मतलबी राहुल

उत्तराखंडमतलबी राहुल

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मतलबी राहुल

अमित बिश्‍नोई

मतलबी यार किसके, दम लगाए खिसके। राहुल गाँधी पर यह बात बिलकुल सटीक बैठती है. उनके साथ अक्सर ही ऐसा होता है. जिस लोकसभा क्षेत्र ने उन्हें तीन बार अपना नुमाइंदा चुना, चौथी बार वहां से हारने पर उसे ऐसे भूल गए जैसे कभी वहां की जनता से उनका नाता ही नहीं था. मतलबी यार की बात इसलिए कि उन्हें यह मालूम था कि वो हारने वाले हैं, इसलिए उन्होंने पहले ही अपना दूसरा ठिकाना ढूंढ लिया था. उन्हें अपने उस संसदीय क्षेत्र की जनता पर बिलकुल भरोसा नहीं था, अगर भरोसा होता तो वह हरगिज़ एडवांस में नया ठिकाना नहीं तलाशते। बहरहाल वक्त का पहिया घूमा और कांग्रेस पार्टी के वयोवृद्ध युवा नेता राहुल गाँधी को ढाई साल बाद एक बार फिर उस अमेठी के लोगों के पास आना पड़ा जिसे वह बिलकुल भूल चुके थे.

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उसी अमेठी में एकबार फिर वह अपने और अपने परिवार से रिश्तों की दुहाई रहे हैं, उन्हें याद दिला रहे हैं अपने बचपन की यादें, अपनी जवानी के दिन, जब वह अपने पिता राजीव गाँधी के साथ आया करते थे. इसी अमेठी ने राहुल को हाथों हाथ लिया था और बरसों लिए रही ,मगर ज़रा सा हवा मुखालिफ क्या हुई, लोगों ने थोड़ी नाराज़गी क्या जताई कि युवराज ऐसे रूठे कि ढाई साल बाद नज़र आये, वह भी अपने मतलब के लिए. अमेठी के लोगों ने ऐसी कौन सी ज़मानत ज़ब्त करवा दी थी जो इतने नाराज़ हो गए थे युवराज। लाखों के मार्जिन से जिताने वाली जनता ने सिर्फ पचास पचपन हज़ार के अंतर से हराकर एक सबक सिखाया था कि अमेठी को टेकन फॉर ग्रांटेड न लीजिये युवराज।2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी का पूरी तरह सफाया कर अमेठी के लोगों ने संकेत पहले ही दे दिया था. मगर नहीं सुधरे युवराज, फिर अंजाम तो यही होना था. यह तो अमेठी की जनता की भलमनसाहत थी कि लम्बे मार्जिन से युवराज को पटखनी नहीं दी।

ढाई साल बाद राहुल गाँधी की आमद कहें या पिछले ढाई बरस से बहन प्रियंका वाड्रा की मेहनत, अमेठी के लोगों के दिलों में आज भी कांग्रेस पार्टी के लिए काफी जगह है यह वहां पर इकठ्ठा हुई भीड़ से संकेत मिला और ऐसे विश्वासी लोगों पर अविश्वास जताकर उनसे मुंह मोड़कर चले जाना मतलबपरस्ती नहीं तो और क्या है. कांग्रेस पार्टी लिए यही अच्छा होगा कि यूपी के चुनाव से राहुल को दूर ही रखे. क्योंकि कहा नहीं जा सकता कि राहुल गाँधी कब क्या ऐसा कर दें कि करी कराई मेहनत  पर पानी फिर जाय. उनका ट्रैक रिकॉर्ड कुछ ऐसा ही है. वह सही बात भी ग़लत समय पर कहते हैं।

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आजकल युवराज लोगों को हिन्दू और हिंदुत्ववादी के बीच का अंतर समझा रहे हैं। वह लोगों को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आरएसएस और भाजपा के लोग हिंदुत्ववादी हैं जबकि देश के दूसरे हिन्दू सही मायनों में हिन्दू हैं. राहुल की यह बातें सुनने में बहुत अच्छी लग रही हैं, पर यह भी ग़लत समय गाया जाने वाला सही राग है. देश का बच्चा बच्चा जनता है कि हिन्दू, हिंदुत्व, हिन्दुत्ववाद इन मुद्दों पर भाजपा और आरएसएस का मुकाबला कोई भी नहीं कर सकता। इन मुद्दों पर भाजपा और संघ का एक तरह से पेटेंट है. मगर राहुल, राहुल ठहरे। वह पहले भी पार्टी के लिए राहु बनते रहे हैं, एकबार और सही।

दरअसल राहुल की समस्या यह है कि वह अराजनीतिक होकर राजनीति करना चाहते हैं और राजनीति में यह कैसे संभव हो सकता है. भारत की राजनीति तो और भी जटिल है. वैसे भी राहुल का व्यवहार पलायनवादी है, महत्वपूर्ण अवसरों पर पलायन करने का उनका इतिहास रहा है और हिंदुस्तान की राजनीति ने पलायनवादियों का कभी साथ नहीं दिया। आप 2014 से अबतक फ्लैशबैक में चले जाएँ, सारी फिल्म सामने आ जाती है, कांग्रेस ने इस दौरान अपना बदतरीन दौर देखा है. पिछले सात सालों में कांग्रेस को राज्यों में जो भी कामयाबियां मिली हैं वह उन राज्यों के क्षत्रपों की कामयाबी है न कि राहुल की. यूपी के चुनाव में भी कांग्रेस अगर पहले से कुछ बेहतर करती है तो उसका पूरा सेहरा प्रियंका वाड्रा और प्रदेश कांग्रेस को जायेगा जिसका नेतृत्व जुझारू अजय कुमार लल्लू कर रहे हैं।  

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