पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन से जुड़े अवमानना के मामले में फंसे बाबा से बिजनेसमैन बने योग गुरु रामदेव और उनके चेले आचार्य बालकृष्ण की परेशानियां कम नहीं हो रहीं। रामदेव और उनकी कंपनी बार बार सुप्रीम कोर्ट जाकर माफ़ी मांग रहे, सार्वजनकि माफ़ी मांगने की बात भी कह रहे हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट है कि उनकी माफ़ी को स्वीकार ही नहीं कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रामदेव ने अख़बारों में माफ़ीनामा भी छपवाया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे भी रिजेक्ट कर दिया।सुप्रीम कोर्ट ने माफीनामे के साइज पर आपत्ति जताते हुए उन्हें 30 अप्रैल को फिर अदालत में हाज़िर होने को कहा है.
आज हुई इस मामले की सुनवाई में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने कोई राहत नहीं दी. बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की ओर से आज मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया गया कि पतंजलि ने अखबार में विज्ञापन देकर माफीनामा प्रकाशित करवाया है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आपने किस साइज का विज्ञापन दिया है, क्या ये उसी साइज का विज्ञापन है जैसा आपका भ्रामक विज्ञापन था. क्या दोनों विज्ञापनों के साइज एकसमान हैं जिसपर मुकुल रोहतगी ने कहा कि माफीनामे वाले विज्ञापनों की कीमत दस लाख रूपये है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के तर्क को नहीं माना और कहा कि अखबार में छपी आपकी माफी अयोग्य है, आपको अतिरिक्त विज्ञापन जारी करना होगा जैसा आपने पहले जारी किया था.
शीर्ष अदालत ने कहा कि Drugs and Magic Remedies Act को लागू करने से संबंधित मुद्दे पर बारीकी से जांच की जरूरत है, न केवल इस अदालत के समक्ष उत्तरदाताओं तक सीमित है, बल्कि अन्य FMCG भी भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित कर रहे हैं, विशेष रूप से शिशुओं और बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं. बुज़ुर्ग भी इन भ्रामक विज्ञापनों के बाद दवाइयों का सेवन कर रहे हैं. अब देखना है कि बाबा रामदेव 30 अप्रैल अखबारों को कितने फुलसाईज़ विज्ञापन देते हैं , किन अखबारों और कितने अखबारों में देते हैं. कुछ भी हो अख़बारों की आमदनी तो बढ़ेगी ही.