अमित बिश्नोई
फूटबाल दुनिया के सबसे पुराने खेलों में से एक है. दुनिया के लगभग सभी बड़े और विकसित देशों की टीमें इसके विश्व कप में खेलती हैं लेकिन जब हम नज़र दौड़ाते हैं अपने देश की तरफ तो बड़ी मायूसी होती है. हमने बड़ी तरक्की कर ली है, खेलों में भी. क्रिकेट में भारत बड़ी ताकत है, हॉकी में बड़ी ताकत रह चूका है, दूसरे खेलों में भी भारत अब काफी आगे बढ़ गया है. ओलंपिक्स हो, वर्ल्ड चैपियनशिप्स हो या फिर एशियाई खेल, हम अब मेडल्स की लाइन भी लगाने लगे हैं. हमारे खिलाडी विश्व कीर्तिमान भी स्थापित करने लगे हैं, पुरुषों के साथ महिलाऐं भी खेलों में बहुत आगे बढ़ चुकी हैं लेकिन जब हम फूटबाल की तरफ देखते हैं तो मोर के पैरों वाली स्थिति हो जाती है, हम शर्मिंदगी से अपना सर झुका लेते हैं.
हैरत होती है कि छोटे छोटे देश भी फीफा विश्व कप में खेलने की योग्यता हासिल कर लेते हैं, एशिया की ही बात ले लीजिये। इस बार पांच देश विश्व कप में खेल रहे हैं, जापान और दक्षिण कोरिया की माना एक हैसियत है लेकिन ईरान और सऊदी अरब की क्या बिसात है. इनके यहाँ तो खेल का कल्चर भी नहीं है फिर भी हमसे आगे हैं. क्या हम इनसे भी गए गुज़रे हैं. फूटबाल एक ऐसा खेल है जो दुनिया के सबसे ज़्यादा देशों में खेला जाने वाला खेल है और इसलिए पूरी दुनिया में इस खेल को लेकर दीवानगी है. वह दीवानगी भारत में क्यों नहीं है. क्या सरकार को इस मामले में नहीं सोचना चाहिए। फीफा विश्व कप में भाग लेना ही किसी देश के लिए स्टेटस सिम्बल की बात होती है. भारत को क्या ऐसे स्टेटस सिम्बल की ज़रुरत नहीं है.
फूटबाल का विश्व कप आता है, भारत में भी उसकी बड़ी तैयारी होती है लेकिन दूसरी टीमों के मैच देखने के लिए. यहाँ भी इस खेलने के दीवाने भरे पड़े हैं लेकिन कोई ब्राज़ील का समर्थक होगा तो कोई जर्मनी का, कोई पुर्तगाल की टीम को सपोर्ट कर रहा होगा तो कोई फ्रांस की वाह वाही कर रहा होगा. फीफा विश्व कप के दौरान हमारे देश में भी मेसी, नेमार, रोनाल्डो की जर्सी पहने बहुत से लोग मिलेंगे। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इनमें कोई भारतीय फुटबॉलर भी शामिल हो, हम भारतीय फ़ुटबाल टीम को भी क्रिकेट की टीम की तरह चीयर करते नज़र आएं.
ऐसा नहीं की भारत में फ़ुटबाल होती नहीं, वेस्टबंगाल में तो दीवानगी तक इस खेल से लोग प्रेम करते हैं, लोगों की पहचान ईस्ट बंगाल, मोहन बागान और मोहम्मडन स्पोर्टिंग से होती, केरल में भी फ़ुटबाल बहुत लोकप्रिय है, नार्थ ईस्ट राज्यों से कई नामी फुटबॉलर दुनिया के सामने आये हैं जिनकी अंतर्राष्ट्रीय पहचान भी थी और है लेकिन भारतीय टीम की कोई पहचान नहीं क्योंकि हम विश्व कप नहीं खेलते, हम विश्व कप के लायक नहीं। हम दूसरी टीम को चीयर कर सकते हैं लेकिन हमें अपनी टीम को चीयर करने का कभी मौका मिलेगा भी या नहीं, पता नहीं।
एक और विश्व कप आया है, हम कल उसका मज़ा उठाएंगे, इस बार 32 टीमें हैं, अगलीबार 48 टीमें होंगी। टीमें ज़रूर बढ़ेंगी लेकिन हम शायद नहीं बढ़ेंगे क्योंकि हम बहुत पीछे हैं आज भी. भारत की अंतर्राष्ट्रीय फूटबाल में मौजूदा रैंकिंग 106 है, ऐसे में उम्मीद भी कैसे की जा सकती है कि 2026 के या फिर 2030 के विश्व कप में भी हम 48 टीमों में से एक टीम बन सकते हैं, भारत की अबतक की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग 94 रही है जो 1996 में थी. हम पहले भी विश्व कप देखते आये हैं, इस बार भी देखेंगे और आगे भी देखते रहेंगे। लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि हम दूसरे क्षेत्रों में चाहे जितनी भी तरक्की कर लें लेकिन फ़ुटबाल को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। आज नहीं तो कल हमें फ़ुटबाल में भी एक ताकत बनना पड़ेगा। सरकार को भी इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए क्योंकि फ़ुटबाल एक शक्तिशाली देश की पहचान भी है.