गुजरात का चुनाव जीतना भाजपा के लिए उतना ही ज़रूरी है जितनी केंद्र में मोदी सरकार का बनना क्योंकि दोनों ही चुनाव एक दुसरे के पूरक पाने जाते हैं. और हों भी क्यों न, प्रधानमंत्री मोदी का गुजरात से सीधा नाता जो है. इसी के तहत गुजरात की भाजपा सरकार अब समान नागरिक संहिता का दांव खेलने की तैयारी कर रही है. इससे पहले असम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकारें इस मामले में घोषणाएं कर चुकी हैं.
माना जा रहा है कि गुजरात सरकार इसके लिए मूल्यांकन समिति गठित करने का प्रस्ताव पेश कर सकती है जबकि समिति की अध्यक्षता हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज को सौंपी जा सकती है. बता दें कि केंद्र सरकार ने इसी महीने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह यूनिफॉर्म सिविल कोड पर कोई कानून बनाने या उसे लागू करने से रोकने का निर्देश नहीं दे सकता है. सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि यह मामला जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को तय करना है, मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि विधायिका को तय करना है कि कानून बनाना है या नहीं बनाना .
वहीँ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे एक अल्पसंख्यक विरोधी कदम करार दिया है. बोर्ड का कहना है कि यह कानून महंगाई, अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी के मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने का प्रयास है. बता दें कि भाजपा के 2019 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में सत्ता में आने पर समान नागरिक संहिता को लागू करने का वादा किया गया था. यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसा नियम हो जायेगा जो देश में रहने वाले हर नागरिक पर लागू होगा, फिर चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो.