देहरादून। उत्तराखंड राज्य आज इसी पहाड़ की महिलाओं की देन है। लेकिन यह इस राज्य की महिलाओं का दुर्भाग्य है कि जिसने इसके लिए अपना खून बहाया उसके लिए ही राज्य गठन के बाद महिला नीति नहीं बन पाई। वर्तमान में हुए अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद महिला सुरक्षा और प्रदेश की महिला नीति को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। महिला आयोग के अनुसार अब आगे से किसी बेटी के साथ ऐसा न हो। इसके लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे। इतना सब कुछ होने के बाद भी अब आयोग सभी विभागों के सुझाव और सहयोग से महिला नीति का संशोधित ड्राफ्ट तैयार कर इसे सरकार को सौंपेगा। यह हाल राज्य गठन के 21 साल बाद का है। अंकिता हत्याकांड के बाद पूरा पहाड़ गुस्से में है। महिलाओं का कहना है कि राज्य गठन आंदोलन में उनकी अहम सर्वोपरि रही थी। यह सोचकर राज्य आंदोलन किया गया कि अलग राज्य बनेगा तो पहाड़ के लोगों को रोजगार मिलेगा। इसी के साथ ही यहां की महिलाओं की परेशारी दूर होंगी। लेकिन दुर्भाग्य है कि कई बार सुझाव के बाद भी अब तक प्रदेश में महिलाओं के सुरक्षा के लिए कोई नीति नहीं बन पाई। उनका कहना है कि महिला नीति को लेकर अब तक जो भी सरकारें आई महिला आयोग की मंशा स्पष्ट नहीं है।
राज्य आंदोनकारी एवं महिला मंच संयोजक कमला पंत का कहना है कि उत्तराखंड को लोगों ने ऐशगाह बना दिया है। पहाड़ तबाह कर हैं। जंगलों को काटकर अवैध तरीके से रिजॉर्ट बना दिए हैं। जिनमें न जाने कितनी अंकिताएं मर रही हैं। अंकिता की मेडिकल रिपोर्ट पर भी हमकों संदेह है।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के जिलाध्यक्ष प्रदीप कुकरेती का कहना है कि जिन महिलाओं के बल पर राज्य बना। वह आज हासिए पर हैं। वर्षों बाद भी महिला के शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की स्थिति जस की तस है। महिलाओं को नौकरी में 30 फीसदी आरक्षण मिल रहा था उस पर भी रोक लगा दी गई। राज्य आंदोलनकारी महिलाओं को 21 साल बाद भी इंसाफ नहीं मिला है। पहाड़ की महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए सरकार के पास कोई नीति नहीं।