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हिंदी बेल्ट का गुजरात बनता मध्य प्रदेश

Elections 2024

अमित बिश्‍नोई

पांच विधानसभा चुनावों के नतीजे आ गए, भाजपा की प्रचंड लहर नज़र आयी, मोदी जी की गारंटियों का डंका बजता दिखा, कांग्रेस से उसने वो दो राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान छीने जहाँ की गुड गवर्नेंस का दावा कांग्रेस पार्टी करती थक नहीं रही थी और अपनी जीत को सुनिश्चित मान रही थी. लेकिन भाजपा ने सबसे बड़ा कमाल मध्य प्रदेश में दिखाया जहाँ के नतीजों ने बड़े से बड़े राजनीतिक पंडित को हैरान और अपना सिर धुनने पर मजबूर कर दिया, किसी को भी समझ में नहीं आ रहा है कि भाजपा ने ये चमत्कार किया कैसे। मध्य प्रदेश में भाजपा के फेवर में इतनी प्रचंड लहर चल रही थी ये किसी को दिखाई क्यों नहीं दी. सारे ओपिनियन पोल्स गलत साबित हो गए, किसी ने ऐसा अनुमान नहीं लगाया कि भाजपा को 160 सीटें मिलेंगी, ये तो मध्य प्रदेश में एक इतिहास बन गया. इसे किसका जादू कहेंगे, मोदी की गारंटियों का, मोदी-शाह की रणनीति का या फिर मध्य प्रदेश के मामा का, या फिर उनकी लाडली बहना योजना का.

मध्य प्रदेश के नतीजे वाकई शोध का विषय बन गए हैं. इस जीत के बात एक सवाल अब लोगों के मन में उठने लगा है कि क्या हिंदी बेल्ट में एक गुजरात बन रहा है जहाँ भाजपा या मोदी जी को हराना नामुमकिन है. कमलनाथ सरकार के 15 महीने अगर निकाल दिए जांय तो भाजपा पिछले 20 वर्षों से मध्य प्रदेश में अजेय बनी हुई है और अगले पांच साल के लिए उसे सरकार चलाने का जनादेश मिल चुका है, देखा जाय तो ये भाजपा का लगातार पांचवां टर्म है, जीत के मामले में मध्य प्रदेश भी गुजरात की राह पर है. पिछले तीन महीने से सारे ओपिनियन पोल्स यहाँ कांग्रेस की सरकार बना रहे थे, ज़मीन पर यही लग रहा था कि मध्य प्रदेश के मामा से ज़्यादा नाराज़गी न होने के बावजूद लोगों में एक उदासीनता थी और लोग सरकार बदलना चाह रहे थे, कुछ पोल कड़े मुकाबले की बात ज़रूर कर रहे थे वो भी मतदान के करीबी दिनों में लेकिन जब दो चैनलों ने एग्जिट पोल में भाजपा की प्रचंड जीत की बात कही तो किसी को भी यकीन नहीं आया, यहाँ तक कि उन चैनलों के एंकरों को भी जिन्होंने यह एग्जिट पोल करवाए थे लेकिन नतीजे बिलकुल वैसे ही आये और लोगों को हैरान कर गए.

नतीजों के बाद मंथन का दौर शुरू हो चूका है, पोलिटिकल पंडित इस बात की खोज में जुट गए हैं कि आखिर ये कमाल हुआ कैसे। खैर मैं कोई पोलिटिकल पंडित नहीं हूँ फिर भी अपने तौर पर मुझे जो लगा वो बताने की कोशिश कर रहा हूँ। मेरे विचार से मोदी और शाह की जोड़ी ने मध्य प्रदेश में ऐसी रणनीति अपनाई जिसकी भनक किसी को भी नहीं लगी. इसी रणनीति के तहत एक आर्टिफीसियल सिम्पैथी लहर क्रिएट की गयी और फिर उस लहर पर सवार होकर भाजपा ने मध्य प्रदेश के गढ़ को बचाया। आपको याद होगा कि मध्य प्रदेश के चुनाव में एक समय ऐसा भी था जब भाजपा आला कमान ने चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की पूरी तरह उपेक्षा कर रखी थी. उन्हें मोदी जी के साथ चुनावी मंचों पर जगह भी नहीं मिल रही थी, पोस्टरों से भी वो गायब थे, मौजूद भी थे तो केंद्र से भेजे गए अन्य नेताओं की भीड़ में, जबकि उन पोस्टरों में सबसे बड़ा क़द मोदी जी का होता था, पीएम मोदी के साथ चुनावी मंचों पर अगर उन्हें जगह भी मिलती थी तो मोदी जी के मुख से उनकी या उनकी योजनाओं की कोई चर्चा नहीं होती थी. हालत ये हो गयी थी शिवराज चौहान को अपना दर्द जनता से शेयर करना पड़ता था, उन्हें अपना राजनीतिक अंत दिखाई दे रहा था, वो लोगों से पूछ रहे थे कि चुनाव लड़ूँ या न लड़ूँ , वो लोगों से कह रहे थे कि मामा चला जायेगा तो बहुत याद आएगा। शिवराज के दर्द को लोगों ने समझा, लोगों को लगा कि उनके साथ अन्याय हो रहा है, शिवराज चौहान मध्य प्रदेश के एक लोकप्रिय नेता हैं, खासकर महिलाओं में. उनके प्रति लोगों में हमदर्दी का भाव पैदा होने लगा, एक लहर सी बनने लगी जिसे कांग्रेस या दूसरे लोग देख नहीं पाए. इसके बाद असली खेल शुरू हुआ, शिवराज चौहान को मोदी जी के मंचों पर जगह मिलने लगी, मोदी जी के मुंह से उनकी और उनकी योजनाओं की तारीफ होने लगी, लाड़ली बहना योजना को गेम चेंजर बनाया जाने लगा, चुनाव अचार संहिता की धज्जियाँ उड़ाते हुए मतदान से ठीक पहले इसकी क़िस्त पात्र महिलाओं के खातों में डाली गयी. जो शिवराज चौहान एक महीना पहले किनारे कर दिए गए थे उन्हें अब हीरो के रूप में प्रोजक्ट किया गया. जो लहर शिवराज के रोने गाने से बनी, उसे लाड़ली बहना योजना के ज़रिये सुनामी में बदला गया और कांग्रेस मुंह ताकते रह गयी.

तो मेरे हिसाब से शिवराज चौहान को पहले जीरो बनाना और फिर हीरो बनाना मोदी -शाह की चाणक्य नीति का हिस्सा थी जिसे न कांग्रेस समझ पायी, न सर्वे करने वाली एजेंसियां और न ही पोलिटिकल पंडित। अब देखना ये होगा कि शिवराज चौहान को जीत का हथियार बनाकर भाजपा आला कमान क्या उन्हें पांचवीं बार मुख्यमंत्री की गद्दी देगा या फिर केंद्र से भेजे गए नेताओं में से किसी को ये ज़िम्मेदारी मिलेगी और शिवराज चौहान को एकबार फिर किनारे कर दिया जायेगा।

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