज 23 अगस्त को शाम 6 बजे चंद्रयान 3 चंद्रमा पर उतरेगा।

आखिर चंद्रमा पर खोज क्यों?

चंद्रयान-3 को मिलाकर अकेले भारत के तीन चंद्र मिशन हो जाएंगे। हालांकि, इसके अलावा दुनिया की तमाम राष्ट्रीय और निजी अंतरिक्ष एजेंसियां लूनर मिशन पर अपने यान भेज चुकी हैं। इन मिशनों को अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। यही कारण है कि आज चंद्रमा पर खोज चुनौती है। 1969 में नील आर्मस्ट्रांग अमेरिका के अपोलो 11 मिशन के दौरान चंद्रमा पर चलने वाले पहले व्यक्ति बने थे। ऐतिहासिक मिशन के दशकों बाद चंद्रमा का पता लगाना मनुष्य के लिए जरूरी है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब पृथ्वी और ब्रह्मांड के इतिहास का अध्ययन करने की बात होती है तो चंद्रमा खजाना है।

चंद्रमा पर मिशन भेजने के उद्देश्यों को लेकर नासा का मानना है कि चंद्रमा पृथ्वी से बना है। यहां पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास के साक्ष्य हैं। हालांकि, पृथ्वी पर ये साक्ष्य भूगर्भिक प्रक्रियाओं की वजह से मिट गए हैं। नासा के अनुसार, चंद्रमा वैज्ञानिकों को प्रारंभिक पृथ्वी के नए दृष्टिकोण प्रदान करता है। पृथ्वी-चंद्रमा प्रणाली और सौर मंडल कैसे बने हैं और विकसित हुए जैसे सवालों के जवाब वैज्ञानिकों को चंद्रमा पर मिल सकते हैं। इसी के साथ पृथ्वी के इतिहास और संभवतः भविष्य को प्रभावित करने में क्षुद्रग्रहों की भूमिका के बारे में पता लगाया जा सकता है।

अमेरिकी एजेंसी की मानें तो चंद्रमा रोमांचक इंजीनियरिंग चुनौतियां पेश करता है। जोखिमों को कम करने और भविष्य के मिशनों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उड़ान क्षमताओं, जीवन समर्थन प्रणालियों और शोध तकनीकों का परीक्षण करने के लिए चंद्रमा एक चुनौतीपूर्ण जगह है।

चंद्र मिशनों से क्या हासिल होगा?

चंद्रमा की यात्रा मनुष्यों को दूसरी दुनिया में काम करने का अनुभव प्रदान करेगी। यात्रा हमें अंतरिक्ष के तापमान और विकिरण में उन्नत सामग्रियों और उपकरणों का परीक्षण करने में मदद करेगी। मनुष्य सीखेंगे कि मानवीय कार्यों में मदद करने, दूरस्थ स्थानों का पता लगाने और खतरनाक क्षेत्रों में जानकारी एकत्र करने के लिए रोबोट का अच्छा उपयोग कैसे किया जाए।

पृथ्वी से कम गुरुत्वाकर्षण और अधिक विकिरण वाले वातावरण में अंतरिक्ष यात्रियों को स्वस्थ रखना चिकित्सा के लिए अहम चुनौती है। चंद्रमा की खोज तकनीकी और अनुप्रयोगों और नए संसाधनों के उपयोग के लिए व्यावसायिक मौके मुहैया करती है। चंद्रमा पर चौकियां स्थापित करने से लोगों और पृथ्वी से परे ग्रहों और उपग्रहों तक खोज और बसाहट करने में मदद मिलेगी।

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