- महानगरों से सटे गांवों की भी हवा हो गयी प्रदूषित
- सांस के जरिये फेफड़ों तक पहुुंच जाते हैं पर्टिकुलेट मैटर
सुनील शर्मा
न्यूज डेस्क। चारों ओर फैला धुंआ, हवा इतनी जहरीली की सांस लेना भी मुश्किल। कहीं ट्रक, बस, ऑटो , जेनरेटरों से निकलता धुंआ, तो कहीं सड़कों पर फैली भवन निर्माण सामग्री के कारण उड़ती धूल, कहीं बीड़ी-सिगरेट का धुंआ तो कहीं धुंआ उगलती फैक्ट्रियों की चिमनियां। इन सब के बीच सांस लेना मजबूरी है। कोरोना संक्रमण से पहले भी लोग घर से निकलते ही मुंह पर कपड़ा या मास्क लगा लेते थे। मगर यह मास्क भी चारों ओर फैले वायु प्रदूषण को हमारे शरीर में समाने से रोकने में नाकाम है। नतीजा, प्रदूषित वायु में मौजूद विषैले तत्व सांस के जरिये हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और अनेक प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं।
वायु प्रदूषण के कारण होने वाले रोगों में सबसे खतरनाक है फेफड़ों का कैंसर। इस बीमारी का पता अधिकतर मरीजों में तब चलता है जब यह बीमारी लाईलाज हो जाती है। कई बार इलाज उपलब्ध तो होता है किंतु महंगा होने के कारण उस उपचार को करा पाना प्रत्येक व्यक्ति के लिये संभव नहीं होता।
इस विषय पर किये गये अनेक शोधों से पता चलता है कि प्रदूषित वायु वाले स्थानों पर रहने वालों को फेफड़ों का कैंसर होने की संभावना अधिक होती है। शोधों से यह भी पता चला है कि इस बीमारी का शिकार होने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो धूम्रपान करते ही नहीं थे या काफी सालों पहले छोड़ चुके थे। यानि उनको फेफड़ों का कैंसर होने की वजह तंबाकू नहीं बल्कि वायु प्रदूषण है। हालांकि धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों को फेफड़ों का कैंसर होने की संभावना अधिक होती है। हाल ही में हुई एक रिसर्च के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली में खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका वायु प्रदूषण प्रतिवर्ष लगभग तीन हजार लोगों की जान ले लेता है। और यह स्थिति भारत के लगभग प्रत्येक महानगर की है। वहीं गांवों की हवा भी अब शुद्ध नहीं रही। महानगरों से सटे गांवों में भी वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ को नुकसान पहुंचा रहा है
क्यों होता है फेफड़ों में कैंसर
ट्रक, बस, ऑटो , कार, जेनरेटर, जलाया गया कूड़ा, कच्र्चा इंधन (लकड़ी, कोयला आदि), फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुंआ वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। वहीं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड , सल्फर डाइऑक्साइड और ओजोन जैसी गैसें भी वायु को प्रदूषित करती हैं। इनके कारण बनने वाले छोटे-छोटे धूल कण जिन्हें पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) कहा जाता है वायुमंडल में शामिल हो जाते हैं। यह छोटे लेकिन ठोस कण सांस के जरिये हमारे फेफड़ों तक पहुंच कर उनके टिश्यूओं में समा जाते हैं। लंबे समय तक उपचार न किये जाने पर यह पर्टिकुलेट मैटर फेफड़ों में कैंसर का कारण बन जाते हैं। परिवहन साधनों, जेनरेटर आदि से निकलने वाले डीजल के धुंए में 10 माइक्रोमीटर से कम साईज के पर्टिकुलेट मैटर होते हैं जो आसानी से फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। एक अध्ययन के अनुसार फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित लगभग आधे मरीज नेशनल हाइवे के लगभग 1500 मीटर के दायरे में रहने वाले थे। यानी परिवहन साधनों से निकलने वाला धुंए ने उनके फेफड़ों को भारी नुकसान पहुंचाया था।
फेफड़ों के कैंसर के लक्षण
लंबे समय तक खांसी का कायम रहना, कफ के साथ खून आना, छाती में दर्द रहना, सांस लेने में परेशानी या घरघराहट होना, वजन घटना, अक्सर कमजोरी और थकान रहना फेफड़ों का कैंसर के प्रमुख लक्षण हैं। आम तौर पर यही लक्षण निमोनिया, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों में भी होते हैं इसलिये लोग इन लक्षणों को गंभीरता से नहीं लेते और किसी अन्य बीमारी का उपचार कराते रहते हैं। नतीजा यह बीमारी खतरनाक होकर जानलेवा साबित होती है।
कैंसर से बचाव के लिये बरतें ये सावधानी
- प्रदूषण के कारण फिर से कैंसर होने की संभावना 50 प्रतिशत से अधिक होती है। ऐसे में प्रदूषित स्थानों पर जाने से बचें। औद्यौगिक क्षेत्र और वाहनों, जेनरेटरों से निकलने वाले धुंए से दूर रहें।
- वायु प्रदूषण से बचाव के लिये घर से निकलने से पहले मुंह और नाक को मास्क, दुपट्टे या रूमाल से ढक लें।
- कैंसर से बचाव के लिये आर्गेनिक फूड का सेवन अधिक करें। सब्जियां पकाने से पहले उन्हें पानी में अच्छी तरह से धोएं। दालों को आधा घंटा पहले भिगोना बेहतर रहेगा।
- केमिकल युक्त भोजन या अन्य सामग्रियों जैसे काॅस्मेटिक प्रोडक्ट का इस्तेमाल न करंे।
- प्लास्टिक की जगह कांच या स्टील के बर्तनों का इस्तेमाल करें। प्लास्टिक बैग की जगह जूट या कपडे़ से बने बैग का उपयोग करें।
- धूप में निकलने से पहले सनस्क्रीन लोशन लगायें और शरीर को ढक कर रखें।
- फैक्ट्री में कार्य करने से पहले ग्लव्स, मास्क और बूट अवश्य पहनें।
प्रदूषण के कारण उत्पन्न पीएम 2.5 और इससे बड़े कण फेफड़ों के कैंसर का सबसे बड़े कारण हैं। प्रदूषित हवा में एनओ, सीओ और कई अन्य केमिकल इस रोग को जानलेवा स्तर तक ले जाते हैं। प्रदूषण के कारण फेफड़ों के कैंसर के अलावा स्तन और मस्तिष्क के कैंसर और रक्त कैंसर के केस भी बढ़ जाते हैं। प्रदूषण की वजह से बच्चों में ब्रेन कैंसर और ब्लड कैंसर मामले बढ़ रहे हैं। लगभग 15 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर प्रदूषण (धूम्रपान न करने वालों में विशेष रूप से) के कारण होते हैं।
डॉ. उमंग मित्तल, चीफ सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, मेरठ कैंसर अस्पताल, मेरठ
