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जानिए क्या है ज्वाला देवी की ज्वाला का रहस्य

धर्मजानिए क्या है ज्वाला देवी की ज्वाला का रहस्य

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ये तो आप सभी को पता होगा कि हिन्दू धर्म में माँ ज्वाला देवी को पूजा जाता है , साथ ही ये भी पता होगा कि ये दुर्गा माँ की 51 शक्तिपीठों में से भी एक है। यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है. इस मंदिर का संबंध शिव और शक्ति से भी है। जब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से देवी सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां ये अंग गिरे, वहा बाद में शक्तिपीठ बनाये गए । ऐसा कहा जाता है इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। तभी से इसे ज्वाला जी के नाम से जाना जाता है। इसे जोता वाली और नगरकोट के नाम से भी जाना जाता है।

ज्वाला देवी का मंदिर सदियों से जल रहा है

आपको बता दे ज्वाला देवी मंदिर में जो बाती जल रही है जो सदियों से बिना तेल डाले निरंतर ऐसे ही जल रही है । नौ ज्वालाओं में से जो मुख्य ज्वाला चांदी के जाल के बीच में होती है उसे महालकी कहते है। शेष आठ, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजी देवी ज्वाला मंदिर में निवास करती हैं।

ज्वाला देवी मंदिर की धार्मिक मान्यता

ज्वालादेवी मंदिर से जुड़ी एक धार्मिक कथा के अनुसार भक्त गोरखनाथ यहां मां की पूजा करते थे। वह माता का परम भक्त था और पूरी श्रद्धा से उनकी पूजा करता था। एक बार गोरखनाथ को भूख लगी और उन्होंने अपनी मां से कहा कि आग जलाकर पानी गर्म करो, मैं भिक्षा मांगकर लाऊंगा। माँ ने मुखाग्नि दी. बहुत समय बीत गया परंतु गोरखनाथ भिक्षा लेने नहीं आये। कहा जाता है कि तभी से मां अग्नि जलाकर गोरखनाथ का इंतजार कर रही हैं। ऐसी मान्यता है कि सतयुग आने पर ही गोरखनाथ वापस आयेंगे। तब तक ये लौ ऐसे ही जलती रहेगी.

मंदिर के पास गोरख डिब्बी

ज्वाला देवी शक्तिपीठ के पास माता ज्वाला के अलावा एक और चमत्कारिक तालाब है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। यहां कुंड के पास आकर आपको ऐसा महसूस होगा कि कुंड का पानी बहुत गर्म होकर उबल रहा है। लेकिन, जब आप पानी को छूएंगे तो आपको लगेगा कि कुंड का पानी ठंडा है।

अकबर ने भी आग बुझाने की कोशिश की

एक अन्य कथा के अनुसार मुगल बादशाह अकबर ने ज्वाला देवी के शक्तिपीठ में सदैव जलती रहने वाली ज्वाला को बुझाने का प्रयास किया था। लेकिन, वह सफल नहीं हो सके. उन्होंने अपनी पूरी सेना बुलाई और ज्वाला की आग बुझाने की कोशिश की लेकिन, सफल नहीं हुए। जब अकबर को देवी ज्वाला की शक्ति का एहसास हुआ, तो उसने माफ़ी मांगते हुए देवी ज्वाला को एक सोने की ढाल अर्पित की।

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