काठमांडू। नेपाली राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने नागरिकता बिल को मंजूरी देने से इनकार कर दिया। संसद के दोनों सदनों ने नागरिकता बिल को दोबारा पारित कर राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा था। राष्ट्रपति द्वारा इसको वापस भेजने से अब नेपाल में संवैधानिक संकट गहराने के आसार बढ़ गए हैं। संविधान के अनुसार, किसी बिल को संसद के दोनों सदन दोबारा भेजते हैं तो उस पर 15 दिन के अंदर राष्ट्रपति को फैसला लेना होता है। हालांकि इस पर फैसला लेते हुए राष्ट्रपति ने मंजूरी देने से इनकार कर दिया। राष्ट्रपति के राजनीतिक सलाहकार लालबाबू यादव ने बताया कि भंडारी ने संवैधानिक व्यवस्था के अधिकार का उपयोग किया है। अनुच्छेद 61(4) में कहा है कि राष्ट्रपति का मुख्य कर्तव्य संविधान का पालन करना और उसकी रक्षा करना है। इसका मतलब संविधान के सभी हितों की रक्षा करना है। संविधान के अनुच्छेद 113(2) में कहा है कि राष्ट्रपति के सामने पेश किए जाने वाले बिल 15 दिनों में मंजूरी देनी होगी और दोनों सदनों को इसके बारे में सूचित किया जाएगा।
प्रावधान के मुताबिक, राष्ट्रपति संवैधानिक रूप से किसी विधेयक को मंजूरी देने के लिए बाध्य है जिसे सदन द्वारा एक बार पुनर्विचार के लिए वापस भेजने के बाद फिर राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत किया जाता है। राजनीतिक सलाहकार ने बताया कि बिल संविधान के भाग -2 के प्रावधानों का पूरी तरह से पालन नहीं करता है। महिलाओं के साथ भेदभाव करता है और प्रांतीय के साथ एकल संघीय नागरिकता का प्रावधान भी इसमें नहीं है। अगस्त माह में नेपाल की राष्ट्रपति ने नागरिकता कानून-2006 संशोधन विधेयक को चर्चा और जरूरी संशोधन के लिए संसद को वापस भेजा था। बता दें कि नागरिकता कानून संशोधन विधेयक पिछले तीन साल से लटका हुआ है। राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी इस पर और गंभीर चर्चा चाह रही हैं।