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आम बजट: सरकारी बैंकों के निजीकरण पर फोकस बढ़ा सकती है सरकार

फीचर्डआम बजट: सरकारी बैंकों के निजीकरण पर फोकस बढ़ा सकती है सरकार

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केंद्र की नई एनडीए सरकार के पास इस बार बजट में बड़े सुधारों का मौका है। विशेषज्ञों के मुताबिक वह सरकारी बैंकों के निजीकरण पर फोकस बढ़ा सकती है। बैंकिंग विनियमन अधिनियम और बैंकिंग कंपनी अधिनियम, 1970 और 1980 जैसे अन्य कानूनों में संशोधन किया जा सकता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इससे पहले केंद्रीय बजट 2021 के दौरान इसी तरह के संशोधनों का प्रस्ताव रखा था। उन्होंने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और एक सामान्य बीमा कंपनी के निजीकरण की योजना की घोषणा की थी। हालांकि, उस समय ये प्रस्ताव अमल में नहीं आए।

आंकड़ों के मुताबिक, मई में बैंकों का सकल ऋण उठाव 16.1 फीसदी बढ़ा। यह साल-दर-साल आधार पर 0.70 फीसदी ज्यादा है। पिछले एक साल में ज्यादातर सरकारी बैंकों के शेयरों में तेजी देखने को मिली है। निवेशकों ने सरकारी बैंकों के शेयर खरीदने में भी दिलचस्पी दिखाई है। ऐसे में सरकार के लिए सरकारी बैंकों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर अच्छा पैसा पाने का यह सही समय है। हाल के वर्षों में भारत में कई महत्वपूर्ण बैंक विलय हुए हैं। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स का पंजाब नेशनल बैंक में विलय कर दिया गया, जिससे भारत का दूसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक बना।

वहीँ सिंडिकेट बैंक का केनरा बैंक में विलय कर दिया गया, जबकि इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में विलय कर दिया गया। इसके अलावा, आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में एकीकृत कर दिया गया। 2019 में एक उल्लेखनीय विलय में, विजया बैंक और देना बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय कर दिया गया था । इससे पहले, अप्रैल 2017 में, एसबीआई ने अपने पांच सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक का खुद में विलय कर लिया था।

एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि सरकार कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय पर भी विचार कर रही है। इसमें यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, पंजाब एंड सिंध बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया शामिल होंगे। विलय से बैंकों को नई पूंजी नहीं मिलती और न ही इससे उनकी कार्य संस्कृति में कोई बदलाव आता है। आरबीआई की जून वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) के अनुसार, बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (जीएनपीए) अनुपात मार्च 2024 में गिरकर 2.8 प्रतिशत हो गया, जो 12 वर्षों में सबसे कम है। इन रणनीतिक कदमों से बैंकिंग क्षेत्र के समग्र स्वास्थ्य को मजबूत करने और भारत की आर्थिक वृद्धि में सकारात्मक योगदान देने की उम्मीद है।

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