नई दिल्ली। 40 की उम्र के बाद यदि एंटीबायोटिक दवाएं खा रहे हैं जो जरा संभल जाए। इनकी वजह से इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) का खतरा 50 प्रतिशत तक बढ़ता है। चिकित्सकों के मुताबिक एक से दो साल तक पेट या आंतों के संक्रमण खत्म करने वाली एंटीबायोटिक दवाएं लेने के बाद यह शरीर को नुकसान पहुंचाना शुरू करती हैं।
एक शोध में यह पाया गया है। इसमें लोगों के स्वस्थ्य डाटा का विश्लेषण किया गया। जिसके जरिए पता लगाया गया कि जिन लोगों ने किन्हीं वजहों से लगातार एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया। आईबीडी यानी अल्सरेटिव कोलाइटिस व क्रोहन डिजीज का खतरा काफी बढ़ गया।
2000-2018 के बीच 10 से 60 वर्ष के 61 लाख लोगों पर यह अध्ययन किया है। इनमें से 55 लाख लोगों को चिकित्सकों ने एंटीबायोटिक दवाओं को लेने की सलाह दी थी।
एंटीबायोटिक खाने वाले लोगों में 36,017 में कोलाइटिस व 16,881 में क्रोहन बीमारी के लक्षण उभकर सामने आए। जिन लोगों को एंटीबायोटिक नहीं दी उन लोगों की तुलना में एंटीबायोटिक इस्तेमाल करने वालों में 10-40 उम्र के लोगों में आईबीडी की आशंका 40 फीसदी अधिक दिखाई दी। वहीं, 40 से 60 वर्ष के लोगों में यह खतरा 50 प्रतिशत अधिक बढ़ गया।
यह भी सामने आया कि 1-2 साल तक एंटीबायोटिक लेने के बाद आईबीडी का खतरा उच्चतम पर पहुंच गया। इसके अलावा एंटीबायोटिक प्रकारों पर गौर किया गया। आईबीडी का अधिक खतरा नाइट्रोइमिडाजोल और फ्लोरोक्विनोलोन से जुड़ा हुआ है। आम तौर पर इनका उपयोग आंत संक्रमण के इलाज में किया जाता है।
वहीं नाइट्रोफ्यूरेंटोइन एकमात्र एंटीबायोटिक दवा है। जिससे आईबीडी का खतरा नहीं बढ़ता है। नैरो स्पेक्ट्रम पेनिसिलिन में भी आईबीडी का जोखिम है। अध्ययन से साफ है कि एंटीबायोटिक से आंतों के माइक्रोबायम में बड़े बदलाव हो रहे हैं। इसके कारण अभी साफ नहीं है। अनुमान है कि उम्र बढ़ने के साथ आंतों के माइक्रोबायोम में रोगाणुओं की लचीलापन और सीमा में प्राकृतिक ह्रास बढ़ता है।