त्रिपुरा में भले ही भाजपा ने दोबारा सत्ता में वापसी की है लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा, इसपर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है. ख़बरों के मुताबिक नए मुख्यमंत्री के नाम पर विधायकों में असहमति उभरकर सामने आयी है। कहा जा रहा है कि पार्टी के बहुत से विधायक माणिक साहा को मुख्यमंत्री के पद पर नहीं देखना चाह रहे हैं ऐसे में पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों में भाजपा की चुनाव कमान संभालने वाले असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को इस विवाद को सुलझाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है.
माणिक साहा हैं केंद्रीय नेतृत्व की पसंद
जानकारी के मुताबिक निवर्तमान मुख्यमंत्री माणिक साहा को पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब के समर्थक विधायकों का साथ मिला हुआ है। माणिक साहा केंद्रीय नेतृत्व के भी करीब माने जाते हैं लेकिन विधायकों की असहमति को पार्टी आलाकमान सिरे से नकार भी नहीं सकती, राज्य में टिपरा मोथा पार्टी के उदय ने उसकी चिंता बढ़ा दी है, इस मामले में एकतरफा फैसला पार्टी के लिए परेशानी खड़ा कर सकता है. बता दें कि ग्रेटर टिपरा लैंड राज्य की मांग पर टिपरा मोथा के लिए बड़े पैमाने पर लोगों ने मतदान किया और उसे राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बना दिया।
टिपरा मोथा पार्टी के उदय से भाजपा में बेचैनी
ऐसे में हिमंत बिस्वा सरमा को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए कहा गया है, हिमंत ने कल कहा था कि वो टिपरा मोथा पार्टी से बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन उसमें त्रिपुरा के विभाजन की बात नहीं होनी चाहिए। चुनाव नतीजों के कई दिन बीत चुके हैं लेकिन अभी तक नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक नहीं बुलाई गयी है , यह देरी बता रही है कि माणिक साहा की ताजपोशी इतनी आसान नहीं होने वाली। इन दिनों हिमंत बिस्वा सरमा भाजपा के संकट मोचक बने हुए हैं, अब देखना है कि वो त्रिपुरा में उभरे इस नए संकट से पार्टी को किस तरह निकालते हैं.