पौड़ी गढ़वाल- उत्तराखंड को भगवान भोलेनाथ की तपस्थली भी कहा जाता है. शायद यही वजह है कि उत्तराखंड में भगवान भोलेनाथ की कई मंदिर हैं इन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर है ताड़केश्वर महादेव मंदिर (Tarkeshwar Mandir). पौड़ी गढ़वाल के लैंसडौन के पास स्थित इस मंदिर में दूर-दूर से लोग अपनी मन्नत मांगने के लिए आते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि तारकासुर नामक राक्षस को दिए गए वरदान के बाद इस मंदिर की स्थापना हुई थी. ताड़केश्वर महादेव मंदिर ब्लूत और देवदार के जंगलों से घिरा हुआ है जो इस मंदिर के प्राकृतिक सौंदर्य को यहां मौजूद छोटे-छोटे झरने निखार प्रदान करते हैं.
धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि ताड़कासुर नाम का एक राक्षस जिसने अमर होने के लिए भगवान भोलेनाथ की तपस्या की.उसकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उसे अमर होने का वरदान दिया. भगवान शिव ने अपने वरदान में ताड़कासुर को अपने पुत्र के सामने इस वरदान का असर ना होने की शर्त भी रखी. भगवान भोलेनाथ का वरदान पाकर ताड़कासुर निरंकुश हो गया और लोगों पर अत्याचार करने लगा. जिसके बाद भगवान भोलेनाथ के पुत्र कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध किया. अंतिम समय में ताड़कासुर ने भगवान भोलेनाथ से क्षमा मांगी तब भगवान भोलेनाथ ने ताड़कासुर को उसके नाम से खुद की पूजा होने का वरदान दिया. कहा जाता है कि ताड़केश्वर महादेव मंदिर में ही ताड़कासुर ने भगवान भोलेनाथ की तपस्या की थी जो आज ताड़केश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है.
सरसों का तेल और साल के पत्ते वर्जित
मंदिर परिसर के पास एक कुंड भी स्थित है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने खोदा था. इसी कुंड के पवित्र जल से शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है. माना जाता है कि यहां पर सरसों का तेल और साल के पत्ते लाना पूरी तरह से वर्जित है.
सात देवदार में पार्वती का रूप
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि तारकासुर के वध के बाद भगवान शिव ने यहां पर विश्राम कर रहे थे. विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की किरणें सीधा पड रही थी. जिसे देखकर माता पार्वती ने देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर भगवान भोलेनाथ को छाया प्रदान की. कहा जाता है कि आज भी मंदिर के पास साथ देवदार के वृक्ष मौजूद हैं जिनकी छाया मंदिर पर पड़ती है देवदार के वृक्षों को माता पार्वती का स्वरूप माना जाता है.