रेसलिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (WFI) के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृज भूषण सिंह पर यौन शोषण के आरोपों के बाद पहलवानों द्वारा मोर्चा खोलने की वजह से उनपर शिकंजा कसता जा रहा है और हो सकता है कि आने वाले दो तीन दिनों में उन्हें WFI का अध्यक्ष पद छोड़ना पड़े. विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया और कई अन्य पहलवानों के अलावा दूसरे खेलों के खिलाड़ियों का जमावड़ा लगातार दुसरे दिन भी जंतर मंतर पर बना रहा. कहा जा रहा है कि दिन में हाई लेवल की बैठक हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला जिसके बाद पहलवानों ने मामला प्रधानमंत्री तक ले जाने की बात कही.
पहलवानों को मिला अन्य खिलाड़ियों का समर्थन
कहा जा रहा है कि मामला बिगड़ता जा रहा, पहलवानों का विरोध अब अन्य कई खेलों का भी विरोध बनता जा रहा है, बृज भूषण सिंह को भी एहसास हो गया है कि बाज़ी हाथ से निकली जा रही है. जानकारी के मुताबिक एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन 22 जनवरी को किया जाने वाला है जो इस मामले की जांच करेगा, ख़बरों के अनुसार बृज भूषण सिंह संभवतः उसी मीटिंग के दौरान अध्यक्ष पद को ठीक उसी तरह छोड़ दें जैसे हरियाणा के खेल मंत्री संदीप सिंह ने यौन उत्पीड़न के आरोप के बाद मंत्री पद को लौटाया था और कहा था जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती तब तक वो पद पर नहीं रहेंगे। कुछ वैसा ही ब्रज भूषण सिंह की तरफ से भी हो सकता है.
सिर्फ 6 महीने बचा है बृज भूषण सिंह का कार्यकाल
वैसे भी बृज भूषण सिंह का WFI अध्यक्ष का कार्यकाल सिर्फ 6 महीने का रह गया है. वो अब अध्यक्ष भी नहीं बन सकते क्योंकि नियमों के अनुसार कोई भी तीन बार से ज़्यादा WFI का अध्यक्ष नहीं बन सकता और बृज भूषण सिंह का यह तीसरा कार्यकाल है, अब वो किसी और पद के लिए दावा कर सकते हैं लेकिन उसके लिए भी उन्हें चार साल रुकना पड़ेगा क्योंकि कोई और पद लेने के लिए चार साल का कूलिंग पीरियड पूरा करना पड़ता है. ऐसे में सरकार भी यही चाहेगी कि बृज भूषण सिंह का अध्यक्ष पद छोड़ना ही सही रहेगा वरना पहलवानों ने जो जंग छेड़ी है वो महायुद्ध में बदल सकती है. सरकार को अच्छी तरह मालूम है कि अगला एक साल राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है, कहीं ऐसा न हो कि अपने एक सांसद का बचाव करना उसके लिए बहुत भारी पड़ जाय. क्योंकि पहलवानों को जिस तरह का समर्थन मिला है वो सरकार के लिए बहुत खतरनाक है.