लखनऊ के इकाना स्टेडियम पर भारत और न्यूज़ीलैण्ड का मैच कई मायनों में यादगार रहा, हालाँकि इनका शुमार अच्छी यादगारों में नहीं किया जा सकता। टी-20 फॉर्मेट में लोग चौके छक्के देखने आते हैं, विकेट की पतझड़ नहीं क्योंकि तेज़ खेलने के चक्कर में विकेट तो अपने आप ही गिरते हैं. टीम इंडिया ने किसी तरह यह मैच जीत लिया ये अलग बात है लेकिन सिर्फ 100 रनों के लक्ष्य का पीछा करने में उसके पसीने छूट गए. सूर्य और हार्दिक जैसे बल्लेबाज़ भी रनों के लिए जूझते नज़र आये. मैच के बाद कप्तान हार्दिक ने लखनऊ की पिच को एक सदमा करार दिया और अब खबर मिल रही है कि इसकी गाज पिच क्यूरेटर पर गिरी है और उसे हटा दिया गया है.
अंदर की कहानी
लेकिन अंदर की कहानी यह बता रही है कि उसे बलि का बकरा बनाया गया है क्योंकि जिस पिच पर मैच होना था उसकी जगह पर मैच को दूसरी पिच पर कराया गया और उसके लिए क्यूरेटर को बहुत कम समय दिया गया. दरअसल मैच पहले काली मिटटी वाली पिच पर होना था जिसे बाद में लाल पिच पर शिफ्ट कर दिया गया. इतने कम समय में अच्छी पिच तैयार करना कड़ाके की इस सर्दी के मौसम में नामुमकिन भी था और फिर इस पिच पर काफी डोमेस्टिक क्रिकेट भी खेली गयी थी. अब सवाल यह उठता है कि पिच बदलने का यह फैसला किसका था. आम तौर पर कौन सी पिच पर मैच खेलना है इसका फैसला मेज़बान टीम के कोच या कप्तान या टीम मैनजमेंट लेता है. पिच क्यूरेटर कभी नहीं फैसला करता, उसे तो जो पिच तैयार करने को कही जाती है वो तैयार करता है और सभी को मालूम है कि पिच को ठीक ठाक करने में समय लगता है.
एक भी छक्का नहीं पड़ा
एक खेली गयी पिच को अंतर्राष्टीय मैच के लिए सही करने के लिए समय चाहिए और सही मौसम भी चाहिए। बता दें कि मैच से दो तीन पहले तक लखनऊ में दिन में काफी धूप निकल रही थी लेकिन शाम का मौसम काफी खराब हो रहा था, पिच ने जिस तरह का व्यवहार किया वो काफी नमी वाला था. ऐसा साफ़ तौर पर लग रहा था कि पिच पर जो पानी डाला गया वो या तो ज़्यादा हो गया या फिर सूख नहीं पाया। ऐसे में पिच बल्लेबाज़ों के लिए कत्लगाह बन गयी. कीवी टीम सिर्फ 99 रन बन सकी और भारतीय टीम को जीत तक पहुँचने के लिए 19.5 गेंदे खेलनी पड़ीं। यह ऐसा पहला टी 20 रहा जिसमें एक भी छक्का नहीं पड़ा। ऐसे में पिच पर सवाल उठना तो लाज़मी ही है लेकिन क्या इसके लिए सिर्फ पिच क्यूरेटर ही ज़िम्मेदार है.