अमित बिश्नोई
चुनाव आयोग ने आज महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान करके राजनीतिक पार्टियों के लिए चुनावी रण का रास्ता साफ़ कर दिया है. झारखण्ड में जहाँ भाजपा का मुकाबला JMM और कांग्रेस के गठबंध से है जिसकी वह पर सरकार है तो वहीँ महाराष्ट्र में दो ऐसे गठबंधन के बीच टकराव है जिनमें मुख्यतः तीन तीन पार्टियां हैं. एक गठबंधन सत्ताधारी महायुति का है जिसमें भाजपा के अलावा शिवसेना और एनसीपी को तोड़कर और पार्टी हथियाकर आये हुए लोग हैं जिनका नेतृत्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री अजित पवार करते हैं जो सहारा पवार के भतीजे हैं, तो वहीँ दूसरी तरफ विपक्षी महाविकास अघाड़ी गठबंधन है जिसमें उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना, शरद पवार वाली एनसीपी और कांग्रेस पार्टी है, अभी तक इस गठबंधन का नेतृत्व उद्धव ठाकरे करते आये हैं लेकिन आगे क्या होगा पता नहीं।
बात विधानसभा चुनाव और कांग्रेस पार्टी की करें तो झारखण्ड में वो एक सहयोगी पार्टी की तरह ही चुनाव लड़ेगी लेकिन महाराष्ट्र में तीन सहयोगियों में उसका दर्जा कौन सा रहेगा, इसके बारे में अभी सबकुछ साफ़ नहीं है. हरियाणा चुनाव से पहले तक यही माना जा रहा था कि महाराष्ट्र में MVA का सबसे दल कांग्रेस ही होगा लेकिन हरियाणा में अप्रत्याशित हार ने उसके समीकरण गड़बड़ा दिए हैं इसलिए महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव यूबीटी और एनसीपी SP की बनिस्बत कांग्रेस पार्टी के एक बड़ा इम्तेहान होगा। कांग्रेस पार्टी ने अभी हाल ही में लोकसभा चुनाव में गठबंधन के दोनों सहयोगियों से कहीं बेहतर किया था जिसकी वजह से महाराष्ट्र में उसकी उम्मीदें भी बहुत बढ़ गयी थीं लेकिन हरियाणा में हार के झटके ने कहीं न कहीं महा विकास अघाड़ी में उसकी बार्गेनिंग पावर को थोड़ा कमज़ोर ज़रूर किया है इसके बावजूद भी ऐसा नहीं लग रहा है कि सीटों को लेकर MVA में कोई बड़ा घमासान होने वाला है. शरद पवार हो, उद्धव हों या फिर खड़गे हों, एक बात पर सभी एकमत हैं कि उनका पहला लक्ष्य महायुति गठबंधन को महाराष्ट्र से हटाना है.
यहाँ पर इस गठबंधन की एकता में एकबात और भी जाती है और वो ये कि कांग्रेस को भले ही महाराष्ट्र में किसी से बदला न लेना हो मगर एनसीपी शरदचंद्र पवार और शिवसेना यूबीटी को भाजपा को हटाने के साथ ही अजित पवार और एकनाथ शिंदे को सबक सिखाना है इसलिए सीटों के एडजस्टमेंट पर MVA ज़्यादा खटपट होगी इसकी सम्भावना कम ही है. इस सिलसिले में कांग्रेस पार्टी हरियाणा से सबक भी सीखा है और अपने सभी स्थानीय नेताओं को स्पष्ट निर्देश जारी कर दिए हैं कि सीटों को लेकर या मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई भी बयानबाज़ी नहीं करेगा, विशेषकर उन सीटों के लिए जो गठबंधन के बीच फंसी हुई हैं उनपर तो बिलकुल भी नहीं। ऐसे सभी मामलों पर फैसला पार्टी हाई कमान करेगा और वही बयान जारी करेगा। इस निर्देश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की जाएगी जिसकी शुरुआत भी कांग्रेस पार्टी ने कर दी है और अपने एक विधायक को पार्टी से 6 वर्षों के लिए निकाल दिया। हरियाणा में कांग्रेस पार्टी को स्थानीय नेताओं की बयानबाज़ियों का खमियाज़ा भुगतना पड़ा था. कुमारी शैलजा जैसी बड़ी नेता ने खुलेआम मीडिया में पार्टी की नीतियों, सीटों के एडजस्टमेंट और मुख्यमंत्री पद को लेकर लगातार बयान दिए जिससे दलित वोटरों में कांग्रेस पार्टी के लिए एक नकारात्मक सन्देश गया और एक निश्चित दिखने वाली जीत हार में बदल गयी. कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने नतीजों के बाद स्पष्ट रूप से कहा था कि हरियाणा के नेताओं के अपने हित पार्टी के हितों पर भारी पड़ गए.
इसलिए कहा जा सकता है कि झारखंड और महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए करो या मरो की लड़ाई है, विशेषकर महाराष्ट्र में। हरियाणा में भाजपा से सीधे मुकाबले में करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी अपनी वो गति खोटी हुई दिखाई दी है जो उसने लोकसभा चुनाव में पकड़ी थी, उसे अब अंदर और बाहर दोनों तरफ से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। देखा जाय तो सिर्फ हरियाणा ही नहीं जम्मू कश्मीर में भी कांग्रेस पार्टी ने कोई ख़ास प्रदर्शन नहीं किया है बल्कि पिछले विधानसभा चुनाव से खराब ही प्रदर्शन रहा. विशेषकर जम्मू क्षेत्र जहाँ पर उसका भाजपा से सीधा मुकाबला था उसने बुरी तरह निराश किया है. जिसकी वजह से राहुल गाँधी की उस सुधरती हुई इमेज को भी एक डेंट लगा है जो मोदी जी की इमेज में डेंट लगा रही थी.
अब हरियाणा की निराशा से उबरते हुए कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र के लिए फूंक फूंककर कदम उठा उठा रही है. कांग्रेस ने महाराष्ट्र को पांच हिस्सों में बांटते हुए हर क्षेत्र के लिए दो दो ऑब्सेर्वेर्स को नियुक किया है. कांग्रेस पार्टी ने राज्य को पांच हिस्साओं उत्तर महाराष्ट्र, विदर्भ, मुंबई और कोंकण, मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र बांटा है और इन क्षेत्रों की ज़िम्मेदारी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, टीएस सिंह देव, सचिन पायलट और नासिर हुसैन समेत अन्य लोगों को सौंपी है. इसके अलावा मुकुल वासनिक और अविनाश पांडे को चुनाव समन्वयक नियुक्त किया गया है. सहयोगियों के साथ समन्वय कांग्रेस आलाकमान ने अपने हाथो में ले रखा है, हरियाणा से सबक लेते हुए राज्य के किसी भी बड़े नेता का चेहरा आगे नहीं किया है और न ही किसी को असीमित पावर दी हैं जैसा कि हाल भूपिंदर हुड्डा और पूर्व में कमलनाथ और अशोक गेहलोत को दी थीं. देखा जाय तो हरियाणा कि तरह महाराष्ट्र में भी कांग्रेस पार्टी के पक्ष में माहौल है लेकिन देखने वाली बात ये है कि हरियाणा की गलतियों से कांग्रेस पार्टी कितना सबक सीखती है.