उत्तरकाशी – भगवान बद्री और केदार के भूमि पर जगह जगह देवताओं के मंदिर और पवित्र स्थान है. इन पवित्र स्थानों में एक पवित्र स्थान है सेम मुखेम नागराज मंदिर, इस मंदिर को उत्तराखंड का पांचवा धाम भी कहा जाता है. अपनी धार्मिक मान्यताओं और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध है. माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इसी स्थान से बैकुंठ लोक प्रस्थान किया था. मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से कालसर्प के दोषियों को मुक्ति मिलती है. उत्तरकाशी से तलबला और वहां से करीब 3 किलोमीटर पैदल सफर तय कर सेम मुखेम नागराजा मंदिर में पहुंचा जा सकता है. 3 किलोमीटर के इस पैदल ट्रैक में आपको आनंदित करने वाले घने जंगल, जिसमें बांज,बुरांश,केदार पत्ती के खूबसूरत वृक्ष दिखाई देंगे. जो आपके इस सफर को और भी रोमांचकारी बनाते हैं.
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले मैं स्थित सेम मुखेम नागराजा का यह मंदिर हमेशा से लोगों के आकर्षण और धार्मिक मान्यताओं का केंद्र रहा है. कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्री कृष्ण द्वारिका डूबने के बाद नागराज के रूप में प्रकट हुए थे. पहाड़ी के सबसे ऊपरी भाग पर स्थित इस मंदिर के गर्भ गृह में नागराज की स्वयंभू सिला है. कहा जाता है कि यह यह सिला द्वापर युग की है. मंदिर के दाएं तरफ राजा गंगू रमोला के परिवार की प्रतिमाएं स्थापित हैं. सेम मुखेम नागराजा की पूजा करने से पहले गंगू रमोला के परिवार की आराधना की जाती है. कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण को इस स्थान पर स्थापित करने में गंगू रमोला परिवार का अहम योगदान था. भगवान श्री कृष्ण को लेकर इस स्थान पर कई तरह की धार्मिक मान्यताएं हैं.
धार्मिक मान्यताएं
सेम मुखेम नागराजा मंदिर को लेकर कई तरह की धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण का बाल रूप में जब लीला कर रहे थे तो यमुना नदी में गिरी गेंद को निकालने के लिए उन्होंने कालिया नाग को हराया और कालिया को आदेश दिया कि वह सेम मुखेम में जाकर निवास करें. जिसके बाद कालिया सेम मुखेम में प्रवास करने लगा. काफी समय बीत जाने के बाद कालिया ने भगवान श्रीकृष्ण से सेम मुखेम में दर्शन देने की विनती की. कहा जाता है कि अंतिम समय में भगवान श्री कृष्ण द्वारिका छोड़ उत्तराखंड के रमोला घड़ी में आकर कालिया नाग को दर्शन दिए. हमेशा के लिए पत्थर पर विराजमान हो गए और वहीं से बैकुंठ धाम के लिए उन्होंने प्रस्थान किया.मान्यता यह है कि भगवान श्री कृष्ण का एक अंश अभी भी उस पत्थर में विद्यमान है और सभी की मनोकामना पूरी करता है.
हाथ की छोटी उंगली से हिलता पत्थर
भगवान श्री कृष्ण जब हिमालय में प्रवास कर रहे थे. उस दौरान उन्हें हिमा नाम की एक राक्षसी मिली उन्होंने उस राक्षसी के सामने झूला झूलने का प्रस्ताव रखा. जिस पर राक्षसी ने झूला झूलने की बात स्वीकार कर लिया. मान्यता है कि जिस जगह झूला झूला गया था आज वहां एक विशालकाय पत्थर है. कहा जाता है कि जब भगवान श्री कृष्ण ने हिमा को झूला झुलाया और बहुत जोर से धक्का दिया तो राक्षसी के शरीर के कई टुकड़े हुए. जो अलग-अलग स्थानों पर गिरे हिमा का मुंह जहां गिरा वह मुखेम के नाम से प्रचलित है. जबकि जहां पर पेट वाला भाग गिरा उस स्थान को तलबला कहा गया. तलबला सेम की खासियत यह है कि जब आप यहां आते हैं तो यहां की भूमि आपको पेट की तरह कोमल और हिलती हुई महसूस होगी.कहा जाता है कि जो विशालकाय पत्थर जिस को स्थानीय भाषा में डांगढूंगी कहा जाता है,को केवल हाथ की छोटी उंगली से हिलाया जा सकता है. अगर आप इस पत्थर को अपने शरीर की ताकत से हिलाना चाहते हैं तो यह नहीं हिलता है.