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वर्ल्ड कप जीत के बाद रखी गई पाकिस्तानी टीम की बर्बादी की नींव


वर्ल्ड कप जीत के बाद रखी गई पाकिस्तानी टीम की बर्बादी की नींव

पूर्व पाक कप्तान आमिर सोहैल का बड़ा खुलासा, जावेद मियांदाद को हटाना पाकिस्तानी टीम की बर्बादी की शुरुआत थी

नई दिल्ली।पूर्व पाकिस्तानी कप्तान आमिर सोहेल ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि 1992 में पाकिस्तान के वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद टीम की बर्बादी की नींव रखी गई और अभी भी वैसा ही हो रहा है. सोहेल ने अपने यूट्यूब चैनल पर फैंस के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि 90 के दशक में पाकिस्तान टीम के अहंकार ने उसे पछाड़ दिया. उस समय पाकिस्तान की टीम जो उपलब्धि हासिल करने के काबिल थी, उसे नहीं कर पाई.

हावी हो रहा था पाकिस्तान
उस दशक में क्रिकेट की दुनिया में वेस्टइंडीज का वर्चस्व खत्म हो रहा था और ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान की टीम हावी हो रही थी. उस समय जिस तरह से ऑस्ट्रेलिया ने हर टीम को उनके घर में जाकर हराया था, वैसा पाकिस्तान की टीम भी कर सकती थी. मगर अहंकार की वजह से ऐसा नहीं हो पाया. सोहेल ने जावेद मियांदाद के खिलाफ बगावत पर कहा कि टीम में यह बगावत 80 के दशक में शुरू हुई. उस समय भी टीम यह अहंकार बीच में आया कि कैसे अनुभवी प्लेयर्स के होते हुए कैसे एक नए खिलाड़ी को कप्तान बना दिया गया. इसके बाद इमरान खान को कप्तान बनाया गया और क्रिकेट आगे बढ़ा.

मियांदाद से बैठकर करनी चाहिए थी बात
आमिर सोहेल में कहा कि 1993 में जब जावेद मियांदाद को चेंज किया जा रहा था तो उस समय कुछ बातों पर ध्यान नहीं दिया गया और उस समय वसीम अकरम को कप्तान बनाने की बात चल रही थी और उस समय आपको पीछे जाकर देखना चाहिए था कि अनुभवी खिलाड़ी के होते हुए क्या उन्हें कप्तान बनाया जा सकता था. आमिर सोहेल ने कहा कि उस समय बोर्ड और मैनेजमेंट को देखना चाहिए था कि मियांदाद का प्रदर्शन टेस्ट में अच्छा चल रहा है तो उनसे बैठकर बात करनी चाहिए थी कि आप टेस्ट के कप्तान बने रहे और वनडे में बोर्ड 1996 वर्ल्ड कप को ध्यान में रखकर टीम बनाने की तैयारी कर रहा है. मगर उस समय बोर्ड ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया और परिणाम सबने देखा. उन्होंने कहा कि जब जावेद मियांदाद को कप्तान चेंज किया गया, उस पाकिस्तान क्रिकेट की बर्बादी की नींव रखी गई, जिससे आज भी पाकिस्तान संभल नहीं सका. आज भी ये चीजें दिख रही हैं.

हर बार बदलता कप्तान
उन्होंने कहा कि जब वसीम अकरम को कप्तान बनाया गया तो उस समय उम्र ग्रुप देखना चाहिए था. टीम में मियांदाद, रमीज राजा जैसे कुछ अनुभवी खिलाड़ी थे और बाकी अकरम के एज ग्रुप के थे. इसके बाद ये चीजे आगे बढ़ती गई. खिलाडिय़ों को अंदर बाहर किया जाने लगा. जिम्बाब्वे सीरीज के बाद जैसे ही पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड बदला, एडहॉक कमेटी आई. उस समय हर खिलाड़ी ने फैसला लिया कि उन्हें वसीम अकरम के साथ नहीं खेलना. उस समय ये था कि एक सीरीज हारते ही कप्तान बदलना आसान था. सब में असुरक्षा की भावना पनप गई थी. आज भी यह जारी है. एक मोहम्मद हफीज को कप्तान बनाता है. दूसरा सरफराज अहमद को, तीसरा किसी और को. लोग वही है और वो चीजें आ भी चल रही हैं.

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