बड़े शहरों में किराएदारों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, मकान मालिक और किरायदारों के बीच विवाद होना आम बात है, इसी से बचने के लिए मकान मालिक और किरायदार के बीच एग्रीमेंट का चलन भी बढ़ता जा रहा है. इसकी ज़रुरत विवादों से बचने के लिए होती है, खासकर तब कई मौकों पर लम्बे समय से रह रहा किरायदार मकान पर मालिकाना हक़ का दावा करने लगता है. इस एग्रीमेंट में दोनों के बीच सारी शर्तें स्पष्ट होती हैं जो विवाद के मौके पर मकान मालिक के बहुत काम आती हैं इसलिए मकान मालिक को एग्रीमेंट बनाते समय कई बातों का बहुत ध्यान रखना चाहिए। मकान मालिक की एक गलती की वजह से किराएदार घर पर अपना कब्जा कर सकता है. तो चलिए उन गलतियों के बारे में जानते हैं
किरायदार के साथ एग्रीमेंट करते समय मकान मालिक को सबसे पहले पुलिस द्वारा अपने किराएदार का पुलिस वेरिफिकेशन करना बहुत ज़रूरी होता है, उसका आई डी प्रूफ या आधार लेने से ही काम नहीं चलता है. पुलिस वेरिफिकेशन की बात सामने आते ही गलत आदमी वहां से निकलना बेहतर समझेगा. इसके बाद एग्रीमेंट के नियमों की बात आती है, आमतौर पर 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट बनवाना सही रहता है क्योंकि अगर लंबे समय तक किरायदार किसी प्रॉपर्टी पर रह जाता है तो कुछ नियमों के तहत वो प्रॉपर्टी उसकी हो सकती है, इसे एडवर्स पोजेशन कहते हैं जिसमें कोर्ट भी कुछ नहीं कर पाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि अगर कोई किराएदार 12 साल तक किसी एक जगह पर रह जाता है तो वो उसपर अपना मालिकाना हक जता सकता है. एडवर्स पोजेशन की बात करें तो ये नियम अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है. हालाँकि कुछ हालातों, जैसे कि सरकारी जमीनों पर ये नियम मान्य नहीं है. यानी कोई सरकारी फ्लैट पर कब्ज़ा नहीं कर सकता है. बेहतर यही है कि आप 11 महीने के लिए ही एग्रीमेंट बनवाएं और अगर उसी किरायदार के साथ आगे रहना है तो एग्रीमेंट को 11-11 महीने करके आगे बढ़ाएं। किरायदार को समय समय पर बदलते रहना ज़्यादा बेहतर होता है, इसके अलावा अपनी प्रॉपर्टी को सिर्फ किरायेदार के सहारे न छोड़ें , समय समय पर जाकर साइट विज़िट ज़रूर करें और इस बात को भी देखें कि कोई नया निर्माण तो नहीं हो रहा है।