तौक़ीर सिद्दीक़ी
केरल के वायनाड में होने वाले आगामी उपचुनाव में एक बार फिर एक जानी-पहचानी पारिवारिक विरासत चर्चा में आ गई है। प्रियंका वाड्रा के चुनावी राजनीतिक सुर्खियों में आने के साथ ही नेहरू-गांधी परिवार से उनका जुड़ाव उनके अभियान का एक अहम हिस्सा बन गया है। लोकसभा चुनाव में जब वो अपने भाई राहुल गांधी के समर्थन के लिए वायनाड में चुनावी रैलियां कर रही थीं तभी से उनकी उम्मीदवारी चर्चा में थी क्योंकि ये तो सबको मालूम था कि राहुल गाँधी वायनाड और रायबरेली दोनों जगह से जीतने पर वायनाड की सीट ही छोड़ेंगे और ये सीट वो घर के बाहर किसी और को नहीं देंगे, ऐसे में प्रियंका वाड्रा ही एक ऐसा नाम था जो वायनाड से कांग्रेस पार्टी को रिप्रेजेंट कर सकता था. आप इसे कांग्रेस पार्टी की एक सोची-समझी रणनीति कह सकते हैं लेकिन वायनाड का उपचुनाव नेहरू गाँधी फैमिली के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है. हालाँकि दो दिन पहले वायनाड के दौरे पर गयी प्रियंका वाड्रा जीत को उतना महत्व नहीं देतीं, उनसे किसी ने सवाल किया कि अगर आप चुनाव हार गयीं तो क्या? प्रियंका ने जवाब दिया कि चुनाव हार गयी तो हार गयी, ये तो जनता का मत है और वायनाड की जनता का मत सिर आँखों पर लेकिन हम लोग सिर्फ चुनाव जीतने के लिए राजनीति नहीं करते हैं, सेवा के लिए करते हैं इसलिए अगर हार गयी तब भी सेवा करती रहूंगी, मेरा परिवार राजनीती को कभी इस नज़र से नहीं देखता।
बात वायनाड की करें तो प्रियंका वाड्रा की मौजूदगी कई स्तरों पर दिलचस्प है। सबसे पहले, उनकी राजनीतिक वंशावली और उनकी दादी इंदिरा गांधी से समानता एक अहम भूमिका निभाती है। कई लोगों के लिए इंदिरा गांधी की एक मजबूत और निर्णायक नेता के रूप में यादें ताजा हैं और उनकी पोती की छवि इसी पुरानी यादों को ताजा करने के लिए गढ़ी गई लगती है। ऐसे क्षेत्र में जहां कांग्रेस के प्रति पारंपरिक वफादारी मजबूत है, पारिवारिक संबंधों पर इस फोकस ने मतदाताओं के बीच अपनेपन की भावना जगाई है। सोशल मीडिया पर प्रियंका वाड्रा के नामांकन की कुछ तस्वीरें कांग्रेस पार्टी ने शेयर की हैं जिनमें इंदिरा गाँधी और प्रियंका वाड्रा की भाव भंगिमा में ज़बरदस्त समानता नज़र आती है. ये तस्वीरें काफी वायरल भी हुई हैं, वैसे भी प्रियंका को लोग दूसरी इंदिरा गाँधी कहते हैं, कम से कम दिखने में तो वो वैसी ही लगती हैं बाकी तो भविष्य ही बताएगा। उनके समर्थक उन्हें इंदिरा की विरासत की निरंतरता के रूप में देखते हैं, उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखते हैं जो लचीलापन और सहानुभूति दोनों का प्रतीक है। उनके अभियान के इस पहलू को उनकी रैलियों में इस्तेमाल किए जाने वाले दृश्य संकेतों और भाषा तक सावधानीपूर्वक विकसित किया गया है। लेकिन बड़ा सवाल ये कि पुरानी यादें और प्रतीकवाद वायनाड के मतदाताओं की चिंताओं को दूर करने के लिए पर्याप्त हो सकते हैं, जो वास्तविक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं?
प्राकृतिक आपदा का शिकार वायनाड का कृषि क्षेत्र किसान कल्याण और आर्थिक अस्थिरता से संबंधित मुद्दों से जूझ रहा है। यहाँ के लोग समझदार हैं और चुनावी वादों से सावधान भी हैं, खासकर उन वादों से जो ठोस कार्रवाई के बजाय भावनाओं से जुड़े लगते हैं। वायनाड में एक नए चेहरे के रूप में प्रियंका वाड्रा के नयेपन से यहाँ का युवा आकर्षित है, वो व्यावहारिक समाधान चाहता है जो उनके आर्थिक और शैक्षिक अवसरों में सुधार करे। इसलिए चुनौती यह है कि क्या प्रियंका वाड्रा पारिवारिक पहचान से आगे निकल सकती हैं और इन दबाव वाले स्थानीय मुद्दों से जुड़ सकती हैं। प्रियंका वाड्रा के अभियान की एक खास विशेषता क्षेत्रीय चिंताओं से जुड़ने का उनका प्रयास रहा है, चाहे वो खेलों में युवाओं का समर्थन करना हो या वायनाड की कृषि आवश्यकताओं को स्वीकार करना। इसके बावजूद बहुत से लोगों को यह बयानबाजी पहले सुनी हुई लगती है, विशेषकर किसानों को और इसीलिए वो काफी सतर्क हैं। केरल में कांग्रेस की सत्ता में लंबे समय से मौजूदगी के बावजूद यहाँ के किसानों ने अपनी चिंताओं को बार-बार अनदेखा होते देखा है और यह संदेह बदलाव की व्यापक जरूरत को दर्शाता है, जो विरासत की राजनीति से परे है। प्रियंका गांधी को UDF गठबंधन के एक एकीकृत नेता के रूप में IUML से गठबंधनों को संतुलित करना आवश्यक होगा।
भाजपा ने यहाँ से प्रियंका वाड्रा के सामने एक स्थानीय पार्षद नव्या हरिदास को मैदान में उतारा है वहीँ सत्ताधारी गठबंधन LDF से सत्यन मोकेरी उम्मीदवार हैं. भाजपा ने यहाँ पर स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा छेड़ रखा है लेकिन बाहरी तो राहुल गाँधी भी थे जिन्हें वायनाड के लोगों ने दो बार सिर आँखों पर बिठाया, विशेषकर दूसरी बार ये जानते हुए भी कि राहुल गाँधी वायनाड की सीट जीतने के बाद छोड़ सकते हैं. इसे आप वायनाड के लोगों का नेहरू गाँधी की विरासत पर विश्वास का नाम दे सकते हैं. प्रियंका गांधी का चुनावी अभियान आधुनिक भारतीय राजनीति में पारिवारिक विरासत की पहुंच और प्रासंगिकता का परीक्षण करेगा। प्रियंका गाँधी अगर पुरानी यादों और कार्रवाई योग्य बदलाव के बीच की खाई को पाट सकती हैं, तो वह केरल में कांग्रेस के लिए समर्थन को फिर से जगा सकती हैं जिसका फायदा अगले विधानसभा चुनाव में UDF गठबंधन को मिल सकता है, फिर भी मतदाताओं के लिए ये वफादारी पर्याप्त नहीं, सफलता का मार्ग वायनाड की अनूठी जरूरतों को ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ संबोधित करने में निहित है जो परिवार के नाम से परे है। तो प्रियंका वाड्रा को नेहरू-गाँधी फैमिली की विरासत से ऊपर उठना होगा।