- प्रदूषण के दुष्प्रभाव के चलते सुनने की क्षमता पर पड़ रहा असर
मेरठ। पिछले कुछ दिनों से जहरीली हुई शहर की आबोहवा जहां सांसे जकड़ रही है वहीं लोगों के सुनने की क्षमता भी इससे प्रभावित होने लगी है।बढ़ती धुंध लोगों के लिए कान से जुड़ी तमाम परेशानियों का सबब बन रही है। डॉक्टर्स का कहना है कि धुंध के साथ दमघोंटू जहरीली हवा के असर की वजह से करीब 50 प्रतिशत मरीजों में कान संबंधित बीमारियां पनपने लगती है। जिसका असर पूरे शरीर पर पड़ सकता है।
ऐसे होता है हवा का वार
जिला अस्पताल के डॉ. पीके वार्ष्णेय बताते हैं कि सुनने की क्षमता और आंखों पर प्रदूषण का सीधा असर पड़ता है।इसके तहत मरीजों में कानों में दर्द, धीमी आवाजें सुनाई न देना, सूजन व कान का बहना जैसी शिकायत बढ़ जाती हैं. इसके अलावा टिनिटस यानी कान बजना जैसी समस्या भी तेजी से बढ़ती है। आंखों में जलन, सिरदर्द, जी मिचलाना जैसी समस्या भी इसके चलते मरीजों में बढ़ने लगती है।
ये है वजह
एक्सपर्ट्स के मुताबिक हवा में फैले प्रदूषण के कारण साइनोसाइटिस, जुकाम और एलर्जी की समस्या हो जाती है. इसका असर कानों पर पड़ता है. नाक से कान के बीच स्थित यूस्टेकियन ट्यूब में नाक से पानी चला जाता है. इस पानी के कारण कान के बीच में इंफेक्शन हो जाता है. इसकी वजह से जहां सुनने की क्षमता कम हो जाती है. वहीं कुछ देर के लिए कान में बहरापन भी हो सकता है. वहीं अगर समस्या लंबे समय के लिए लिए बनी रहती है तो व्यक्ति के कान का पर्दा डैमेज हो सकता है.
ये हो सकते हैं लक्षण
- कानों में इंफेक्शन, तेज दर्द
- कानों में भारीपन
- मवाद, कान का बहना,
- सोने में परेशानी, कान में दर्द व एलर्जी
- कान में घंटी की आवाज सुनाई देना
- चक्कर आना, उल्टी, सुनने की क्षमता कम होना
ये हैं सुनने की क्षमता के मानक
- 15 से 20 डेसीबल तक कान को कोई नुकसान नहीं होता है.
- 60 से 65 डेसीबल के बाद कान को आवाज चुभने लगती है.
- 85 से 115 साउंड हैडफोन का होता है.
- 85 से 120 साउंड पटाखे की होती है.
- 115 डेसीबल के साउंड से कान का पर्दा फटने की संभावनाएं बहुत अधिक बढ़ जाती है.
सांस के मरीजों पर भी संकट
स्मॉग के चलते सांस के मरीजों पर भारी संकट उमड़ आया है. कोरोना वायरस संक्रमण के बीच अस्थमा, दमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों में करीब 30 प्रतिशत तक का इजाफा हो जाता है. वहीं अस्पताल में दिल और बीपी के मरीजों की संख्या भी करीब 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है. आंखों में जलन, गले में खराश, नजला आदि इन दिनों बहुत बढ़ गया है. जिला अस्पताल के एमएस डॉ कौशलेंद्र सिंह बताते हैं कि अस्पताल में आने वाला हर चौथा मरीज इन समस्याओं से ग्रस्त है. स्मॉग का बढ़ा हुआ लेवल इसकी मुख्य वजह है.
इनका है कहना
डा. गौरव, ईएनटी, जिला अस्पताल
आडियो मीटर के जरिए मरीजों के सुनने की क्षमता मापी जाती है. इन दिनों कान की समस्या बढ़ने लगती है। स्मॉग की वजह से अधिकतर लोगों में धीमा स्वर सुनने की क्षमता कम पाई जा रही है.