पौड़ी गढ़वाल- देवी-देवताओं की भूमि देवभूमि उत्तराखंड जहां विपत्ति से पहले देवता गांव वालों को सचेत करते हैं. आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताते हैं, जो किसी भी आपदा या विपत्ति आने से पहले गांव को सचेत कर देते हैं. हम बात कर रहे हैं पौड़ी गढ़वाल के ‘कंडोलिया देवता’ की. कंडोलिया मंदिर (Kandoliya Mandir) न केवल पौड़ी गांव का इष्ट देव माने जाते हैं बल्कि आपदा का एहसास होने पर लोगों को आवाज लगाकर सावधान करते हैं. कंडोलिया मंदिर गढ़वाल और कुमाऊं के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक सेतु बनाने का भी काम करते हैं.
धार्मिक मान्यता-कंडी में आए थे गोल्ज्यू देवता
उत्तराखंड में गढ़वाल और कुमाऊं दो रीजन है. दोनों अपनी अलग अलग धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए जाने जाते हैं. पौड़ी गढ़वाल का कंडोलिया मंदिर दोनों ही इलाकों को धार्मिक रूप से एक करने का सबसे अच्छा उदाहरण है. कुमाऊ के इष्ट देव गोल्ज्यू देवता को पौड़ी में “कंडोलिया ठाकुर” के रूप में पूजा जाता है. इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है, कहा जाता है कि कुमाऊं की एक युवती का विवाह पौड़ी गढ़वाल के डूंगरियाल नेगी जाति के युवक से हुआ. विवाह होने के बाद युवती अपने इष्ट देवता गोल्ज्यू देवता को कंडी में रखकर अपने साथ लेकर आई. जिसके कुछ समय बाद गांव के एक व्यक्ति को स्वप्न में कंडोलिया देवता ने ऊंचे स्थान पर स्थापित करने का निर्देश दिया. कहा जाता है कि शहर से ऊपर एक पहाड़ के टीले पर कंडोलिया देवता को स्थापित कर दिया गया. स्थापना के बाद से ही कंडोलिया देवता न्याय के देवता के रूप में पूजे जाने लगे.
कंडोलिया मंदिर के बारे में कहा जाता है कि डूंगरियाल नेगी जाति के पूर्वजों ने ‘गोरिल देवता’ को इस स्थान पर निवास करने का आग्रह किया था. जिन्हें वे अपने साथ कंडी में गांव लाए थे. कंडोलिया देवता को लेकर मान्यता है कि किसी भी आपदा और विपत्ति से पहले देवता गांव के लोगों को सचेत कर देते हैं.
पौड़ी का क्षेत्रपाल कंडोलिया देवता
कंडोलिया देवता (Kandoliya Mandir) को पौड़ी का क्षेत्रपाल भी कहा जाता है.प्रत्येक वर्ष यहां तीन दिवसीय पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है. जिसमें दूर-दूर से सैकड़ों श्रद्धालु मन्नत मांगने के लिए यहां आते हैं. मन्नत पूरी होने के बाद यहां घंटा और छत्र चढ़ाया जाता है.